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क्या अब फुटबॉल में भी इंग्लैंड से हटेगा बदकिस्मती का साया?

दूसरे सेमीफाइनल में अगर इंग्लैंड को जीत मिलती है, तो वो पचास से भी ज्‍यादा साल के बाद इतिहास को दोहराएगा

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ये तो आप जानते ही हैं कि इंग्लैंड की टीम फुटबॉल वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में पहुंच गई है. 1990 के बाद ये पहला मौका है, जब इंग्लैंड की टीम ने सेमीफाइनल तक का सफर तय किया है. 1966 में चैंपियन रही इंग्लैंड की टीम अब बुधवार को क्रोएशिया के खिलाफ मैच में उतरेगी.

मॉस्को में होने वाले दूसरे सेमीफाइनल में अगर इंग्लैंड की टीम को जीत मिलती है, तो उसके पास पचास साल से भी ज्यादा के समय के बाद 1966 के इतिहास को दोहराने का मौका होगा. इंग्लैंड की टीम वर्ल्ड रैकिंग में 12 नंबर पर है, जबकि विरोधी टीम क्रोएशिया 20वें नंबर की टीम है. जाहिर है कागजों पर इंग्लैंड की टीम बेहतर है.

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अब अगर डर है, तो बस बदकिस्मती के उस साए से, जो इंग्लैंड की टीम पर अक्सर मंडराता रहता है. सबसे पहले तो जरूरी है कि आपको इंग्लैंड और बदकिस्मती का साथ बताया जाए. सच्चाई यही है कि खेलों के मामले में इंग्लैंड की किस्मत ही अजीब है. जिन खेलों की उसने शुरुआत की या जो खेल उसके देश में बहुत लोकप्रिय हैं उन खेलों में बताने के लिए या दिखाने के लिए उसके पास कोई बड़ी कामयाबी नहीं होती थी. ये सिलसिला लंबे समय तक चला.

धीरे-धीरे वक्त ने करवट ली है. ये ‘जिंक्स’ पिछले एक दशक में टूटा है. आगे क्या होगा ये कोई नहीं जानता, लेकिन इंग्लैंड के लिए कुछ तो ‘पॉजिटिव’ हुआ ही है. कुछ ऐसा ही ‘पॉजिटिव’ पिछले एक दशक में दूसरे खेलों में भी देखने को मिला है.

एक दशक पहले क्रिकेट में बदली किस्मत

16वीं शताब्दी में क्रिकेट का खेल पहली बार इंग्लैंड में ही खेला गया था. वक्त के साथ-साथ बदलाव होते-होते 1960 के दशक में वनडे मैच भी वहीं से प्रचलन में आए. तब तक वेस्टइंडीज, न्यूजीलैंड, भारत और पाकिस्तान में भी इस खेल ने जड़े फैला ली थीं.

1975 में क्रिकेट वर्ल्ड कप की शुरुआत हुई. इंग्लैंड की बदकिस्मती देखिए कि पहले तीनों टूर्नामेंट यानी 1975, 1979 और 1983 के वर्ल्ड कप की मेजबानी इंग्लैंड ने ही की, लेकिन उसे चैंपियन बनने का मौका नहीं मिला. उससे सैकड़ों साल बाद क्रिकेट खेलने की शुरुआत करने वाले देश वेस्टइंडीज ने पहले दोनों और भारत ने तीसरे वर्ल्ड कप पर कब्जा किया. 1979, 1987 और 1992 में इंग्लैंड की टीम रनर्स अप जरूर रही.

ये भी बताना जरूरी है कि अब तक इंग्लैंड की टीम ने वर्ल्ड कप नहीं जीता है. इसके बाद जब 1998 में आईसीसी ने चैंपियंस ट्रॉफी की शुरुआत की, जिसे मिनी वर्ल्ड कप कहा जाता था, तो उसमें भी इंग्लैंड की टीम को निराशा ही हाथ लगी. इस टूर्नामेंट में भी इंग्लैंड की टीम दो बार रनर्स अप रही. हां, लेकिन इंग्लैंड की किस्मत 2010 में जरूर बदली. ये सिलसिला टूटा 2010 में, जब इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर टी-20 वर्ल्ड कप पर कब्जा किया, जो उसके क्रिकेट इतिहास में पहला आईसीसी खिताब था.

लंबे समय बाद टेनिस में कायम हुआ जलवा

कुछ ऐसी ही कहानी टेनिस की भी है. दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित ग्रैंडस्लैम विंबलडन इंग्लैंड में ही खेला जाता है. इस खेल के शुरुआत का श्रेय भी इंग्लैंड को ही जाता है. 19वीं शताब्दी में टेनिस का आधुनिक रूप इसी देश में खेलते देखने को मिला था. आज दुनिया में लॉन टेनिस के चार बड़े ग्रैंडस्लैम होते हैं. विंबलडन, ऑस्ट्रेलियन ओपन, यूएस ओपन और फ्रेच ओपन. ऑस्ट्रेलियन ओपन और यूएस ओपन हार्डकोर्ट पर खेले जाते हैं.

फ्रेंच ओपन क्लेकोर्ट पर खेला जाता है, जबकि विंबलडन ग्रासकोर्ट पर खेला जाता है. इंग्लैंड की बदकिस्मती इस खेल में भी उसका पीछा नहीं छोड़ती. चैंपियनशिप के अम्चयोर एरा तक तो इंग्लैंड का इस टूर्नामेंट में जलवा रहा. फिर दो बार विश्वयुद्ध की वजह से इस टूर्नामेंट का आयोजन नहीं हुआ.

1968, जिसे विंबलडन के आधुनिक दौर की शुरुआत मानी जाती है, इससे इंग्लैंड का वर्चस्व इस टूर्नामेंट पर से खत्म होता चला गया. इंग्लैंड के महान खिलाड़ी फ्रेड पेरी का दौर बीत चुका था. आधुनिक दौर में इंग्लैंड का एक भी खिलाड़ी ऐसा नहीं था, जो विंबलडन की ट्रॉफी को चूमता.

आखिरकार 4 दशक से भी ज्यादा के समय के बाद 2013 में क्रिकेट की तरह ही टेनिस में भी ये ‘जिंक्स’ टूटा. 2013 में एंडी मरे ने सर्बिया के नोवाक जोकोविच को हराकर विंबलडन का प्रतिष्ठित खिताब जीता. 2016 में एक बार फिर एंडी मरे ने ये कामयाबी दोहराई.

खैर, क्रिकेट और टेनिस की कहानी तो फुटबॉल के बहाने शुरू हुई थी. फुटबॉल का सच यही है कि इंग्लैंड की टीम शानदार प्रदर्शन करके सेमीफाइनल तक पहुंच गई है. क्वार्टर फाइनल में स्वीडन के खिलाफ 2-0 से मिली जीत से उसके हौसले बुलंद हैं. सभी खिलाड़ी फिट हैं. फीफा रैंकिंग में उसे सेमीफाइनल में अपने नीचे की रैंक की टीम से भिड़ना है.

इंग्लैंड में फुटबॉल क्रेजी फैंस अलग ही दुनिया में पहुंच चुके हैं. क्रिकेट और टेनिस की तरह अब फुटबॉल में भी चिराग तले अंधेरा की कहावत को गलत साबित करने का वक्त आ गया है.

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