तेलंगाना के निजामाबाद में रहने वाले 30 साल के श्रवण ने फोन पर बात करते हुए कहा, "मेरे पिता ने 10 साल पहले अपने दोस्त के साथ मिलकर जिस घर का निर्माण शुरू करवाया था वो आज भी अधूरा है"
लगभग 7 सालों से कतर में काम कर रहे रमेश कलादि (श्रवण के पिता) की 10 अगस्त 2016 को मौत हो गई थी. परिवार को मौत का आधिकारिक कारण 'दिल का दौरा' बताया गया. हालांकि, श्रवण ने इसपर सवाल उठाए हैं.
कलादि उन भारतीयों में से एक हैं जिनकी कतर में कंस्ट्रक्शन कंपनियों के लिए काम करते हुए मौत हो गई, लेकिन मौत दर्ज नहीं हुई. यहां कलादि को खास तौर पर उन लोगों में गिनना चाहिए जिनकी मौत फीफा वर्ल्ड कप 2022 के लिए बड़े स्टेडियम के निर्माण के दौरान हुई. ये वर्ल्ड कप कतर में 20 नवंबर से शुरू होगा.
श्रवण ने क्विंट से बातचीत में कहा कि "मेरे पिता कतर में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे, जहां उनसे भीषण गर्मी में एक पुरानी गाड़ी चलवाई जा रही थी जिसमें AC भी नहीं था. बिना आराम के उनसे लंबी दूरी तक गाड़ी चलवाई और ओवर टाइम भी करवाया गया. इसी के चलते वे बीमार हुए और उनकी मौत हो गई.
पोलैंड आधारित मेडिकल जर्नल 'कार्डियोलॉजी जर्नल' में हुए कई अध्ययन में ये बात सामने आई है कि ज्यादा गर्मी में काम करने से व्यक्ति के हृदय तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है और दिल का दौरा भी पड़ सकता है.
अक्टूबर 2019 में गार्डियन में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें ओस्लो यूनिवर्सिटी के कार्डियोलॉजी प्रोफेसर और रिसर्च हेड डॉ. डान आल्टर ने कहा कि
"युवा लोगों में दिल का दौरा पड़ने की बहुत कम घटनाएं देखने को मिली हैं, लेकिन कतर में हर साल हजारों लोग इससे मर रहे हैं. एक आर्डियोलॉजिस्ट के तौर पर मैं जो साफ निष्कर्ष निकाला सकता हूं वो ये कि ये मौतें घातक लू लगने के कारण हुई हैं. उनका शरीर इस हद तक भीषण गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर सकता"
कतर में भारतीयों की मौत
इस साल 11 फरवरी को विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि "कतर में काम करते हुए पिछले 5 सालों में 1,665 भारतीय श्रमिकों की मौत हुई है" इसमें प्राकृतिक और असामान्य दोनों आंकड़े शामिल हैं.
2021 में गार्डियन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, कतर में पिछले 10 सालों में 2,711 भारतीय श्रमिकों की मौत हुई है.
इस दौरान, 13 अक्टूबर 2022 को फीफा के डिप्टी जनरल सेक्रेटरी अलैस्दैर बेल ने कहा कि कतर में श्रम और मानव अधिकारों में तेजी से विकास हो रहा है और फीफा इस प्रक्रिया में शामिल है.
"यह मानकों में सुधार के लिए एक संयुक्त प्रयास है और कतर में सकारात्मक रूप से कानून बदलने के लिए फीफा विश्व कप भी एक महत्वपूर्ण कारक था" उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि, उनके प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (WTO) और अंतरराष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (IUTC) ने भी सराहा है.
क्विंट ने पिछले 10 सालों में काम की तलाश में भारत छोड़कर कतर जाने वाले लोगों से बात की और ये जानने की कोशिश की कि खाड़ी देशों में काम करने में उन्हें क्या चुनौतियां आईं, और क्या कतर सरकार की तरफ से लागू किए गए सुधारों से उनकी जिंदगी कुछ आसान हुई. इसके अलावा क्विंट ने श्रम विशेषज्ञों और पिछले दशक में कतर अपनी जान गंवाने वाले श्रमिकों के परिवारों से भी बात की.
कतर प्रवासी श्रमिकों के साथ कैसा व्यवहार कर रहा है?
फरवरी 2021 में गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, कतर में पिछले 10 सालों में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के 6500 से ज्यादा प्रवासी श्रमिकों की मौत हुई है.
2010 में ही फीफा ने 2022 का विश्व कप होस्ट करने के लिए कतर को चुना था.
रिपोर्ट में दिए गए डेटा के अनुसार, 2011 से 2020 के बीच भारत, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के कुल 5,927 श्रमिकों की मौत हुई. जबकि कतर में पाकिस्तानी दूतावास की ओर से जारी आंकडों के अनुसार, इतने ही समय में 824 पाकिस्तानी प्रवासी श्रमिकों की मौत हुई.
फीफा विश्व कप 2022 होस्ट करने के लिए कतर ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को अभूतपूर्व तरीके से बढ़ाया है. इसी के लिए उसे दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के सैंकड़ों कर्मियों को काम पर रखना पड़ा. हालांकि, प्रवासी श्रमिकों की मौत को फीफा वर्ल्ड कप के इंफ्रास्ट्रक्चर काम से जोड़कर देखना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि मौतों का वर्गीकरण व्यवसाय के आधार पर नहीं किया गया है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल और माइग्रेंट राइट्स सहित कई मानवाधिकार संगठनों ने कथित मानवाधिकार उल्लंघन के लिए कतर की आलोचना की है, जबकि गैर-लाभकारी मानवाधिकार संगठन 'फेयर स्कॉयर प्रोजेक्ट्स' ने भी प्रतिकूल वातावरण में काम कर रहे श्रमिकों की मौत की संख्या न रखने पर कतर की निंदी की है.
"मौत का करण पता न होने का मतलब है कि हताशा और परेशान परिवारों के पास कोई जवाब नहीं है. और न ही इस बात का पता लगाने की कोई उम्मीद है कि क्या काम करने की परिस्थितियों का उनकी मौत में कोई योगदान है, इससे उन्हें मुआवजा मिल सकता है. ऐसा क्यों हो रहा है?"फेयर स्कॉयर प्रोजेक्ट्स
गार्डियन ने अपनी फरवरी 2021 वाली रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि कम से कम 37 मजदूरों की मौत सीधे तौर पर वर्ल्ड कप स्टेडियम निर्माण के काम से जुड़ी है, लेकिन इसमें से 34 को 'गैर-काम से संबंधित' बताया गया.
रहने की खराब स्थिति और उपेक्षा
श्रवण भी अपने पिता के साथ उसी कंपनी में टाइमकीपर का काम करते थे. उन्होंने क्विंट को बताया कि श्रमिकों के रहने की परिस्थितियां घटिया स्तर की थी.
"हम एक छोटे कमरे में 4 लोग थे. वहां सामुदायिक शौचालय था और उन्हें प्रयोग करने से पहले घंटों इंतजार करना पड़ता था. हमें दिन में दो बार खाना मिलता था. हमारे पास कोई हेल्थ कार्ड नहीं था तो बीमार होने की स्थिति में हमें परिसर में ही छोटे हेल्थ क्लिनिक में जाना पड़ता था, जहां कोई विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं था."
श्रवण ने अपने पिता की मौत पर आधिकारिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट (जिसमें मौत का कारण दिल का दौरा बताया गया था) पर सवाल उठाते हुए कहा कि "जब वे (श्रवण के पिता) कतर के लिए गए थे तो स्वास्थ्य अच्छा था. वहां वे कड़ी धूप में मेहनत कर रहे थे इसलिए उनकी जान चली गई."
श्रवण चिंता में है कि उसके पिता जिस घर का निर्माण अधूरा छोड़कर गए हैं शायद वो कभी पूरा नहीं होगा. उन्होंने मायूस होकर कहा, "मेरे पिता ड्यूटी खत्म होने के बाद अपने कैंप में लौट रहे थे तभी वे गिर गए"
तेलंगाना के डब्बा गांव के 37 वर्षीय रामोजी राडे कतर में एक टीवी ब्रॉडकास्टिंग कंपनी के लिए क्लीनर का काम करते थे. उनकी भी इसी तरह मौत हो गई. रामोजी की पत्नी सुजाता ने क्विंट से कहा कि "अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद वे कैंप में जाने का इंतजार कर रहे थे तभी अचानक कंपनी के गेट पर गिर पड़े. जब तक प्राथमिक चिकित्सा पहुंची, उनकी मौत हो चुकी थी."
रामोजी की मौत का भी आधिकारिक कारण 'दिल का दौरा' बताया गया, लेकिन रामोजी की पत्नी सुजाता ने कहा कि वे 12 घंटे काम कर रहे थे, कई बार तो डबल शिफ्ट भी करनी पड़ती थी, खासकर तब जब कोरोना वायरस का प्रकोप अपने चरम पर था. इस समय ज्यादातर श्रमिकों के अपने-अपने घर लौट जाने से काम का दबाव बढ़ गया था.
सुजाता को अपने दो बच्चों 13 साल के सौम्य और 17 साल के साई चरण के भविष्य की चिंता है. सुजाता 1000 बीड़ी बनाने के 200 रुपये कमाती है. हालांकि पति की मौत के एक साल के भीतर कंपनी से मिलने वाली राशी प्राप्त हुई, लेकिन उनका कहना है कि पैसा कर्जा चुकाने में ही चला गया.
तेलंगाना में प्रवासी मित्र श्रमिक संघ के अध्यक्ष स्वदेश परकीपंडला कतर में प्रवासी श्रमिकों की सुविधा के लिए काम कर रहे हैं. उनका संगठन श्रमिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने, उनके सुरक्षित और व्यवस्थित प्रवास में मदद करने और श्रमिकों के परिवारों के बीच सामाजिक और घरेलू मुद्दों को हल करने में मदद करता है.
"मृत्यु के कारण की परवाह किए बिना कतर में अपनी जान गंवाने वालों के लिए मुआवजे का भुगतान किया जाना चाहिए. हर प्रवासी श्रमिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फीफा के इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए काम कर रहा है. फीफा और कतर सरकार को घायलों और मृत व्यक्तियों के परिवार को मुआवजे के लिए एक कोष बनाना चाहिए."स्वदेश परकीपंडला, अध्यक्ष, प्रवासी मित्र श्रमिक संघ, तेलंगाना
विशेषज्ञों का क्या कहना?
प्रवासी अधिकार कार्यकर्ता रेजीमोन कुट्टप्पन ने क्विंट से बातचीत में कहा कि, “अन्य खाड़ी देशों की तुलना में, कतर ने कफाला सिस्टम के तहत काफी सारे सुधार किए हैं.”
कफाला सिस्टम एक स्पॉनसरशिप-आधारित रोजगार है, जो कानूनी रूप से श्रमिक को उनके मालिक के प्रति बाध्य करता है. यह छह खाड़ी देशों के अलावा जॉर्डन और लेबनान में भी है. कुट्टप्पन ने कहा कि वैश्विक ट्रेड यूनियनों का कहना है कि यह एक बंधुआ श्रम प्रणाली है, जहां मजदूर कंपनी से बंधा हुआ है. इससे उनकी आवाजाही की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संघ बनाने की स्वतंत्रता पर रोक लगाया जाता है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अक्टूबर 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा है कि, हाल तक इस नियम ने कतर में श्रमिकों को नौकरी बदलने और यहां तक कि अपने देश वापस जाने से भी रोका. श्रमिक अपने मालिक की इजाजत के बिना कहीं नहीं जा सकते थे. उन्हें शोषण के चक्र में फंसा लिया गया था.
लेकिन कुट्टप्पन ने कहा कि "फीफा की तरफ से वर्ल्ड कप का कांट्रैक्ट मिलने के बाद कफाला में कई सारे सुधार किए हैं और श्रमिकों का अब पहले से अच्छा ख्याल रखा जा रहा है. श्रमिकों के साथ दुर्घटनाएं हो रही हैं, उनके अधिकारों का हनन भी हो रहा है लेकिन उतना नहीं जितना बाकी खाड़ी देशों में देखने को मिल रहा है."
केरल स्थित रेजिमोन कुट्टप्पन एक स्वतंत्र पत्रकार और प्रवासी अधिकार रक्षक हैं. उनके लिंक्डइन बायो के अनुसार, वह टाइम्स ऑफ ओमान के लिए मुख्य रिपोर्टर थे, लेकिन अरब की खाड़ी में मानव तस्करी और दासता को समाचार पत्र के फ्रंट-पेज पर छापने और उजागर करने के चलते उन्हें 2017 में भारत वापस भेज दिया गया.
कुट्टप्पन ने कहा कि कोरोना महामारी के चरम के दौरान अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की गई, जिससे निपटने के लिए कतर के साथ ही अन्य देशों ने भी श्रमिकों को बिना वेतन का भुगतान किए और नौकरी खत्म होने पर मिलने वाले लाभ के बिना ही वापस भेज दिया.
कुट्टप्पन ने कहा कि “मेरे पास अभी भी श्रमिकों के ऐसे मामले हैं जिसमें वे अपने वेतन और सेवा के अंत में मिलने वाला लाभ पाने की कोशिशें कर रहे हैं. यहां मुद्दे हैं, लेकिन अन्य खाड़ी देशों में, खास तौर पर सऊदी अरब, ओमान और कुवैत में हालात ज्यादा खराब हैं. फीफा की तरफ से कतर को विश्व कप होस्ट करने का अधिकार दिए जाने के बाद चीजें बेहतर हुई हैं.
कतर में सुधार: प्रवासी श्रमिकों के लिए आशा की किरण?
2015 में, कतर ने मजदूरी संरक्षण प्रणाली की शुरुआत की जिसके तहत कंपनियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया कि वे इलेक्ट्रॉनिक रूप से ही कर्मचारियों की वेतन का भुगतान करेंगे. इसने सरकार को श्रमिकों के वेतन भुगतान में अनियमितताओं का पता लगाने और मजदूरी की चोरी रोकने में मदद मिली.
2017 में, कतर ने सुधारों पर काम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते में स्पॉन्सर सिस्टम, श्रमिकों की मांग, स्वास्थ्य और सुरक्षा, न्याय तक पहुंच और नौकरी के लिए भर्ती जैसे मुद्दे शामिल हैं. इसके बाद कई कानून पारित किए गए जिसमें श्रम विवाद समिती की स्थापना की गई. इसके अलावा श्रमिकों के लिए बीमा कोष की स्थापना हुई.
कतर ने 2018 में एक्जिट परमिट सिस्टम को खत्म कर दिया. इसका मतलब है कि श्रमिक अब अपने मालिक से इजाजत लिए बिना देश छोड़ सकते हैं. हालांकि घरेलू श्रमिकों को 2019 तक इस लाभ के दायरे में शामिल नहीं किया गया था, लेकिन बाद में उनके लिए भी ये कानून खत्म कर दिया गया.
2020 में, कतर ने नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) की अनिवार्यता को खत्म कर दिया, जिससे श्रमिकों को अपने मालिक या कंपनी की अनुमति के बिना भी नौकरी बदलने की अनुमति मिल गई. इसके साथ ही कतर ने न्यूनतम मजदूरी के नियम की भी शुरुआत की.
मई 2021 में, कतर ने श्रमिकों को भीषण गर्मी से बचाने के लिए अपने कानूनों में बदलाव किया. नए कानून के तहत 1 जून से 15 सितंबर तक सुबह 10 बजे से दोपहर 3.30 बजे तक श्रमिकों के बाहर निकलने पर रोक लगा दी गई.
अब जीने के हालात बेहतर?
तेलंगाना के निर्मल जिले के रहने वाले 32 साल के नवीन सकली 18 महीने से कतर में काम कर रहे हैं. वे फुटबॉल स्टेडियम में काम करने वाली एक कंपनी के लिए गार्डन कंस्ट्रक्शन वर्कर के तौर पर काम करते हैं.
उन्होंने क्विंट को बताया कि वे अब लेबर सिटी में शिफ्ट हो गए हैं, जो प्रवासी श्रमिकों के लिए खोला गया नया कैंप है. वहां वे एक महीने से ज्यादा समय से रह रहे हैं.
"एक कमरे में चार लोग रहते हैं. कमरे में AC लगा है. एक सामुदायिक शौचालय है. हमें एक दिन में तीन बार खाना मिलता है और उसकी क्ववालिटी अच्छी है. हमने अभी तक यहां किसी परेशानी का सामना नहीं किया है."नवीन सकली, प्रवासी श्रमिक
उन्हें हर रोज 8 घंटे फुटबॉल के मैदान के रख-रखाव और घास काटने और के लिए हर महीने 1300 QR (लगभग 30,000 रुपये) मिलते हैं. कतर में अपनी नौकरी से संतुष्ट, सकली अपनी पत्नी को पैसे भेजते हैं. उनकी पत्नी तेलंगाना में बीड़ी बनाती हैं और उनकी दो बेटियां हैं.
उन्होंने कहा कि "हमें हेल्थ कार्ड दिया गया है. हमारा मेडिकल उपचार भी फ्री होता है और आने-जाने के लिए भी कंपनी भुगतान करती है."
41 साल के एमसम देवदास की भी कुछ ऐसी ही है. वे कतर में फुटबॉल मैदान में काम करने वाली एक फर्म के लिए घास काटने का काम करते हैं और एक साल से ज्यादा समय से काम कर रहे हैं.
एक साथ रहने और काम करने की स्थिति से संतुष्ट होकर, उन्होंने क्विंट को बताया, “जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर में गर्मियों के चार महीनों के दौरान, हमें रात में काम करने के लिए कहा गया था ताकि गर्मी के जोखिम को कम किया जा सके. हम रात के 1 से 10 बजे तक काम करते थे.”
उन्होंने कहा कि उन्हें हर महीने की 5 से 10 तारीख के बीच नियमित रूप से वेतन मिलता है और कोरोना महामारी के चरम के दौरान भी उन्हें कोई समस्या नहीं हुई.
मानवाधिकार संगठन असहमत
बिजनेस एंड ह्यूमन राइट्स रिसोर्स सेंटर के गल्फ प्रोग्राम मैनेजर इसोबेल आर्चर ने क्विंट से बातचीत में कहा कि, "हालांकि जो बदलाव हुए हैं, उन्हें देखना जरूरी है, लेकिन जमीन पर सुधारों को ठीक से लागू न होने पर बात करना भी उतना ही जरूरी है." उन्होंने कहा कि श्रमिक बड़े पैमाने पर सुधारों और उन अधिकारों से अंजान रहते हैं जिनके वे हकदार हैं. उन्हें बेईमान कंपनियों या मालिकों पर छोड़ दिया जाता है.
आर्चर ने कहा कि शक्ति संरचना को देखें तो नियंत्रण अभी भी कंपनी के पास है. “मजदूरी का भुगतान न करना सबसे आम मुद्दा है जिसके बारे में कर्मचारी शिकायत दर्ज कराते हैं. जब कर्मचारी इसका विरोध करते हैं, तो मालिक उनके खिलाफ मुकदमा दायर करवा देते हैं. ऐसी स्थिती में श्रमिकों को गिरफ्तारी या निर्वासन का सामना भी करना पड़ता है."
आर्चर ने दावा किया कि समाधान तक पहुंच के लिए अभी भी मूलभूत बाधाएं हैं, और अभी कई समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है. हालांकि, वह इस बात से सहमत थीं कि फीफा की परियोजनाओं में कार्यरत श्रमिकों को दूसरों की तुलना में कम दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा.
भले ही लाभार्थी बहुत कम हों, लेकिन कतर में विश्व कप की मेजबानी से श्रम के मानकों में सुधार हुआ है, बड़ा सवाल ये है कि विश्व कप खत्म होने के बाद इन बढ़े हुए मानकों का क्या होगा? क्या इसे कतर में सभी क्षेत्रों के श्रमिकों पर लागू किया जाएगा?इसोबेल आर्चर, गल्फ प्रोग्राम मैनेजर, बिजनेस एंड ह्यूमन राइट्स रिसोर्स सेंटर
श्रमिक पहले से ज्यादा गरीब हो गए- एमनेस्टी
जून 2020 में, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दावा किया था कि अल बेयट स्टेडियम में काम करने के लिए कतर मेटा कोट्स कंपनी को ठेका दिया गया लेकिन इसने सातचमहीनों तक श्रमिकों के वेतन का भुगतान नहीं किया. कंपनी के ऊपर 8,000 QR से 60,000 QR (करीब 1 लाख 80 हजार रुपये से लेकर 13 लाख 51 हजार रुपये तक) बकाया हो गया.
कंपनी कर्मचारियों के निवास परमिट को रिन्यू करने में भी फेल रही है, जिससे श्रमिकों पर नजरबंदी या निर्वासन का खतरा बना हुआ है.
एक इंजीनियरिंग और मैकेनिकल कंपनी मर्करी एमईएनए को लेकर भी इसी तरह के रिपोर्ट सामने आए. कंपनी को अत्याधुनिक कूलिंग तकनीक के साथ 500 सीट वाले शोकेस स्टेडियम के निर्माण का ठेका मिला था.
श्रमिकों का आरोप है कि कंपनी ने उन्हें निवास परमिट जारी नहीं किया, वेतन देना बंद कर दिया और श्रमिकों को देश छोड़ने या नई नौकरी खोजने की अनुमति भी नहीं दी और इस तरह एक नया स्पॉन्सर आ गया. एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, ऐसा होने से कई श्रमिक कर्ज के बोझ में दब गए और अंत में कतर छोड़ अपने मूल देश लौट गए, जितने गरीब वे गए थे उससे ज्यादा गरीब होकर.
बेल ने स्वीकार किया कि अभी और प्रयास किए जाने की जरूरत है और कहा कि फीफा कतर के साथ काम कर रहा है ताकि यह विश्व कप कम से कम श्रमिकों के अधिकारों के मामले में एक विरासत छोड़ जाए.
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