भारतीय रेसलिंग फेडरेशन (WFI) को आखिरकार गुरुवार, 21 दिसबंर को अपना नया अध्यक्ष मिल गया. यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे बीजेपी सांसद और WFI के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के करीबी सहयोगी संजय सिंह 'बबलू' (Sanjay Singh) को आज भारतीय रेसलिंग फेडरेशन का नया प्रमुख चुना गया.
संजय सिंह ने कुल 48 में से 40 वोट हासिल किए. उनकी प्रतिद्वंदी अनीता श्योराण थीं जो राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता हैं और उन्हें बृजभूषण सिंह के खिलाफ विरोध करने वाले शीर्ष पहलवानों का समर्थन प्राप्त था.
कौन हैं संजय सिंह 'बबलू'?
उत्तर प्रदेश के चंदौली के झांसी गांव के रहने वाले संजय सिंह को कुश्ती सर्किट में 'बबलू' के नाम से भी जाना जाता है. वे WFI की पिछली कार्यकारी समिति का भी हिस्सा थे- वे 2019 से संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत थे.
इस चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के बाद द क्विंट से बात करते हुए उन्होंने कहा था, ''मैं 12 साल से डब्ल्यूएफआई से जुड़ा हूं. मैं पहली बार 2011 में चुनाव जीतकर महासंघ में कार्यकारी सदस्य के रूप में शामिल हुआ था. आठ साल बाद, मैं संयुक्त सचिव बन गया."
एक व्यवसायी परिवार में जन्मे संजय ने आगे बताया कि उनके पिता नंद लाल सिंह ने उनके गांव में कुश्ती मुकाबलों का आयोजन किया था. राष्ट्रीय महासंघ में शामिल होने से पहले, वह स्थानीय कुश्ती प्रतियोगिताओं से भी जुड़े थे.
कैसे होता है चुनाव, कौन डालता है वोट?
वोटिंग के जरिए 1 अध्यक्ष, 1 वरिष्ठ उपाध्यक्ष, 4-उपाध्यक्ष, 1-महासचिव, 1-कोषाध्यक्ष, 2-संयुक्त सचिव और 5-कार्यकारी सदस्य यानी कुल 15 पदों के लिए चुनाव होता है.
WFI के चुनावों में राज्य और यूनियन टेरेटरी के फेडरेशन अपने-अपने प्रतिनिधी भेजते हैं. इस बार के चुनाव में 25 राज्य संघों ने अपना वोट डाला. हर एक संघ के 2 सदस्य वोट करते हैं यानी कुल 50 लोगों को वोट डालना था.
बृजभूषण सिंह को क्यों हटना पड़ा?
बृजभूषण सिंह का कार्यकाल खत्म हो गया है. साथ ही बृजभूषण दोबारा चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, क्योंकि स्पोर्ट्स कोड के हिसाब से कोई व्यक्ति 3 कार्यकाल यानी 12 साल से ज्यादा लगातार अध्यक्ष पद पर नहीं रह सकता. WFI का एक कार्यकाल 4 साल का होता है.
पहली बार 2012 में बृजभूषण सिंह WFI अध्यक्ष बने थे. फिर 2015 और 2019 में भी वो अध्यक्ष का चुनाव जीते. लेकिन इसबार वे चुनाव नहीं लड़ सकते थे. अगर फिर से उन्हें अध्यक्ष का चुनाव लड़ना है तो 4 साल का गैप लेना होगा. इसे कूलिंग ऑफ पीरियड कहते हैं. यही कारण है कि बृजभूषण ने चुनाव नहीं लड़ा.
इसके अलावा जब पहलवानों ने प्रदर्शन किया था तब खेल मंत्रालय में भी पहलवानों को भरोसा दिलाया था कि बृजभूषण या उनके परिवार का कोई भी सदस्य इस बार WFI चुनावों में खड़ा नहीं होगा.
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