राहुल द्रविड़ (Rahul Dravid) - भारतीय क्रिकेट का ऐसा नाम जिसके लिए अपनी टीम के हित से ज्यादा अहम कुछ भी नहीं.
सचिन तेंदुलकर जैसे दिगग्ज पर भी आलोचक ये इल्जाम लगाने से नहीं चूकते कि उन्होंने कई मौकों पर अपने निजी रिकॉर्ड को तवज्जोह दी. वीरेंद्र सहवाग की इस बात के लिए कई बार आलोचना हुई कि वो जरुरत से ज्यादा लापरवाह हो जाये करते थे.
सौरव गांगुली अक्सर इस बात के लिए विवादों में आते रहें हैं कि कई बार उनकी सोच और करनी में एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की झलक देखने को मिलती है.
लेकिन द्रविड़ को कभी भी किसी तरह की ऐसी आलोचना से नहीं गुजरना पड़ा है जहां टीम को लेकर उनकी निष्ठा पर किसी तरह के सवाल उठे हों.
अगर मुश्किल हालात में ओपनर की भूमिका निभानी हो तो द्रविड़ हैं ना, अगर विकेटकीपर की भूमिका वर्ल्ड कप जैसे टूर्नामेंट में निभानी हो तो द्रविड़ हैं ना, अगर वन-डे क्रिकेट में फिनिशर की भूमिका के लिए भी जरुरत पड़ी तो द्रविड़ ने वो भूमिका निभायी.. यूं ही किसी को मिस्टर भरोसेमंद का टाइटल तो नहीं मिल जाता.
भारतीय टेस्ट क्रिकेट का भविष्य द्रविड के हांथ में
करीब डेढ़ दशक तक भारतीय क्रिकेट की जिस समर्पण वाले भाव से द्रविड़ ने सेवा की उसके चलते उनके 24,208 इंटरनेशनल रनों से ज्यादा उनकी साख है जिसने उन्हें वापस भारतीय ड्रेसिंग रुम में खींच लाया है.
लेकिन, सबसे अहम सवाल ये है कि अगले दो साल तक द्रविड़ किसके साथ ताल-मेल मिलाकार भारतीय क्रिकेट का भविष्य तय करेंगे. क्या लाल गेंद की क्रिकेट यानि कि टेस्ट क्रिकेट में द्रविड़ को विराट कोहली के साथ मिलकर एक अलग तरह का रुख अक्तियार करना होगा जिसके चलते इस साल के अंत में साउथ अफ्रीका दौरे पर पहली बार टेस्ट सीरीज में जीत हासिल की जाए?
रवि शास्त्री का चाहे आप लाख मजाक उड़ा लें लेकिन कोच के तौर पर उन्होंने लगातार 2 बार ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज में जीत हासिल की जो किसी भारतीय कोच ने तो क्या किसी विदेशी कोच ने भी नहीं किया है.
ऐसे में अगर द्रविड़ को अपनी एक अलग विरासत छोड़नी है उन्हें हर हाल में साउथ अफ्रीका में टेस्ट सीरीज जीतनी ही होगी. ऐसा सिर्फ अब एक एशियाई टीम (श्रीलंका) ने किया है.
वैसे भी इत्तेफाक से द्रविड़ की ही कप्तानी में टीम इंडिया ने 2006 में पहली बार साउथ अफ्रीका में टेस्ट में जीत का मुंह देखा था. लेकिन, क्या बीसीसीआई और द्रविड़ टेस्ट कप्तान के लिए कोहली के नाम पर एक पेज पर होंगे?
ये एक मुश्किल सवाल होगा क्योंकि कोहली को टेस्ट की बागडोर संभाले करीब 6 साल हो चुके हैं और आने वाले 2 साल तक टेस्ट कप्तानी की जिम्मेदारी कोहली ही निभायेंगे और इसका कितना फायदा भारतीय क्रिकेट को मिल सकता है, इसको तय करने का फैसला बोर्ड द्रविड़ को ही देगा और द्रविड़ के लिए ये निर्णय लेना सबसे निर्णायक साबित हो सकता है.
कौन होगा वनडे का कप्तान, तय करेंगे द्रविड
टेस्ट टीम के बाद अहम सवाल द्रविड़ के सामने होगा कि सफेद गेंद की क्रिकेट में क्या एक ही कप्तान हो या फिर टी20 और वन-डे के लिए दो अलग अलग कप्तान हों. यूं तो माना जाता है कि सफेद गेंद के लिए रोहित शर्मा द्रविड़ की पहली पंसद हैं, लेकिन क्या द्रविड़ ऐसा भी क्रांतिकारी फैसला ले सकते हैं जिसमें सफेद गेंद में कप्तानी की जिम्मेदारी रिषभ पंत या फिर के एल राहुल को दे दी जाए.
कोई भी नया कोच भारतीय टीम के सुपरस्टारडम वाले कल्चर को देखते हुए चाहेगा कि कप्तान बहुत हाई-प्रोफाइनल ना रहें जिससे टकराव की गुंजाईश कम से कम रहे. इस लिहाज से देखा जाए तो शायद रोहित को टेस्ट में और नये कप्तान को सफेद गेंद में कप्तानी की जिम्मेदारी बांटने के बारे में द्रविड़ फैसला लें.
निश्चित तौर पर द्रविड़ के इस फैसले को चयनकर्ताओं और बोर्ड की मंजूरी मिलनी आवश्यक है. लेकिन, द्रविड़ ने जो कुछ शर्तें बीसीसीआई के सामने रखी थी उनमें से एक ये भी था कि टीम इंडिया के लिए अगले दो साल की रुप-रेखा तय करने के लिए उन्हें पूरी स्वंतत्रता चाहिए.
एक कप्तान के तौर पर द्रविड़ घुटन और हर किसी के सामने मजबूरीवश कुछ भी स्वीकार करने वाले दौर को भुला नहीं पाए हैं और वो कभी नहीं चाहेंगे कि फिर से वो दौर उन्हें देखना पड़े.
द्रविड के सिर पर उम्मीदों का बोझ
द्रविड़ के साथ उम्मीदें इस कदर जुड़ी हैं कि शायद समुंद्र के जल से इसकी तुलना की जा सकती है. द्रविड़ के पास एक ऐसी टीम और ऐसी प्रतिभाओं की उपलब्धि है जिससे टेस्ट, वन-डे और टी20 तीनों फॉरेमेट में एक साथ नंबर 1 का ताज हासिल किया जा सके.
अभी तक दुनिया की किसी टीम ने ऐसा हासिल नहीं किया है लेकिन द्रविड़ जैसा कोच ऐसा मुमकिन करा सकतें हैं. भारत पहली बार टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में हारा लेकिन द्रविड़ वहां भी ट्रॉफी जिताने के बारे में सोच सकते हैं.
लेकिन, इन सब बातों के कोई मायने नहीं होंगे अगर द्रविड़ अगले साल ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी20 वर्ल्ड कप में टीम इंडिया को खिताबी जीत नहीं दिलावा पायें.
2007 में पहली बार ट्रॉफी जीतने के बाद 2021 तक भारत को हर बार जबरद्सत टीम होने के बावजूद नाकामी का ही मुंह देखना पड़ा है और ऐसे में अगर द्रविड़ के साथ भी यही होता है तो उनमें और रवि शास्त्री की सीवी में क्या फर्क रह जायेगा.
लेकिन, जो एक ट्रॉफी द्रविड़ अपने दिल से जीतने की हसरत रखतें है वो होगा 2023 का वन-डे वर्ल्ड कप. खिलाड़ी के तौर पर वो 2011 वाली चैंपियन टीम का हिस्सा नहीं थे और कप्तान के तौर पर उन्होंने 2007 में सबसे निराशाजनक लम्हा झेला. इन सबकी भरपाई अगर द्रविड़ के लिए सिर्फ कोई एक बात कर सकती है तो वो होगी शायद कोच के तौर पर 2023 वर्ल्ड कप में जीत.
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