लंदन के लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड पर जब टीम इंडिया दूसरे मैच के लिए उतरेगी, तो कोशिश पांच मैचों की सीरीज में बराबरी पर आने की रहेगी. क्योंकि एजबेस्टन में हुए पहले टेस्ट में हार के साथ ही हमने इंग्लिश टीम को 1-0 से बढ़त दे दी है. विराट कोहली की टीम को अभी भी महज 31 रनों की हार का वो दर्द महसूस होना चाहिए. क्योंकि 194 रनों का लक्ष्य हासिल करने योग्य था मगर हम 162 पर ही सिमट गए.
उम्मीद यही है कि भारतीय टीम हार के जख्मों और निराशा से निकलकर आने वाले पांच दिनों में अपना सर्वश्रेष्ठ खेल दिखाते हुए सीरीज के स्तर को ऊपर ले जाएगी. भारतीय टीम तीन वजहों से ये भरोसा कर सकती है कि वे लॉर्ड्स जीत सकते हैं.
लॉर्ड्स : एशियाई देशों के लिए एक बेहतर मैदान
भारतीय टीम को लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड की पिछली यादें जरूर जेहन में होंगी. जब उन्होंने 2014 में मेजबान टीम से बेहतर प्रदर्शन किया था. उस टेस्ट की पहली पारी में अजिंक्य रहाणे की सेंचुरी आई थी, जबकि इसके बाद भुवनेश्वर कुमार ने इंग्लिश टीम को जबरदस्त झटका दिया था. भुवी ने तब 68 रन देकर उनके 6 खिलाड़ियों को पैवेलियन की राह दिखाई थी. यही नहीं इसके बाद दूसरी पारी में उन्होंने बल्ले से भी कमाल किया था और 52 रन बनाए थे.
तब मुरली विजय का बल्ला भी बोला था. उन्होंने 95 रनों की पारी खेली थी. जबकि निचले क्रम में रविंद्र जडेजा की 57 गेंदों में 68 रनों की पारी के आगे मेहमान पानी भरते नजर आए थे.
मैच की चौथी पारी में ईशांत शर्मा ने 74 रन देकर 7 खिलाड़ियों को आउट कर इंग्लैंड की पारी ही तहस नहस कर दी थी. इन सबके नतीजे में भारत को इस मैदान पर 95 रनों से शानदार जीत मिली थी.
दरअसल, हाल के दिनों में लॉर्ड्स एशियाई देशों के लिए हंटिंग ग्राउंड की तरह रहा है. भारतीय उपमहाद्वीप की टीमें पिछली पांच सीरीज में इस मैदान पर अजेय रही हैं.
इसी साल की शुरुआत में और 2016 में भी पाकिस्तान इस मैदान पर इंग्लैंड को हरा चुका है, जबकि श्रीलंका ने 2016 और 2014 में इस मैदान पर इंग्लैंड के साथ ड्रॉ खेला.
हाल के कुछ सप्ताह में लंदन का तापमान बढ़ा हुआ है और अगर ये स्थिति बनी रहती है तो पिच और मौसम इंग्लिश टीम के मुकाबले भारतीय टीम के लिए ज्यादा अनुकूल हो सकता है.
गेंदबाजी के मोर्चे पर चिंता दूर हुई
एक सामान्य धारणा है कि इंग्लैंड के हालात गेंदबाजों के अनुकूल होते हैं. इस थ्योरी के बावजूद भारतीय टीम के हाल के दौरों में हमारी गेंदबाजी निराश करने वाली रही है. भारतीय टीम पिछले दो विदेशी दौरों में सिर्फ दो मैचों में इंग्लिश टीम को दोनों पारियों में ऑल आउट करने में कामयाब रही है : 2014 में लॉर्ड्स के मैदान पर और 2011 में ट्रेंट ब्रिज में.
वहीं इस सीरीज में एजबेस्टन के पहले टेस्ट में हमारे गेंदबाजों ने मेजबान टीम को 143 ओवर से भी कुछ कम में ही दोनों पारियों में ऑल आउट कर डाला. सीरीज को शुरू करने का ये शानदार अंदाज रहा. और भारतीय गेंदबाजों ने हाल की सालों में अपनी ये आदत बखूबी विकसित की है.
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विदेशी पिचों पर खेले गए अपने आखिरी 6 मैचों में से सभी में भारतीय टीम ने मेजबान टीम के सभी 20 विकेट हासिल किए. और ये अपने आप में भारतीय टीम का रिकॉर्ड है.
इसके पहले होता यही रहा था कि हम अपने गेंदबाजों से बस उम्मीद भर करते थे कि वे भी विरोधी टीम को मैच में दो बार आउट करने का दम रखें, लेकिन ये टीम इस काम को बड़े ही सहज तरीके से कर पा रही है.
अजिंक्य में भरोसा रखें और उन्हें टीम में बरकरार रखें
जब टीम इंग्लैंड जा रही थी तो अजिंक्य से भारतीय टीम की बैटिंग लाइन अप में बड़ी उम्मीदें थीं. माना गया था कि सीरीज में वे एक पिलर की तरह साबित होंगे. क्योंकि 30 वर्षीय अजिंक्य में इसके लिए जरूरी वो तकनीक और टेंपरामेंट है, जिसकी बदौलत वो जेम्स एंडरसन एंड कंपनी की हसरतों को हाशिये पर डाल सकते हैं.
लेकिन एजबेस्टन का पहला टेस्ट इस बल्लेबाज के लिए बहुत ही निराशाजनक रहा. अजिंक्या इस मैच की दो पारियों में महज 15 और 2 का स्कोर कर सके. दोनों ही पारियों में ऑफ स्टंप से बाहर जाती गेंदों का पीछा करते हुए आउट हुए.
इसी के बाद सवाल उठने लगे कि क्या ये वही अजिंक्या रहाणे हैं, जो कि पहले हुआ करते थे? लेकिन ये दो वजहें हैं जिसके चलते भारतीय फैंस मुंबई के इस बल्लेबाज में अपना भरोसा बरकरार रख सकते हैं.
- रहाणे मौजूदा टीम में अकेले खिलाड़ी हैं जिसने लॉर्ड्स के मैदान पर सेंचुरी बनाई है. और उनकी सेंचुरी ने 2014 में भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई थी.
- रहाणे का किसी भी ओवरसीज सीरीज के दूसरे मैच में शतक का अनोखा रिकॉर्ड रहा है. उन्होंने अपने पिछले 3 विदेशी दौरों में हर दौरे के दूसरे मैच में सेंचुरी लगाई है. 2017 में कोलंबो में सीरीज के दूसरे टेस्ट में 132 रनों की पारी खेली, तो 2016 में किंग्सटन में 126 रन बनाए. श्रीलंका के खिलाफ ही सीरीज के दूसरे मैच में 2015 में भी कोलंबो में रहाणे ने 126 रनों की पारी खेली. और इस हिसाब से इन मैचों में उनका औसत ब्रेडमैन के करीब 92.67 का रहा.
ऊपर के आंकड़े ये जाहिर करते हैं कि किसी भी विदेशी सीरीज में रंग में आने से पहले अजिंक्य रहाणे किसी भी सीरीज में स्लो स्टार्टर रहे हैं. ऐसे में हम उम्मीद कर सकते हैं कि रहाणे पुरानी यादों को दोहराने और सीरीज के दूसरे मैच में ब्रेडमैन सरीखी बल्लेबाजी के अपने पुराने रिकॉर्ड को भी कायम रख पाएंगे.
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