“एक ही तो दिल है, उसे भला कितनी बार जीतोगे”, ये वाक्य हमें अक्सर सोशल मीडिया पर सुनने या पढ़ने को मिल जाता है जब हम अपने किसी चाहने वाले को बार-बार अच्छा करते देखकर खुश होते हैं और हमारे पास कहने को कुछ ज्यादा अलफाज नहीं होते हैं.
“एक ही तो दिल है, उसे भला कितनी बार तोड़ोगे”- अगर रॉयल चैलेंजर्स बैगलोर (Royal Challengers Bangalore) की आईपीएल क्वालिफॉयर 2 में हार के बाद उनके चाहने वाले इस वाक्य का इस्तेमाल करें तो आपको चौंकना नहीं चाहिए. आखिर, सब्र की भी एक सीमा होती है.
कहते हैं इतंजार का फल मीठा होता है लेकिन 15 साल से बैंगलोर के फैंस उस फल के इंतजार में टकटकी लगाये बैठे रहते हैं और हर बार उम्मीद जगती है कि ये फल इस बार पक कर मीठा हो चुका होगा और इसका भरपूर आनंद लिया जा सकता है. लेकिन, होता क्या है-
जैसे कॉलेज के दिनों में आपके प्रेमी या प्रेमिका की अचानक से अरेंज मैरिज की खबर से आप मायूस होकर इसे जिंदगी के कड़वे सच का हिस्सा मान लेते हैं, ठीक उसी तरह से साल दर साल बैंगलोर को आईपीएल फाइनल में नहीं जीतने की बात को आप क्रिकेट की उस पूरानी कहावत को एकदम से सत्य मानने को विवश हो जाते हैं. यही कि भाई क्रिकेट के बारे में क्या कहें, ये तो अनिश्चितताओं का खेल हैं.
लेकिन, इस लेख का उद्देश्य बैंगलोर की कमियों को ढूंढने का नहीं बल्कि इसमें जीवन का दर्शन तलाश करने की जद्दोजेहद में है. राजस्थान रॉयल्स के जॉस बटलर की प्रलयकारी पारी के सामने जिस तरह से टूर्नामेंट में एक धाकड़ गेंदबाजी आक्रमण के साथ आयी बैंगलोर की टीम असहाय दिख रही थी तो अचानक ही इस लेखक के मन में ये ख्याल आया-
कोहली के इस्तीफे से भी कुछ नहीं बदला
वाकई में भला और क्या कर लेती बैंगलोर इस सीजन की वो ट्रॉफी जीतने का सूखा खत्म कर पाती? 2013 से ही विराट कोहली की कप्तानी को बैंगलोर की हार की सबसे बड़ी वजह माना जा रहा था. कोहली ने इस सीजन के शुरु होने से पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया. नये कप्तान फैफ डूप्लेसी में महेंद्र सिंह धोनी वाली सारी खूबियां थीं. पहले हाफ यानि कि पहले 7 मैचों में 5 जीतकर बैंगलोर ने बेहद आसानी से प्ले-ऑफ में जाने की उम्मीद जगायी. लेकिन, दूसरे हाफ में वो हांफते ही नजर आये. लेकिन, फिर उन्होंने दम भरा और एलिमिनेटर में लखनऊ जैसी धाकड़ टीम को मात दी.
कहा जाता था कि अक्सर बैंगलोर के साथ भाग्य नहीं रहता है लेकिन इस बार तो भाग्य भी उनके ड्रेसिंग रुम में 12वें खिलाड़ी की भूमिका में दिख रहा था, वरना अगर दिल्ली की टीम मुंबई के खिलाफ जीत गई होती तो बैंगलोर तो यहां तक भी नहीं पहुंचते.
दलील ये भी दी गई कि इस बार पूरी कायनात शायद ये साजिश कर रही है कि हर हाल में किसी तरह से बैंगलोर को कप जीतने का मौका मिल ही जाए. लेकिन, ऐसा मुंबई और चेन्नई जैसी एलीट टीमों के साथ ही होता है. या फिर कभी राजस्थान रॉयल्स जैसी टीमों के साथ चमत्कार होता है.
RCB से मिलता है जिंदगी का सबक
रॉयल कहने को भले ही रॉयल है, लेकिन आईपीएल में वो आपके और हमारे जैसे सामान्य लोगों की तरह है. ये वो लोग होते हैं जो तमाम प्रयासों और मुश्किलों को पार करने के बाद अपनी मंजिल के बेहद नजदीक आ जाते हैं, लेकिन फिर भी उसे हासिल नहीं कर पाते हैं. वो अपने विरोधी तो कभी अपने दोस्तों को वो हासलि करते देखकर ''काश!'' कहकर खामोश हो जाते हैं. बैंगलोर के साथ तो पिछले 15 सालों से ऐसा हो रहा है.
ना सिर्फ कोहली, उनके पास तो एबी डिविलियर्स, क्रिस गेल, युवराज सिंह और न जाने कौन-कौन से सूरमा थे, लेकिन चैंपियन वो कभी नहीं बन पाये और शायद जिंदगी का यही सबक बैंगलोर आपको, हमें और शायद हर किसी को देना चाहता है-
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, करती है अगली मंजिल तुमको इशारे...
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