टीम इंडिया को साउथ अफ्रीका में टेस्ट सीरीज हारे 24 घंटे भी ठीक से नहीं बीते थे कि कप्तान विराट कोहली (Virat Kohli) ने कप्तानी छोड़ने की घोषणा से हर किसी को चौंका दिया. लेकिन, कोहली का ये फैसला एक यथार्थवादी फैसला है और उन्हें ये समझ में आ चुका है कि आने वाले वक्त में भारतीय टेस्ट टीम में क्या-क्या बदलने वाला है.
टीम इंडिया साउथ अफ्रीका में टेस्ट सीरीज जीतने का सुनहरा मौका गंवा चुकी है और इस साल विदेशी जमीं पर उन्हें सिर्फ इंग्लैंड में एक टेस्ट खेलना है. वो भी इसलिए कि पिछली बार वो कोविड के मामले बढ़ने के कारण 5 मैचों की सीरीज पूरा नहीं कर पाये थे . भारत उस सीरीज में 2-1 से फिलहाल बढ़त पर है और मुमकिन है कि वो सीरीज 2-2 से बराबर हो या फिर भारत 3-1 या 2-1 से जीत भी ले.
लेकिन, भारतीय चयनकर्ता सिर्फ उस एक टेस्ट मैच को ध्यान में रखते हुए हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकते हैं क्योंकि अब समय आ गया है कि लाल गेंद की टीम में आमूल-चूल परिवर्तन किया जाए. कोहली को पता था कि सिर्फ एक टेस्ट के लिए उन्हें इंग्लैंड दौरे पर जिम्मेदारी नहीं दी जायेगी.
अनुभवी खिलाड़ियों के लिए काफी कुछ बदलेगा
कोहली की कप्तानी छोड़ने के बाद जो सबसे पहला और स्वाभाविक बदलाव हर किसी को दिख रहा है और अवश्यंभावी नजर आ रहा है, तो वो ये कि अंजिक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा अब टेस्ट टीम का हिस्सा नहीं होंगे.
भारत की अगली टेस्ट सीरीज श्रीलंका के खिलाफ है और अगर विराट कोहली सौंवें टेस्ट की दहलीज पर खड़ें नहीं होते तो शायद उन्हें भी कम से कम इस सीरीज के लिए आराम दिया जा सकता था.
रोहित शर्मा तो अनफिट होने के चलते साउथ अफ्रीका जा ही नहीं पाये और मुमकिन है कि उनकी इस सीरीज में वापसी हो. लेकिन, अब जरुरी ये है कि रोहित को ओपनर की बजाए पुजारा वाली जगह यानि की तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी के लिए कहा जाए. बतौर ओपनर रोहित ने इंग्लैंड दौरे पर दिखा दिया है कि वो संयमित होकर भी खेल सकते हैं और जरुरत पड़ने पर वो तीसरे नंबर पर आक्रामकता तो दिखा ही सकते हैं.
नई पीढ़ी को अब सही मौके देने की भरपूर कोशिश जरुरी
रोहित के मिडिल ऑर्डर में खेलने से टीम इंडिया को एक फायदा ये हो सकता है कि के एल राहुल और मयंक अग्रवाल के अलावा रितुराज गायकवाड़ और पृथ्वी शॉ जैसे भविष्य के विकल्पों को भी परखा जा सकता है.
टेस्ट क्रिकेट में भारत का असली इम्तिहान अब 2023 से शुरु होगा और जरूरी है कि भारतीय क्रिकेट नई पीढ़ी के टेस्ट क्रिकेटर को सही मौके देने की भरपूर कोशिश इसी साल करे.
2012 में राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण ने एक साथ एडिलेड में जनवरी के महीने में आखिरी बार टेस्ट क्रिकेट खेली. इन दोनों के पास कुल मिलाकर 200 से ज़्यादा टेस्ट मैचों का अनुभव था. इसे अचानक भर पाना आसान नहीं था. लेकिन, इस दौर में टीम इंडिया को रहाणे और पुजारा को वो मौके देने का मिला जिसके वो हकदार थे. तभी तो 2013 में महेंद्र सिंह धोनी ये फैसला कर पाये कि सचिन तेंदुलकर की आखिरी सीरीज भी साउथ अफ्रीका रवाना होने से पहले ही खत्म हो जाए.
धोनी की दलील थी कि वो 2013 में हर हाल में पुजारा-रहाणे को मौका देना चाहते हैं क्योंकि उन्हें एहसास था कि 2018 और 2021 में फिर से इन्हीं दोनों के खेलने के आसार ज्यादा थे.
मिडिल ऑर्डर में टीम इंडिया के पास शुभमन गिल को भी आजमाने का मौका है जो अब तक मजबूरी में सलामी बल्लेबाज की भूमिका निभा रहे थे. इतना ही नहीं, अब श्रैयस अय्यर और हनुमा विहारी को भी ज्यादा जिम्मेदारी मिलेगी क्योंकि चुनिंदा मौकों पर इन दोनों ने लाल गेंद की क्रिकेट में अपना लोहा मनवाया है. इसके अलावा विकल्प के तौर पर मुंबई के सूर्यकुमार यादव भी अपना दावा ठोक सकतें हैं.
भविष्य की राह देखनी है तो उसकी बुनियाद अब आज से
कुल मिलाकर देखा जाए तो बल्लेबाजी में बदलाव तो तय हैं लेकिन साथ ही गेंदबाजी में भी इशांत शर्मा और उमेश यादव के लिए बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं बची हैं. अगर साउथ अफ्रीका में इशांत को तीन मैचों में एक भी मौका नहीं मिला तो शायद अब उनके लिए संन्यास के लिए सोचने का वक्त भी आ गया हो.
कुछ यही हाल उमेश यादव जैसे अनुभवी गेंदबाज का हो चला है क्योंकि मोहम्मद सिराज एक तगड़े विकल्प के तौर पर सामने आ चुके हैं. मुमकिन है कि अगले साल रविचंद्रन अश्विन भी टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दें.
और फिर कौन जानता है कि कोहली और रोहित भी 2024 तक लाल गेंद से ओझिल हो जायें. यानि अगर भविष्य की राह देखनी है तो उसकी बुनियाद अब आज से चयनकर्ताओं को डालनी शुरु कर देनी होगी.
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