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ऑस्ट्रेलिया पर जीत,कोरोना वैक्सीन:साल भर के सूखे में खुशी के दो पल

दोनों खुशियां देने के लिए ‘युवा’ जिम्मेदार, देश शुक्रगुजार

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एक साल से पड़ा सूखा जैसे खत्म हुआ. पिछले साल इन्हीं दिनों की बात है जब हमारे देश पर भी मनहूस कोरोना का काला साया आने लगा था. आगे क्या हुआ, याद दिलाना जख्मों को कुरेदने जैसा है. ऐसा लगा था जैसे खुशियां हमसे रूठ गई हैं. अब एक साल बाद पूरे देश को, एक साथ, सामूहिक खुशी मिली है. गाबा में गजब की जीत की खुशी.

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'राष्ट्रीय खुशी' के लिए युवाओं को शुक्रिया

इस राष्ट्रीय खुशी के लिए हम टीम इंडिया के शुक्रगुजार रहेंगे. युवा खिलाड़ियों के शुक्रगुजार होंगे. सीनियर खिलाड़ी चोटिल हो गए थे. एक साथ कई. तो 11 के बाद वाले खिलाड़ी प्लेइंग 11 में आए थे. हेडलाइन बनने लगीं-ऑस्ट्रेलिया के सामने टीम इंडिया के अनुभवहीन खिलाड़ी. चौथे टेस्ट के पहले दिन तो एक हेडलाइन ये भी थी कि अनुभवहीन खिलाड़ियों के कारण ऑस्ट्रेलिया को फायदा मिल रहा है. स्वाभाविक भी था. उनके बेस्ट-11 और इधर जैसे रेस्ट-11. तीसरे टेस्ट में जब लग रहा था कि हार तय है तो हनुमा विहारी और अश्विन दीवार बन गए.

हनुमा विहारी जख्मी थे. हैमस्ट्रिंग के बावजूद सिडनी में तीसरे टेस्ट मैच के पांचवें दिन ऐसे डटे कि हटे ही नहीं. विहारी ने 161 गेंदों पर नाबाद 23 रन बनाए. इसी तरह अश्विन ने 128 गेंदों पर नाबाद 39 रन बनाए.

सारे लॉजिक को झुठलाकर दोनों 40 ओवर से ज्यादा टिक गए और ऑस्ट्रेलिया के हाथ जाती दिख रही जीत को बराबरी पर रोक दिया. मैच ही नहीं सीरीज भी बचा ली. बाद में अश्विन की पत्नी ने बताया कि जिस दिन वो 40 ओवर खेलते रहे उस सुबह ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे.

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बेस्ट 11 Vs रेस्ट 11

चौथे और निर्णायक टेस्ट मैच से पहले टीम की सेहत और खराब थी. बुमराह, अश्विन, जडेजा, सब अनफिट. चौथे टेस्ट के लिए प्लेइंग 11 को देखते तो यकीन नहीं होता कि ये नेशनल टीम है और वो भी टेस्ट की. रोहित शर्मा, शुभमन गिल, पुजारा, रहाणे, मयंक अग्रवाल, पंत, सुंदर, शार्दुल ठाकुर, नवदीप सैनी, सिराज, नटराजन. जैसे ऑस्ट्रेलिया वालों को इतने से ही मन नहीं भरा था. वो नस्लीय कमेंट कर रहे थे, गालियां बक रहे थे. शरीर तो चोटिल था, मन पर भी आघात कर रहे थे. इन सब हालातों के बीच चौथा टेस्ट पांचवें दिन में पहुंचा तो लग रहा ता ड्रॉ भी गनीमत है. आखिरी दिन का प्रेशर और 324 रन का टारगेट. लेकिन चुनौतियों के बावजूद टीम इंडिया जीत गई. कितनी बड़ी जीत?

1988 के बाद पहली बार ऑस्ट्रेलिया को गाबा हार का सामना करना पड़ा. ये टीम इंडिया की तीसरी सबसे बड़ी जीत थी. इस जीत से टीम इंडिया टेस्ट चैंपिनयशिप पॉइंट टेबल में टॉप पर पहुंच गई.
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हनुमा को 'हत्यारा' कहा था, याद है?

आज टीम इंडिया को बधाई देने वालों और टीम के जिताऊ युवाओं को बधाई देने वाले नेताओं की कतार लगी है लेकिन तीसरे टेस्ट में चोट के बावजूद चट्टान बन गए हनुमा विहारी को एक नेता ने धीमे खेलने के लिए क्रिकेट का हत्यारा तक करार दे दिया था. जबकि विहारी ने तीसरे टेस्ट में ड्रा की जो बुनियाद खड़ी की थी, उसी पर आज जीत की इमारत खड़ी हुई है. लेकिन नेताओं को तो जैसे हमारे युवाओं में कुछ न कुछ खोट निकालना ही होता है. विदेशी तक हमारे युवाओं का लोहा मान गए हैं.

ऑस्ट्रेलिया कोच जस्टिन लैंगर कह रहे हैं-आप कभी टीम इंडिया को कम नहीं आंक सकते. क्रिकेट मैदान से बाहर भी कभी अड़ जाने वाले, डट जाने वाले युवाओं को गंभीरता से लेने की सोचेंगे क्या?
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खुशी की एक और बात

खुशी से एक और बात याद आ रही है. कोरोना के काले युग में बड़ी खुशी तब भी आई जब वैक्सीन की खबर आई. निजी सेक्टर से. प्राइवेट कंपनियों से. वहां भी क्रेडिट लेने की होड़. जैसे नेताओं ने सबकुछ किया हो. क्या किया बताएं तो जरा? वैक्सीन यहां बनी या यहां प्रोड्यूस हो रही है, इसमें आपका क्या योगदान है? गाबा के युवा गब्बरों और इन कंपनियों में क्या तुलना? दुनिया की दिग्गज कंपनियों के सामने ये भी यंग नहीं हैं क्या? दूसरों को कारोबार की सहूलियत और यहां पिचहत्तर फजीहत. मानसिक आघात. खुशी के मौके पर फोटोऑप के लिए आगे आने वाले नेता इनपर भी थोड़ा ज्यादा भरोसा करेंगे क्या? एक करोड़ से ज्यादा कोरोना केस, डेढ़ लाख से ज्यादा मौतें, बेपटरी इकनॉमी. डिप्रेशन. बहुत धीमा खेले हैं आप. बहुत बुरा खेले हैं आप. हमारे 'युवा' प्राइवेट सेक्टर को खुलकर खेलने देंगे क्या? और खुशियां आएंगी.

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