ईशांत शर्मा- नॉर्थ जोन
मोहम्मद सिराज-साउथ जोन
जसप्रीत बुमराह- वेस्ट जोन
मोहम्मद शमी- ईस्ट जोन
लॉर्ड्स टेस्ट (Lord's Test) में शानदार जीत दिलाने वाले भारतीय तेज गेंदबाजों की चौकड़ी भारत के चार अलग-अलग दिशाओं से आती है. और इसमें अगर पाचवें गेंदबाज (उमेश यादव जो कि सेंट्रल जोन से आते हैं) को शामिल कर लिया जाए तो भारतीय इतिहास में आज तक इतनी विविधता वाला, इतने पैनापन वाला और सोने पे सुहागा यानी कि हर जोन के प्रतिनिधि करने वाला आक्रमण कभी भी नहीं था.
इसी खौफनाक गेंदबाजी आक्रमण बूते विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट में 36 टेस्ट जीत हासिल करने वाले कालजयी कप्तान क्लावइव लॉयड को पीछे छोड़ दिया है. गौरतलब है कि लॉयड के पास भी अपने जमाने में इतिहास का सबसे शानदार तेज गेंदबाजी आक्रमण हुआ करता था. क्या कोहली के योद्धा भी लॉयड के धुरंधर की तरह काबिल हैं? इस बात को तो फिलहाल कोई नहीं मानेगा लेकिन कौन जानता है जब कोहली का दौर खत्म हो और इतिहास इस गेंदबाजी आक्रमण का आकलन करे तो शायद ये इक्कीस ना भी हो तो मुमकिन है कि उन्नीस भी ना हो.
लॉर्ड्स ने दिखाया क्यों है ये खास आक्रमण?
पांचवे दिन का पहला सत्र खत्म हुआ तो लॉर्ड्स में जो सबसे मुमकिन नतीजा दिख रहा था वो ड्रॉ का था. इस मैदान ने हाल के सालों में तेज गेंदबाजों के लिए मददगार होने की छवि हासलि की थी लेकिन चार दिनों के खेल में इस पिच पर सिर्फ 28 विकेट ही गिरे तो और वो भी कुल 363 ओवर्स के खेल में. भारत को आखिरी दो सत्र में चाहिए थे 10 विकेट सिर्फ 60 ओवर के भीतर.
इतिहास को गलत साबित करने का था इस आक्रमण पर दबाव
टीम इंडिया की मुश्किलें और बढ़ गईं जब उन्हें आखिरी सत्र में जीत हासिल करने के लिए 6 विकेट की जरूरत थी.
विदेश में इससे पहले कभी भी भारत ने आखिरी सत्र में 6 विकेट लेकर जीत दर्ज नहीं की थी. लेकिन, इस आक्रमण ने वही कर दिखाया. वन-डे क्रिकेट में एक पारी को खत्म होने में 50 ओवर का समय लगता है और इस आक्रमण ने इंग्लैंड की चौथी पारी को टेस्ट क्रिकेट में 52 ओवर के भीतर समेट दिया.. अगर इंग्लैंड सिर्फ 49 गेंद और झेल जाता तो वो बच निकलता, नाटिंघम की तरह जहां पहले टेस्ट में बारिश के चलते मेजबान हार से बच गये थे.
गेंद थामने से पहले बल्ले से दिखाया अपना इरादा
लॉर्ड्स में बल्लेबाजी करने के लिए उतरने से पहले शमी और बुमराह का टेस्ट औसत 11.23 और 3.55 का था. सामान्य भाषा में कहा जाय तो उन्हें पूछल्ले बल्लबेजा से ज्यादा कुछ और नहीं माना जा सकता था. लेकिन, हौसले और जिगर से इन दोनों ने दिखाया कि मुसीबत में अगर हिम्मत रखें तो आपके कौशल से ज्यादा आपका नजरिया हारी बाजी को पलट सकता है.
वाह रे साझेदारी!
शमी के अर्धशतक को तो आप नहीं भूलेंगे लेकिन बुमारह की नाबाद 34 रन की पारी को क्या कहेंगे जो इंग्लैंड की दूसरी पारी में किसी भी बल्लेबाज से बड़ी पारी थी?
ये बुमराह और शमी की 89 रनों की साझेदारी का ही असर था कि इंग्लैंड को जीत के लिए 271 रनों की चुनौती मिली वर्ना 200 के भीतर का लक्ष्य मिलता. इस साझेदारी ने इंग्लैंड से मैच में जीत के बारे में सोचने के विकल्प को ही छीन लिया और आखिरी दिन 60 ओवर किसी तरह से बचे रहने की कवायद ने उनके लिए पहाड़ जैसी मुसीबत खड़ी कर दी.
मोहम्मद सिराज, ये नाम मत भूलना मियां!
एक साल पहले तक जिस गेंदबाज को ऑस्ट्रेलिया दौरे पर इसलिए चुना गया क्योंकि सीनियर गेंदबाज ईशांत चोटिल हो गये थे, आज आलम ये है कि पहले टेस्ट मैच में ईशांत और सिराज के बीच में से किसी एक को चुनने की बारी आयी तो अनुभवी ईशांत के बदले सिराज के युवा जोश को टेस्ट सीरीज के पहले मुकाबले में तरजीह दी गई.
के एल राहुल को भले ही उनकी शानदार शतकीय पारी के लिए मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार मिला हो लेकिन इसमें शायद ही कोई दो राय हो कि दोनों पारियों में 4-4 विकेट लेने वाले सिराज ने अपने दम पर इस आक्रमण में एक अलग तरह की ऊर्जा और स्फूर्ति डाली है जिसक चलते ही तो ये पेस आक्रमण भारतीय इतिहास ही नहीं दुनिया के सर्वकालीन महान आक्रमण में खुद को शामिल किये जाने की जिद किये जा रहा है जिसे अब नजरअंदाज करना मुश्किल होता जा रहा है.
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