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यत्र नारी पूजयन्ते, रमन्यते तत्र ओलंपिक मेडल

इन्हें "भारत की बेटियां" कहकर इस जीत में सहभागी दिखने के लिए भी भारत को एक लंबा सफर तय करना है

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दंगल फिल्म में महावीर सिंह फोगाट का किरदार कहता है "म्हारी छोरियां छोरों से कम है के" लेकिन टोक्यो ओलंपिक में भारत को मिले अब तक के 3 मेडल विजेता 'त्रिदेवियों' को देखकर बेशक कहा जा सकता है "म्हारी छोरियां छोरों से आगे हैं".

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एक ऐसा देश जहां परिवार बहुत खुले विचारों वाला हो तो बेटियों को 'राजा बेटा' कहता हो, आए दिन खाप पंचायतें और मुख्यमंत्री-नेता लड़कियों के कपड़े पहनने ,फोन रखने और देर रात बाहर घूमने पर खुला फरमान जारी करते हो वहां मीराबाई चानू ,पीवी सिंधु और लवलीना की जीत आपने आप में एक स्टेटमेंट है.

रविवार, 1 अगस्त को भारत की स्टार शटलर पीवी सिंधु ने ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया .लवलीना ब्रॉन्ज मेडल पक्का करके सेमीफाइनल में जगह बना चुकी हैं और भारत के लिए शानदार प्रदर्शन करके मीराबाई चानू वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल अपने नाम कर चुकी हैं. ये हैं भारत की शानदार त्रिदेवियां

पीवी सिंधु

पीवी सिंधु ने रविवार ,1 अगस्त को बैडमिंटन वुमन सिंगल्स में चीन की प्रतिद्वंदी बिन जियाओ को हराकर ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. इसके पहले रियो ओलंपिक में भी सिंधु ने सिल्वर मेडल जीता था. यानी सिंधु दो ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी हैं.

यकीनन पीवी सिंधु के लिए यह सफर आसान नहीं रहा है. उन्होंने कम उम्र में ही बैडमिंटन में दिलचस्पी दिखाई और माता-पिता ने उन्हें पूरा सहयोग दिया.

12 साल से अधिक समय तक उनके पिता उनको पुलेला गोपीचंद के एकेडमी ले जाने के लिए सुबह 3:00 बजे उठाते थे और ट्रेनिंग के लिए ले जाते थे .दोनों हर दिन ट्रेन से 60 किलोमीटर का सफर तय करके एकेडमी पहुंचते थे और उतना ही सफर तय करके वापस घर आते थे.

लवलीना बोरगोहेन

असम से ताल्लुक रखने वाली भारतीय मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन भारत के लिए कम से कम ब्रॉन्ज मेडल पक्का कर चुकी हैं. उन्होंने 30 जुलाई को खेले गए वेल्टरवेट वर्ग के अपने मुकाबले में चीनी ताइपे की निएन-चिन चेन को 4-1 से हराया.

कमाल देखिए कि मेडल जीतने के बाद असम सरकार उनके परिवार और उनके गांव बारोमुखिया के लोगों को खुश रख करने के लिए गोलाघाट जिले के सरूपथर से लवलीना के घर तक की कच्ची सड़क की मरम्मत में जुटी है. अब तक बारिश से हाल बदहाल था और सड़क पूरी तरह से कीचड़ में बदल चुकी थी.
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मीराबाई चानू

24 जुलाई को टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए पहले ही दिन शानदार आगाज करते हुए मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल दिलाया था. 49 किग्रा वेटलिफ्टिंग कैटेगरी में चालू ने स्नैच में 87 किग्रा और क्लीन एंड जर्क में 115 किग्रा के साथ कुल 202 किग्रा भार उठाया था.

रियो ओलंपिक में मेडल के लिए फेवरेट मीराबाई असफल रही थी और कुछ समय के लिए डिप्रेशन में भी चली गई थीं.टोक्यो में इस जीत के पीछे संघर्ष की अपनी कहानी है.उनकी मां सैखोम तोम्बी देवी के अनुसार

"ऐसे भी दिन थे जब मीराबाई हमारे आधे एकड़ पट्टे के खेत में लकड़ियां ढोती थी.मेरे बच्चों में मीराबाई ही है जो मेरे साथ समय बिताती थी और खेतों में मदद करती थी".

इन त्रिदेवियों की सफलता को भले ही भारत गर्व के साथ तमगे की तरह प्रदर्शित करे लेकिन इन्हें "भारत की बेटियां" कहकर इस जीत में सहभागी दिखने के लिए भी भारत को एक लंबा सफर तय करना है. समय आ गया है जब हम प्यार जताने के लिए बेटियों को 'राजा बेटा' ना बोले. उन्हें अपनी योग्यता साबित करने के लिए 'बेटा' होने की जरूरत नहीं है.

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