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दिल्ली में मोबाइल, इंटरनेट पर बैन था गैरकानूनी, समझिए कैसे 

संचार मंत्रालय के 2017 के नोटिफिकेशन के अनुसार पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) की ओर से जारी यह आदेश वैध नहीं है.

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नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में प्रदर्शन के दौरान राष्ट्रीय राजधानी के कुछ हिस्सों में 19 दिसंबर गुरुवार को इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं ठप रहीं.एयरटेल, वोडाफोन, आयडिया, जिओ और यहां तक कि महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) जैसे टेलीकॉम ऑपरेटरों को राजधानी के चुनिन्दा हिस्सों में सेवाएं बंद रखने का आदेश दिया गया.

दूरसंचार कंपनियों को 19 दिसंबर की सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच सेवाएं बंद रखने का एक आदेश 18 दिसंबर को पुलिस उपायुक्त के दफ्तर की ओर से जारी हुआ. उन्होंने पुलिस की स्पेशल सेल के आदेश का पालन किया. दिल्ली में टेलीकॉम ऑपरेटरों को सेवाएं ठप रखने का आदेश दिया गया

लेकिन कानून के जानकारों ने कहा है कि यह आदेश बगैर किसी आपात स्थिति और हिंसा की आशंका के जारी किए गये और ऐसा नहीं लगता कि इंटरनेट सेवाओं पर यह रोक कानून व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए जरूरी था. सक्षम अधिकारियों की ओर से यह आदेश जारी नहीं हुआ.

संचार मंत्रालय के 2017 के नोटिफिकेशन के अनुसार पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) की ओर से जारी यह आदेश वैध नहीं है.
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क्यों अवैध है पुलिस का आदेश?

संचार मंत्रालय के 2017 के नोटिफिकेशन के अनुसार पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) की ओर से जारी यह आदेश वैध नहीं है, क्योंकि इसमें दूरसंचार सेवाओं को अस्थायी रूप से निलंबित करने के लिए आवश्यक नियमों का पालन नहीं किया गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि कानून के मुताबिक केंद्रीय गृह सचिव या राज्य गृह सचिव की ओर से अधिकृत ज्वाइंट सेक्रेट्री रैंक से नीचे का कोई भी व्यक्ति इंटरनेट सेवाओं के अस्थायी शटडाउन का आदेश नहीं जारी कर सकता.

सुप्रीम कोर्ट के वकील और इंटरनेट फ्रीडम फाउन्डेशन के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अपार गुप्ता का मानना है कि इस आदेश को किसी लीगल अथॉरिटी की ओर से जारी नहीं किया गया है.

“कई तरह की अनियमितताएं हैं, क्योंकि यह एक पत्र है आदेश नहीं. इससे मेरा मतलब है कि वे (पुलिस उपायुक्त) इसके जरिए कोई संदर्भ, स्थिति या केंद्र की ओर से लागू करना या कानून प्रावधान जैसी स्थिति नहीं बता रहे हैं. यह पूरी तरह से अवैध है.
अपार गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट केवकील और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर
इस बारे में तय किए गये नियम बहुत स्पष्ट हैं, जो नेटवर्क सस्पेंशन रूल्स के सेक्शन 2.1 में दर्शाए गये हैं : “केंद्र सरकार के मामले में गृहसचिव और राज्य सरकार के मामले में गृह सचिव के आदेश के बगैर दूर संचार सेवाओं को निलम्बित करने का निर्देश जारी नहीं किया जा सकता.”
संचार मंत्रालय की अधिसूचना
संचार मंत्रालय के 2017 के नोटिफिकेशन के अनुसार पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) की ओर से जारी यह आदेश वैध नहीं है.

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन इस घटना पर थोड़ी और जानकारी लेगा और इस आदेश के विरुद्ध जवाब हासिल करने के बाद कानूनी कदम उठाएगा. पॉलिसी डायरेक्टर, एक्सेस रमन चीमा ने भी इस ओर इशारा किया है कि नियम इस तरह से बनाए गये हैं कि निश्चित समय-सीमा के भीतर रिव्यू कमेटी से होते हुए आदेश जारी हों.

“नियमों के अनुसार शटडाउन का आदेश केवल केंद्र और राज्य सरकार दे सकती है और वह भी खास प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद. आपात स्थिति में शटडाउन का आदेश तभी हो सकता है, जब रिव्यू कमेटी इस पर मुहर लगा दे. इस प्रक्रिया के तहत दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच इसे जारी करने की शक्ति से लैस नहीं है. अगर उन्होंने ऐसा किया है तो इसे निश्चित अवधि के भीतर किसी अधिकारी की ओर से पुष्टि करने की जरूरत है चाहे वह दिल्ली के गृह सचिव हों या फिर गृहमंत्रालय.
रमन चीमा, पॉलिसी डायरेक्टर, एक्सेस नाउ
सही सवाल पूछने का वक्त

तो गलती किसने की, क्या शटडाउन को टाला जा सकता था?

स्वतंत्र अनुसंधानकर्ता श्रीनिवास कोडाली ध्यान दिलाते हैं कि दूरसंचार की कानूनी टीम पर यह आरोप निर्भर करता है कि उनके मुताबिक किन्हें आदर्श रूप में प्रक्रियाओँ का पालन करना चाहिए. वे आगे कहते हैं, “केवल इसलिए कि उपायुक्त आदेश दे रहे हैं, आप सेवाओं को बंद नहीं कर सकते. नियम आपात स्थितियों के लिए बनायी गयी है. इस मामले में क) कोई आपात स्थिति नहीं थी, ख) अगर आपात स्थिति है, तो उन्होंने नियमों का पालन नहीं किया है.”

लेकिन मीडियानामा के संस्थापक और सेव द इंटरनेट के सह संस्थापक निखिल पाहवा मानते हैं कि यह कोई पहला मौका नहीं है, जब डीसीपी रैंक के अधिकार ने देश में मोबाइल सेवाओं को ठप करने का आदेश जारी किया है. उन्होंने कहा, “डीसीपी की ओर से आदेश जारी होने के बाद भी सरकार पर उंगली उठाने कौन जा रहा है और कौन है जो पूछे कि सेवाओं को ठप करने की क्या वजह रही?”

हाल के वर्षों में देश के कई हिस्सों में मोबाइल सेवाएं ठप हुई हैं मगर राजधानी में उदाहरण कम हैं. पाहवा कहते हैं, “ऐसी कार्रवाई बताती है कि सरकार इंटरनेट को प्रतिबंधित करके अभिव्यक्ति की आजादी पर नियंत्रण का प्रयास कर रही है और दूर संचार कंपनियों के पास ऐसे आदेश को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता.”

चीमा मानते है कि यह पूछे जाने की जरूरत है कि शटडाउन के आदेशों की समीक्षा कौन कर रहा है, “आपात आदेशों की समीक्षा होनी चाहिए. सरकार से कोई पूछे कि दिल्ली में आदेशों की समीक्षा कौन कर रहा है और क्या ये आदेश नेटवर्क सस्पेंशन रूल्स 2017 के तहत जारी किए गये हैं.”

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