ADVERTISEMENTREMOVE AD

जलवायु परिवर्तन बढ़ा रहा जानलेवा डेंगू, चिकनगुनिया और जीका वायरस?

COP26 की अहमियत ऐसे समझिए कि जलवायु परिवर्तन पर्यावरण ही नहीं हमारी सेहत का भी दुश्मन है

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

ग्लासगो (Glasgow ) जलवायु सम्मेलन (COP26) में दुनिया जलवायु को बचाने पर माथापच्ची कर रही है. आमतौर पर यही माना जाता है कि धरती का तापमान बढ़ेगा तो आपदाएं आएंगी, और जानें जाएंगी लेकिन सच ये है कि जलवायु परिवर्तन से डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसी वेक्टर जनित रोगों और डायरिया, कुपोषण, दिल और किडनी संबंधी बीमारियों को बढ़ावा मिल रहा है और मानसिक सेहत भी बिगड़ रही है. जाहिर है विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जलवायु परिवर्तन को 21वीं सदी में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा संकट घोषित किया हुआ है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आपकी सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन, जलवायु परिवर्तन

हाल ही में मशहूर मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ ने अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की है, जिसमें जलवायु परिवर्तन की वजह से गंभीर होने वाली 44 स्वास्थ्य समस्याओं की सूची दी गई है. इस सूची में गर्मी से होने वाली मौतों, संक्रामक रोग, कुपोषण और भूख जैसे स्वास्थ्य मुद्दों को शामिल किया गया है. रिपोर्ट के सह-लेखक डॉ. रेनी सालास के मुताबिक जलवायु परिवर्तन स्वास्थ्य संकट का नंबर एक कारण है.

बीते 13 अक्टूबर, 2021 को जारी डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के मुताबिक 2030 और 2050 के बीच, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों जैसे कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और गर्मी से हर साल लगभग 2,50,000 अतिरिक्त जानें जा सकती हैं.

डेंगू और जलवायु परिवर्तन में संबंध

तापमान बढ़ने से कई बीमारियां, जो पहले कुछ स्थानों पर नहीं पाई जाती थीं वे भी उन स्थानों में फैल सकती हैं. जैसे पहले डेंगू फैलाने वाले एडीज एजिप्टी मच्छर आमतौर पर समुद्र तल से 1005.84 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले जगहों पर नहीं पाए जाते थे पर अब जलवायु परिवर्तन की वजह से कोलम्बिया में 2194.56 मीटर की ऊंचाई पर बसे जगहों में भी पाए जाने लगे हैं.

ऐसे ही कीट-पतंगों अथवा मच्छर-मक्खियों द्वारा फैलने वाली बीमारियां, चूहों से फैलने वाले बीमारियां जो पहले यूरोप और अमेरिका महाद्वीप में ज्यादा नहीं पाए जाते थे, उनके मामलों में वहाँ भी तेज रफ्तार से इजाफा हो रहा है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मच्छर जनित बीमारियां: जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान बढ़ने पर दुनियाभर में मच्छरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. मच्छरों द्वारा फैली बीमारियों से हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है. दुनियाभर में पिछले 30 सालों में डेंगू के मामले 30 गुना बढ़ गए हैं. डेंगू, चिकनगुनिया, जीका, यलो फीवर, यह सभी बीमारियां एडीज एजिप्टी मच्छर द्वारा इंसानों में फैलती हैं.

तापमान और बारिश एडीज एजिप्टी मच्छर पर गहरा प्रभाव डालते हैं, इनके चलते इन मच्छरों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है. जलवायु परिवर्तन के चलते बाढ़, सूखा, शीत और हीट वेव, जैसी घटनाओं में इजाफा हो रहा है, जिसका असर मच्छरों की आबादी पर पड़ रहा है.

इसी साल अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और उसके कारण आने वाले मौसम की चरम घटनाओं के चलते मच्छरों की आबादी में बेतहाशा इजाफा हो सकता है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सांस से जुड़ी बीमारियां: तापमान के बढ़ने पर न केवल गर्म हवाएं बढ़ने से लोगों को सांस की बीमारियां दे रही हैं, बल्कि हवा में प्रदूषक तत्वों (पार्टीकुलेट मैटर) की मात्रा बढ़ने से लोगों में फेफड़े का कैंसर और दमा जैसी सांस की गंभीर बीमारियों के बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है.

जलवायु परिवर्तन से हवा में कार्बन डाइऑक्साइड के साथ-साथ लेड की धुंध, कार्बन पार्टिकल्स, सल्फर डाइऑक्साइड और धूल के कण भी बढ़ते हैं. हवा में मौजूद ये पार्टिकल्स साँस के साथ अन्दर जाने पर फेफड़ों के रोग पैदा हो सकते हैं और हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी गिरावट आती है.

डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ़ एक ऐसा बिल तैयार हो रहा है जिसका भुगतान भावी पीढ़ियों को करना होगा, बल्कि इसकी कीमत मौजूदा दौर में लोग अपने स्वास्थ्य से चुकाएंगे. यह नैतिक दृष्टि से ज़रूरी है कि देशों के पास जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई के लिए संसाधन हों और वे वर्तमान और भविष्य में अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सके.

कुपोषण: पहले कुपोषण के लिए गरीबी, शिक्षा और साफ-सफाई की कमी को माना जाता था. लेकिन बीते कुछेक वर्षों में हुए अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की वजह से आहार में विविधता कम हो रही है साथ ही उसमें पोषक तत्वों की मात्रा भी गिरावट आ रही है.

‘लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट 2019’ के मुताबिक अगर वैश्विक तापमान बढ़ता गया, तो प्रत्येक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से गेहूं की उपज 6 प्रतिशत, चावल 3.2 प्रतिशत, मक्का 7.4 और सोयाबीन की उपज में 3.1 फीसदी तक की गिरावट आ जाएगी। ऐसी स्थिति में कुपोषण का दायरा निश्चित रूप से बढ़ेगा.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

संक्रामक बीमारियां: जलवायु परिवर्तन की वजह से संक्रामक रोगों के मामलों पर प्रभाव पड़ सकता है. मच्छर, जूं और मक्खियां तापमान और आर्द्रता में सूक्ष्म बदलाव को लेकर बहुत ही संवेदनशील होते हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से पेचिश, डायरिया, मियादी बुखार और हैजा जैसी संक्रामक बीमारियों में बढ़ोत्तरी होगी ही साथ ही नई-नई बीमारियां भी उभर सकती हैं

ये बीमारियाँ सर्दी-जुकाम की तरह साधारण भी हो सकती हैं और टीबी जैसे खतरनाक भी. ये दुनिया के किसी एक हिस्से तक ही सीमित रह सकती हैं या फिर महामारी बनकर पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले सकती है. जर्नल ‘साइंस ऑफ द टोटल एनवायरंमेंट’ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक सार्स, मर्स और कोविड-19 जैसी महामारियों की उत्पत्ति में जलवायु परिवर्तन की भी भूमिका हो सकती है.

दिल की बीमारियां: इसी महीने अमेरिकन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी (एएसएन) किडनी वीक-2021 में ऑनलाइन प्रस्तुत एक अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण का हानिकारक असर हमारे दिल पर भी पड़ता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
इसकी वजह से दिल की बीमारियों या कार्डियोवस्कुलर डिजिज में बढ़ोत्तरी हो सकती है और कोरोनेरी हार्ट डिजिज, हार्ट फेल, एरिथिमियास होने की आशंका भी बढ़ जाती है. 2017 में लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में सर्वाधिक मौतें दिल की बीमारियों से होती हैं और जलवायु परिवर्तन की वजह से अधिक सर्दी और अधिक गर्मी पड़ने पर इसका प्रत्यक्ष प्रभाव दिल की सेहत पर पड़ेगा.

किडनी पर घातक प्रभाव: 'द लैंसेट रीजनल हेल्थ-अमेरिकाज' जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के मुताबिक किडनी की बीमारी के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले 7.4 प्रतिशत मामलों के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

इस अध्ययन का यह स्पष्ट निष्कर्ष है कि दैनिक औसत तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से किडनी रोगियों की संख्या में भी एक प्रतिशत बढ़ोत्तरी हो जाती है. 2017 में दुनिया भर में में 26 लाख लोगों की मौत किडनी की बीमारियों के कारण हुई थी. विशेष बात यह है कि किडनी से जुड़ी बीमारियों से मौतों में पिछले दस वर्षों की तुलना में 26.6 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई और इस बात के संकेत मिले हैं कि इस बढ़ोत्तरी में जलवायु परिवर्तन का भी योगदान रहा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मानसिक बीमारियां: इन दिनों जलवायु परिवर्तन के बारे में काफी कुछ कहा जा रहा है लेकिन इसको लेकर दुनिया में रहने वाले लोगों पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में काफी कम सुनने को मिलता है.

‘वर्ल्ड साइकियाट्री जर्नल’ में प्रकाशित कई रिपोर्टों से यह स्पष्ट हो चुका है कि जलवायु परिवर्तन से भावनात्मक प्रतिक्रियाओं में बदलाव होगा, जिसकी वजह से मनोरोगियों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी होगी. बढ़ते तापमान और बदलते मौसम की वजह से लोग एंजायटी, अनिद्रा, डिप्रेशन, स्ट्रैस जैसे कॉमन मेंटल डिसॉर्डर्रस का शिकार हो रहे हैं.

ऊपर हमने जलवायु परिवर्तन की वजह से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुछ ही प्रभावों की चर्चा की है, वास्तव में इन प्रभावों की संख्या अनगिनत हो सकती है. हमें इस बात को स्वीकारने की जरूरत है कि दीर्घ अवधि का जलवायु परिवर्तन जलवायु से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में और बढ़ोत्तरी कर सकता है और स्थिति और भी भयावह हो सकती है. अभी भी लोग इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. इसको लोग गंभीरता से तभी लेंगे जब वे इसे एक पर्यावरणीय समस्या के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी चिंता के रूप में भी स्वीकार करेंगे.

(लेखक एक साइंस ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वो लगभग 7 सालों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. उनकी एक किताब और तकरीबन 150 लेख प्रकाशित हो चुके हैं.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×