4 अगस्त को वेनेजुएला की राजधानी काराकास में जो हुआ, वो एक नए तरह के युद्ध और अपराध की तरफ इशारा करता है. वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मदुरो को विस्फोटक से भरे ड्रोन के जरिए मारने की कोशिश की गई. जिस वक्त ये हमला हुआ, उस वक्त मदुरो खुले मैदान में संबोधित कर रहे थे. संबोधन के दौरान ही अचानक एक उड़ती हुई चीज आती दिखी, फिर धमाका हुआ. किसी देश के सबसे बड़े ओहदे पर बैठे शख्स पर ड्रोन के जरिए ऐसा हमला शायद पहली बार हुआ.
इसी के साथ ड्रोन के जरिए नेताओं और दूसरी हस्तियों पर हमले की आशंका बढ़ी है. इतना ही नहीं, पहले जो मशीनों और रोबोट की लड़ाई आप सिर्फ हॉलीवुड फिल्मों में देखा करते थे, उसके अब असल जिंदगी में भी होने का खतरा बढ़ रहा है. ऐसे में पहले जानते हैं कि ड्रोन के जरिए वेनेजुएला में हुआ ये हमला बेहद बड़ी घटना क्यों है.
हमला क्या ट्रेंड बताता है?
करीब 27 साल पहले तमिलनाडु में राजीव गांधी की आत्मघाती हमले में मौत हो गई थी. एक महिला के शरीर पर बम बंधा हुआ था, जिसने हमले को अंजाम दिया. इन दोनों घटनाओं की तुलना करने पर दो अंतर समझ आता है,
पहला,
- राजनेताओं को मारने, आतंक को बढ़ाने में अब इंसान की जगह मशीन का इस्तेमाल शुरू हो गया है
इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने तो पूरी की पूरी एयरफोर्स ही बना दी थी, जो रिमोट कंट्रोल के जरिए चलाई जाती थी. UAV यानी रिमोट कंट्रोल के जरिए ऑपरेट होने वाले एयर-व्हीकल का इस्तेमाल अपराधी ड्रग तस्करी में भी करते आए हैं. मैक्सिकन ड्रग तस्करों के ऐसे कई उदाहरण हैं, जब उन्होंने छोटे-छोटे ड्रोन के जरिए ड्रग्स की तस्करी की है.
दूसरा,
- युद्ध के 'नियम' भी नहीं माने जा रहे हैं, इंसान की हत्या अब मशीनों के जरिए शुरू हो गई है
युद्ध का जिक्र इसलिए है, क्योंकि कई देशों ने अब युद्ध में आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करने की तैयारी कर ली है. अमेरिका और चीन ऐसे ही देश हैं. यहां तक कि भारत ने भी हाल ही रक्षा बलों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) के इस्तेमाल पर काम करना शुरू कर दिया है. इस प्रोजेक्ट का मकसद सुरक्षाबलों को मानवरहित टैंक, एयरक्राफ्ट, रोबोटिक हथियारों से लैस करना है.
भारत में भी AI के जरिए लड़ाई की तैयारी शुरू
रक्षा सचिव (प्रोडक्शन) अजय कुमार कहते हैं, ''ये अगली पीढ़ी के युद्ध के लिए भारत की तैयारी है. भविष्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ही है. हमें अगली पीढ़ी के युद्ध के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है, जो ज्यादा से ज्यादा तकनीक आधारित, स्वचालित और रोबोटिक सिस्टम पर आधारित होगी.''
इस लड़ाई की कल्पना कर सकते हैं?
इन सारी तैयारियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि फ्यूचर वॉर का तरीका काफी अलग हो सकता है. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक तरफ दुनिया के सबसे मजबूत धातुओं से बने बड़े-बड़े हथियारबंद रोबोट हों, अपने आप चलने वाले टैंक हों, दूसरी तरफ हाड़-मांस के बने इंसान. इस लड़ाई का नतीजा तो हमेशा इंसानों का खात्मा ही होगा.
ऐसे में जब हम इसकी कल्पना तक नहीं कर पा रहे हैं, अमेरिका, चीन, फ्रांस जैसे देशों से रोबोट और मशीनों के जरिए वॉर की टेस्टिंग की रिपोर्ट सामने आ रही है. हालांकि दुनियाभर में युद्ध के इस रूप पर चिंता भी जताई जा रही है. गूगल समेत कई बड़ी टेक कंपनियों ने ये वादा किया है कि वो कभी ऐसी टेक्नोलॉजी डेवलप नहीं करेंगे, जो इंसानों को मारने में या हथियार के काम आए.
हालांकि इस बात में कोई शक नहीं है कि गूगल के 'ऑटो पायलट' कार, यानी बिना ड्राइवर के चलने वाली कार जैसे इनोवेशन युद्ध में इस्तेमाल हो सकने वाले मानव रहित टैंक की वजह बन सकते हैं.
अमेरिका कई मील आगे है
अमेरिका ड्रोन के सहारे अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में आतंकियों के गुप्त ठिकानों को निशाना बनाता रहा है. साथ ही AI के इस्तेमाल में दूसरे देशों से आगे है. अब चीन भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिसर्च और मशीनों से जुड़ी स्टडी में अरबों डॉलर का इंवेस्टमेंट कर रहा है. चीन की तैयारी है कि वो साल 2030 तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन जाए. ऐसे में भारत की चिंता है कि इस वॉर गेम में वो चीन और अमेरिका से ज्यादा पिछड़ न जाए.
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