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मंगल ग्रह के टिकट के लिए देश में क्यों मची आपाधापी,ऑप्शन ये भी हैं

मंगल ग्रह सैर करने का दिल है तो यहां है खास उपाय, जानिए क्यों है लोगों को मंगल ग्रह जाने की उत्सुकता

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साइंस
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नई-नई जगहों को देखने का शौक अब लोगों को मंगल ग्रह तक खींच लाया है. इस शौक को पूरा करने का और अपनी रिसर्च को नए आयाम तक पहुंचाने का जिम्मा नासा (National Aeronautics and Space Administration ) ने उठाया था.

खास बात ये है कि शौक को पूरा करने के मामले में भारत के लोग कैसे पीछे रह सकते हैं. करीब 1 लाख 40 हजार भारतीयों ने भी नासा को एप्लीकेशन भेजा है, एप्लीकेशन की संख्या के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है. साफ कर दें कि ये सैर आपकी नहीं होगी आपके ‘नाम’ की होगी.

आपका नाम लिखा हुआ चिप नासा के अगले मिशन में मई 2018 में मंगल पर ले जाया जाएगा. इसके लिए दुनियाभर से उसे 24 लाख 29 हजार एप्लीकेशन मिले हैं. साल 2030 तक मंगल ग्रह पर इंसान पहुंचाने की भी नासा की योजना है.

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अब ऐसा क्या है मंगल ग्रह में जो हिंदुस्तानियों समेत पूरी दुनिया के लोगों का ध्यान खींच रहा है. ऐसे में पहले 360 डिग्री तस्वीर में मंगल ग्रह को देख और समझ लीजिए.

अब यहां तक आपका नाम पहुंचने के लिए ऐसे ही एक टिकट की जरूरत है.

मंगल ग्रह सैर करने का दिल है तो यहां है खास उपाय, जानिए क्यों है लोगों को मंगल ग्रह जाने की उत्सुकता
(साभार: ट्विटर\@WilliamShatner)
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फिलहाल, मई 2018 के मिशन के लिए एप्लीकेशन भेजने का समय खत्म हो चुका है, अगली ट्रिप के नोटिफिकेशन के बारे में अपडेट रहना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें.

मंगल ग्रह सैर करने का दिल है तो यहां है खास उपाय, जानिए क्यों है लोगों को मंगल ग्रह जाने की उत्सुकता
(फोटो: नासा)
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दूसरे ग्रहों के अपेक्षा मंगल ग्रह में खास क्या है?

सोलर सिस्टम में मंगल ही ऐसा ग्रह है जिसकी तुलना अक्सर धरती से होती है.

Q-जानकारी : सोलर सिस्टम में दो तरह के ग्रह होते हैं, Terrestrial planet (स्थलीय ग्रह) वो ग्रह हैं जो धरती की तरह के संरचना के होते है. वहीं दूसरे होते हैं Gas giant (गैसीय ग्रह), जहां गैस की मौजूदगी ज्यादा होती है.

मंगल भी Terrestrial planet है, यहां का क्लाइमेट भी धरती के ही तरह का बताया जाता है, कार्बन डाइ ऑक्साइड की अधिकता वाले यहां के वातावरण को दुनियाभर के वैज्ञानिक धरती की ही नई जमीन के तौर पर तैयार करने की रूपरेखा में जुटे हैं.

मंगल तक पहुंच बनाने का पहला सफल मिशन सोवियत यूनियन ने साल 1960 में तय किया. इससे पता चल पाया कि आखिर धरती से कितना अलग है ये ग्रह. इसके बाद से अबतक 70 से ज्यादा तरीके के मिशन मंगल ग्रह के लिए हो चुके हैं.

मंगल ग्रह सैर करने का दिल है तो यहां है खास उपाय, जानिए क्यों है लोगों को मंगल ग्रह जाने की उत्सुकता
मंगल ग्रह की 360 डिग्री
(फोटो साभारः फेसबुक)
Q-जानकारी: पेरू के लीमा में अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (सीआईपी) ने मंगल ग्रह पर आलू उगाने की संभावनाओं को जानने के लिए कई प्रयोग किए. प्रयोगों से ये भी पता चला कि आलू को अधिक तापमान वाले मौसम में भी उपजाया जा सकता है.   

मंगल ग्रह के पहले मिशन से पहले ये भी माना जाता रहा है कि वहां पर पानी की मौजूदगी है. या ऐसा वातावरण है जिसमें पानी कभी न कभी आ सकता है. वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि अरबों साल पहले कुछ न कुछ ऐसा हुआ है जिससे मंगल की जमीन पर पानी खत्म हो गया. कारणों की तलाश के लिए चलाया हुआ नासा का अभियान अभी जारी है.

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मंगल में जीवन की ओर एक कदम और...

सितंबर के महीने में वैज्ञानिकों ने मंगल पर बोरॉन भी ढूंढ ही निकाला, इसका मतलब ये निकाला गया कि कभी न कभी तो इस ग्रह पर रहने लायक वातावरण होगा. बता दें कि शरीर में DNA की ही तरह RNA होता है यानी राइबोन्यूक्लिक एसिड. इसके बनने में बोरॉन का खास योगदान होता है. मंगल ग्रह पर करीब 4 अरब साल पुराने बोरॉन मिले हैं.

ऐसे में इन सभी वजहों से धरती के बाद मंगल ग्रह अपना नया ठिकाना बन सकता है. वैज्ञानिक भी इसे जानकर उत्सुक हैं और आम लोग भी. अब आखिर में अपने लिए खुशखबरी ये जान लीजिए कि अगर आप मंगल की सैर करने खुद नहीं जा सकते तो गूगल आपकी मदद कर सकता है.

ऐसे है गूगल मददगार

गूगल ने नासा के साथ मिलकर अपने यूजर्स के लिए वर्चुअल सैर शुरू किया है. मतलब आप नासा के वीडियो और तस्वीरों से मंगल ग्रह की सैर कर पाएंगे. इसमें एक नई टेक्नॉलजी इस्तेमाल की गई है, जो बिना किसी ऐप को इंस्टाल किए आपके ब्राउजर पर वर्चुअल रियलिटी मुहैया कराती है. आप इसे वर्चुअल रियलिटी हेडसेट, फोन या लैपटॉप पर देख सकते हैं. ये प्रोजेक्ट नासा ने जेट प्रोप्लसन लेबोरेटरी के ऑनसाइट सॉफ्टवेयर की मदद से बनाया गया है, जो वैज्ञानिको को रोवर ड्राइव की स्कीम बनाने और मंगल ग्रह पर मीटिंग प्लान करने में मदद करता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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