नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) विजेता भौतिक विज्ञानी पीटर हिग्स का 94 साल की उम्र में निधन हो गया. एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के स्टेटमेंट में कहा गया है कि प्रोफेसर हिग्स ने सोमवार 8 अप्रैल को अपने घर में अंतिम सांस ली. पीटर हिग्स को हिग्स बोसॉन कण के सिद्धांत के लिए जाना जाता है. साल 2012 से पहले पीटर एकेडमिक वर्ल्ड में तो पहचान रखते थे मगर उन्हें लोकप्रियता तब मिली जब CERN के वैज्ञानिकों ने वास्तव में हिग्स बोसॉन या ईश्वर कण की खोज कर दी.
कौन हैं पीटर हिग्स?
पीटर हिग्स ब्रिटिश भौतिकशास्त्री हैं. प्रोफेसर हिग्स का जन्म ब्रिटेन के न्यूकैसल अपॉन टाइन में 1929 को हुआ था. हिग्स ने लंदन के किंग्स कॉलेज से भौतिक विज्ञान में ऑनर्स की डिग्री हासिल की. यहीं से PHD भी की. इसके बाद उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय चले गये. फिर 2006 में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से रिटायर हुए.
हिग्स ने 1964 में हिग्स बोसॉन सिद्धांत दिया जो बताता था कि ब्रह्माण्ड आपस में जुड़ा कैसे है ? कणों में द्रव्यमान कहां से आता है? ये सब वो सवाल थे जो ब्रह्माण्ड को लेकर हमारी समझ पूरी तरह से बदल सकते थे और इन्होंने बदला भी.
इसी सिद्धांत के लिए इन्हें साल 2013 में नोबेल से सम्मानित किया गया.
हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल क्या है?
2012 से पहले तक हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल का अस्तित्व केवल थ्योरी में था. ये असल में होते हैं या नहीं, इस पर सवाल उठाये जाते रहे हैं लेकिन साल 2012 में स्विट्जरलैंड की CERN लैब में वैज्ञानिकों ने इस कण को खोज निकाला.
हिग्स बोसॉन सिद्धांत 1964 में अस्तिव में आया. इस सिद्धांत के अनुसार, पूरे ब्रह्माण्ड में एक फील्ड बनी हुई है जिसे हिग्स फील्ड कहा जाता है. इस फील्ड में कण घूमते रहते हैं जब इन कणों में द्रव्यमान आ जाता है तो ये आपस में जुड़ जाते हैं. ये द्रव्यमान हिग्स बोसॉन कणों की वजह से आता है. अगर किसी कण में द्रव्यमान नहीं होगा तो वो अकेले भटकता रहेगा, किसी से भी जुड़ेगा नहीं. इस तरह से बिना द्रव्यमान के हमारा कोई अस्तित्व नहीं रह जाएगा. जो कुछ भी ब्रह्माण्ड में एक्जिस्ट करता है सबमें द्रव्यमान होता है और इसके होने का कारण गॉड पार्टिकल ही है.
हिग्स बोसॉन के इस सिद्धांत ने बिग बैंग के बाद ब्रह्मांड कैसे बना, इस संबंध में बताया. इस सिद्धांत के अस्तित्व में आने के बाद से ब्रह्मांड को जानने समझने के लिए एक नयी दिशा मिल गई. गॉड पार्टिकल की खोज से ब्रह्माण्ड के निर्माण की गुत्थी सुलझाने की कोशिशें होने लगीं.
इस कण को पहले-पहल हिग्स कण ही कहा जाता था लेकिन लियोन लेडरमैन ने एक किताब लिखी जिसके बाद से इस कण को गॉड पार्टिकल कहा जाने लगा. हिग्स भगवान के कॉन्सेप्ट पर यकीन नहीं करते थे. इस वजह से उन्होंने इस टर्म का विरोध किया. उन्होंने कहा कि फिजिक्स का धर्म से कोई लेना देना नहीं है.
कैसे खोजा गया हिग्स बोसॉन कण
सर्न के वैज्ञानिकों ने इसके लिए काफी खर्च किया है. गॉड पार्टिकल खोजने के लिए LHC (लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर) का इस्तेमाल किया गया. LHC में दो विपरीत दिशाओं से प्रोटानों की लगभग लाइट की स्पीड से (लगभग 3 ×10^8 m/s) से आपस में टक्कर कराई जाती है. इससे कई आंकड़े और कण निकलते हैं इन सबके विस्तृत अध्ययन के बाद सर्न के वैज्ञानिकों ने आखिरकार जुलाई 2012 में इस कण को खोज निकाला. प्रोटान की आपसी टक्कर के आंकड़ों का अध्ययन करके ही ब्रह्माण्ड के निर्माण को समझा जा सकता है.
एलएचसी अब तक बनाया गया सबसे ताकतवर पार्टिकल एक्सलरेटर है . BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार, लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) की लागत 10 अरब डॉलर यानी करीब 62 हजार करोड़ रुपये है और ये स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर 27 किलोमीटर में फैला हुआ है.
पहले पहल जब इस प्रयोगशाला का निर्माण किया गया तो दुनिया में कई लोगों ने कहा कि इस प्रयोग से एक ब्लैक होल का निर्माण भी होगा जो पृथ्वी के लिये खतरा बन जाएगा लेकिन इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों ने कहा कि यह प्रयोग पूरी तरह से सेफ है.
जब स्विट्जरलैंड में वैज्ञानिकों ने एक समारोह में हिग्स बोसॉन कण के मिलने की घोषणा की तो 83 साल के पीटर हिग्स वहां मौजूद थे. उन्होंने कहा था कि उन्हें यकीन नहीं था कि की ये खोज उनके जीवन में संभव है.
गॉड पार्टिकल के लिये नोबेल पुरस्कार
ब्रह्माण्ड हमेशा से वैज्ञानिकों के लिए एक गुत्थी की तरह रहा है. चाहे उसका पैमाना हो या उसकी बनावट या फिर उसका निर्माण, ये सब कुछ हमेशा खोज के दायरे में आता रहा है. प्रोफेसर हिग्स ने हिग्स बोसॉन का सिद्धांत देकर इस खोज को आसान कर दिया लेकिन 2012 तक उनकी थ्योरी के सारे प्रैक्टिकल फेल होते रहे.
आखिर में CERN के वैज्ञानिकों ने इस कण को खोज निकाला. इसी खोज की वजह से साल 2013 का भौतिक विज्ञान का नोबेल रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस ने बेल्जियम के भौतिक विज्ञानी फ्रांस्वा इंगलर्ट और ब्रिटेन के पीटर हिग्स को दिया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)