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इंसानों को मंगल तक पहुंचाने में NASA का नया मिशन कैसे अहम होगा?

नासा ने शनिवार को अपने मार्स लैंडर ‘इनसाइट’ को लॉन्च किया

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साइंस
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नासा ने शनिवार को अपने मार्स लैंडर ‘इनसाइट' को लॉन्च किया. इसे मंगल पर मानव अभियान से पहले उसकी सतह पर उतरने और वहां आने वाले भूकंप को मापने के लिए डिजाइन किया गया है. स्पेस क्राफ्ट को एटलस वी रॉकेट के जरिए कैलिफोर्निया के वंडेनबर्ग एयरफोर्स स्टेश से शाम चार बजकर 35 मिनट पर पर लॉंच किया गया.

99.3 करोड़ डॉलर के इस प्रोजक्ट का मकसद मंगल ग्रह की आंतरिक परिस्थितियों के बारे में जानकारी हासिल करना है. साथ ही इस ग्रह पर इंसानों को भेजने से पहले वहां के हालात का पता लगाना है. इस मिशन में ये भी समझने की कोशिश होगी की धरती जैसे चट्टानी ग्रहों के बनने की प्रक्रिया आखिर क्या है.

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26 नवंबर को मंगल पर लैंड करेगा

अगर सबकुछ योजना के मुताबिक सही रहता है तो लैंडर 26 नवंबर को मंगल की सतह पर उतरेगा. ‘इनसाइट' का पूरा नाम ‘इंटेरियर एक्सप्लोरेशन यूजिंग सेस्मिक इंवेस्टीगेशंस' है. नासा के चीफ साइंटिस्ट जिम ग्रीन ने कहा है कि विशेषज्ञ पहले से जानते हैं कि मंगल पर भूकंप आए हैं, भूस्खलन हुआ है और उससे उल्का पिंड भी टकराए हैं.

कैसे भूकंप की जानकारी हासिल करेगा लैंडर?

ग्रीन ने कहा कि लेकिन मंगल भूकंप का सामना करने में कितना सक्षम है? हमें जानने की जरूरत है. स्पेस क्राफ्ट पर मुख्य उपकरण सेस्मोमीटर है, जिसे फ्रांसीसी स्पेस एजेंसी ने बनाया है. लैंडर के मंगल की सतह पर उतरने के बाद एक ‘रोबोटिक आर्म' सतह पर सेस्मोमीटर (भूकंपमापी उपकरण) लगाएगा.

दूसरा मुख्य औजार एक ‘सेल्फ हैमरिंग’ जांच है जो ग्रह की सतह में उष्मा के प्रवाह की निगरानी करेगा. नासा ने कहा कि जांच के तहत सतह पर 10 से 16 फुट गहरा सुराख किया जाएगा. ये पिछले मंगल अभियानों से 15 गुना अधिक गहरा होगा.

दरअसल, 2030 तक मंगल पर लोगों को भेजने की नासा की कोशिशों के लिए ‘लाल ग्रह' के तापमान को समझना अहम है. सौर ऊर्जा और बैटरी से ऊर्जा पाने वाला लैंडर को 26 महीने संचालित होने के लिए डिजाइन किया गया है. नासा के जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी के इनसाइट मैनेजर टॉम होफमैन ने बताया कि आशा है कि यह इससे अधिक समय तक चलेगा. क्यूरियोसिटी रोवर के 2012 में मंगल पर उतरने के बाद से इनसाइट वहां उतरने वाला नासा का पहला लैंडर होगा.

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