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कैशलेस ट्रांजेक्‍शन के दौरान हेराफेरी होने पर कौन करेगा भरपाई?

डिजिटल ट्रांजेक्शन के दौरान आपके पैसों में हेराफेरी होती है, तो इसकी भरपाई या सुनवाई के लिए भारत में कानून नहीं.

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500 और 1000 रुपये के नोटों को डिमोनेटाइज करने की सबसे बड़ी वजह कालेधन को मिटाना तो था ही, साथ ही इंडियन इकोनॉमी को 'लेस-कैश' इकोनॉमी में तब्दील करना भी सरकार की मंशा थी.

डिमोनेटाइजेशन के बाद पेटीएम जैसे डिजिटल ट्रांजेक्शन प्लेटफाॅर्म ने भारी मुनाफा कमाया. लगभग 35 लाख ट्रांजेक्शन इसके जरिए किए गए. वहीं इसकी प्रतियोगी कंपनी फ्रीचार्ज ने तो एक कदम आगे बढ़कर ट्रैफिक फाइन लेने के लिए मुंबई पुलिस से ही टाइअप कर लिया.

डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने का सरकार का मकसद तो सही है. लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अगर डिजिटल ट्रांजेक्शन के दौरान आपके पैसों में हेर-फेर होती है, तो इसकी भरपाई या सुनवाई के लिए भारत में कोई कानून नहीं है.

डिजिटल पेमेंट से जुड़े जो भी साइबर सिक्योरिटी पैरामीटर्स, यानी साइबर सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने वाले उपाय हैं, वो सूचना-प्रौद्योगिकी कानून के दायरे में आते हैं.

अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक आम तौर पर भारतीय रिजर्व बैंक देश में बैंकों के लिए सुरक्षा और गोपनीयता के मानकों को तय करती है. दूसरी ओर, डिजिटल ट्रांजेक्शन से जुड़ी पेटीएम, फ्रीचार्ज और मोबीक्वि‍क जैसी कंपनियां नाॅन-बैंकिंग फाइंनेंशियल काॅर्पोरेशन (एनबीएफसी) के अंतर्गत आते हैं. इन कंपनियों से जुड़ी सिक्योरिटी गतिविधियां आईटी एक्ट की धारा 43 ए के तहत आती हैं.

सुरक्षा में सेंध लगने का डर

यूजर और मोबाइल वाॅलेट सर्विस प्रोवाइडर के बीच ट्रांजेक्शन महज एक कांट्रैक्ट पर होते हैं, जिन्हें कभी भी बदला जा सकता है. इसलिए भारत में डिजिटल पेमेंट के लिए कानून बनाए जाने की सख्त जरूरत है, न सिर्फ यूजर्स की सुरक्षा के लिए, बल्कि इन कंपनियों की सुरक्षा के लिए भी.

भारतीय रिजर्व बैंक ने डिजिटल वाॅलेट यूजर्स के लिए मैक्सिमम बैलेंस की लिमिट 10,000 रुपये तक तय कर दी, ताकि अगर नुकसान हो भी, तो यूजर को ज्यादा का नुकसान न हो. लेकिन 23 नवंबर को, बैंकिंग रेगुलेटर ने यह लिमिट बढ़ाकर 20,000 रुपये कर दी.

पिछले हफ्ते पेटीएम ने इस लिमिट को बढ़ा दिया. KYC वेरिफाई कराने के बाद यूजर 1 लाख तक का ट्रांजेक्शन कर सकते हैं.

एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

एक्सपर्ट का कहना है कि डिजिटल पेमेंट से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए कोई भी कानूनी तंत्र मौजूद नहीं है, न ही कोई ऐसा कारगर उपाय, जिसका उपयोग डिजिटल मनी के खोने, हैक होने, चुराए जाने या मिसयूज किए जाने पर किया जा सके.

इसके लिए लाॅ बनाने और उन्हें लागू करने में सालों लगेंगे. ऐसे में डिजिटल पेमेंट सर्विस की सुरक्षा को लेकर कुछ तात्‍कालिक काम करना होगा.

आईटी एक्‍ट की धारा 43 ए के तहत कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जो किसी सेक्टर को एक संघ बनाने की इजाजत देते हैं. ये संघ आपसी सहमति से कुछ सुरक्षा मानक तय करते हैं, जो कंपनी और कंज्यूमर, दोनों को फाॅलो करना होता है. विवाद का मसला होने पर कोर्ट में सुनवाई के लिए भी ये तय सुरक्षा मानक वैलिड होते हैं.

ये कदम मौजूदा स्थिति के हिसाब से काफी काम का साबित हो सकता है, क्‍योंकि सरकार के स्‍तर पर कानून बनाने और अमल में लाने के लिए काफी वक्त की जरूरत होती है.

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