फेसबुक (Facebook) के को-फाउंडर मार्क जकरबर्ग (Mark Zuckerberg) ने कंपनी का नाम बदलकर अब 'मेटा' (Meta) रख दिया है. नाम बदलने की खबर आने के बाद सोशल मीडिया पर फेसबुक का मजाक उड़ने लगा. कई जोक्स के अलावा कड़ी आलोचनाएं भी कई गईं.
रियल फेसबुक ओवरसाइट बोर्ड, कंपनी पर केंद्रित एक वॉचडॉग समूह ने घोषणा की कि वह अपना नाम बदलने वाला नहीं है. 2004 में कंपनी का नाम 'द फेसबुक' था, जिसे 2005 में बदलकर फेसबुक कर दिया गया था.
एक बयान में समूह ने कहा, "उनका नाम बदलने से वास्तविकता नहीं बदल जाती है, फेसबुक हमारे लोकतंत्र को नष्ट कर रहा है और दुष्प्रचार और नफरत की दुनिया में बदल रहा है."
बयान में आगे कहा गया कि उनके अर्थहीन नाम बदल लेने से जांच विचलित नहीं होनी चाहिए. फेसबुक को जवाबदेह ठहराने के लिए विनियमन और वास्तविक, स्वतंत्र निरीक्षण की आवश्यकता है.
अमेरिका के न्यूयॉर्क की सांसद एलेक्सजेंड्रिया ने फेसबुक को डेमोक्रेसी के लिए कैंसर बताया.
उन्होंने ट्वीट किया "
मेटा यानि हम लोकतंत्र के लिए एक कैंसर हैं जो सत्तावादी शासन को बढ़ावा देने और नागरिक समाज को नष्ट करने के लिए एक वैश्विक निगरानी और प्रचार मशीन में बदल रहे हैं ... प्रॉफिट के लिए!
वहीं मार्क के इस बयान पर कि 'वह केवल सोशल मीडिया नहीं है मेटावर्स है' इस पर चुटकी लेते हुए अमेरिका के एरिजोना की सेनेटर वेंडी रॉजर ने ट्वीट किया कि, "फेसबुक ट्रूथ सोशल, गैब, टेलीग्राम और जीईटीटीआर से हारने वाला है, इसलिए ज़ुकी ऐसा अभिनय कर रहे हैं जैसे फेसबुक अब सोशल मीडिया ही नहीं रहा है".
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के सीनियर एडवाइजर ने लिखा कि
"फेसबुक धरती पर सबसे कम पसंद की जाने वाली, कम भरोसा किए जाने वाली कंपनियों में से एक है".
वो आगे लिखते हैं कि, "वे नरसंहार, मानव तस्करी और दुष्प्रचार में अपनी संलिप्तता के बारे में बड़े पैमाने पर घोटाले के बीच में हैं और उनका अगला कदम यह कहना है: 'क्या होगा अगर आप फेसबुक के अंदर रह सकते हैं?"
फेसबुक के नाम बदलने की खबर के बाद आई आलचनाओं के अलावा कई ट्वीटर यूजर्स ने फेसबुक के नए नाम को लेकर मजाक उड़ाना भी शुरु किया. किसी ने लिखा कि नाम बदल गया लेकिन काम वही है..
वहीं एक अमेरिका के पब्लिक हेल्थ साइंटिस्ट एरिक फिगल-डिंग ने इसे डेमोक्रेसी और लोगों के स्वास्थ्य के लिए कैंसर बताया.
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