2004 में लॉन्च हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक (Facebook) ने अपना नाम बदल लिया है. फेसबुक के को-फाउंडर और सीईओ मार्क जकरबर्ग ने ऐलान किया कि अब फेसबुक मेटा प्लेटफॉर्म इंक (Meta Platform Inc)- यानि 'मेटा' (Meta) के नाम से जाना जाएगा.
कंपनी द्वारा आयोजित कनेक्ट वर्चुअल रियलीट कॉन्फ्रेंस में मार्क ने कहा,
"हम जो कुछ भी करते हैं उसे शामिल करने के लिए एक नया कंपनी ब्रांड अपनाने का समय आ गया है. अब हम मेटावर्स होने जा रहे हैं फेसबुक नहीं." मुझे यह घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि आज से हमारी कंपनी अब मेटा हो गई है. हमारा मिशन वही रहता है, फिर भी लोगों को एक साथ लाने के बारे में, हमारे ऐप्स और उनके ब्रांड, वे नहीं बदल रहे हैं".
उन्होंने आगे कहा कि "फेसबुक नाम में अब वह सब कुछ शामिल नहीं है जो कंपनी करती है. आज हम एक सोशल मीडिया कंपनी के रूप में देखे जाते हैं. लेकिन हमारे डीएनए में हम एक ऐसी कंपनी हैं जो लोगों को जोड़ने के लिए तकनीक बनाती है."
कुल मिलाकर फेसबुक न तो अपना नाम बदल रहा है और न ही इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और मैसेंजर का, कंपनी के सीईओ या नेतृत्व करने वाली टीम, इसकी कॉर्पोरेट संरचना वह भी नहीं बदलेगी. होगा इतना कि 1 दिसंबर से इसका स्टॉक नए सिंबल एमवीआरएस के नाम से दिखेगा.
फेसबुक का नाम मेटावर्स क्यों रखा गया, इसका मतलब क्या होता है?
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक, मार्क ने मेटावर्स को एक "वर्चुअल वातावरण" बताया है, जिसमें आप केवल एक स्क्रीन पर देखने के बजाय अंदर क्या चल रहा है उसमें वर्चुअली शमिल हो सकते हैं. वर्चुअल रियलिटी हेडसेट, ऑगमेंटेड रियालिटी ग्लास, स्मार्टफोन ऐप या अन्य उपकरणों का उपयोग करके लोग मिल सकते हैं, काम कर सकते हैं और खेल सकते हैं.
मेटावर्स वो शब्द है जिसे पहली बार नील स्टीफेंसन ने अपने 1992 के डायस्टोपियन उपन्यास "स्नो क्रैश" में गढ़ा था, जिसमें लोग गेम जैसी डिजिटल दुनिया के अंदर बातचीत करने के लिए वर्चुअल रियालिटी हेडसेट का इस्तेमाल करते हैं.
मार्क ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अगले एक दशक के अंदर मेटावर्स एक अरब लोगों तक पहुंच जाएगा और उन्हें उम्मीद है कि नई तकनीक से रचनाकारों के लिए लाखों नौकरियां भी पैदा होंगी.
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