उत्तर प्रदेश चुनाव के छठे चरण (Uttar Pradesh Sixth Phase Polling) में 10 जिलों की 57 सीटों पर 54% मतदान हुआ. इन सीटों पर साल 2017 में 56.28% और 2012 में 54.90% वोट पड़े थे. अबकी बार का वोट प्रतिशत और बढ़ सकता है. योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सहित कई मंत्री और बड़े नेता मैदान में थे. बीजेपी से टूटकर एसपी में आए स्वामी प्रसाद मौर्य और ओपी राजभर जैसे नेताओं की भी परीक्षा थी. ऐसे में समझते हैं कि आखिर छठे फेज का वोटिंग पैटर्न क्या कहानी कह रहा है?
यूपी चुनाव के छठे फेज में अम्बेडकर नगर में 58%, बलिया में 51%, बलरामपुर में 48%, बस्ती में 54%, देवरिया में 51%, गोरखपुर में 53%, कुशीनगर में 55%, महाराजगंज में 57%, संत कबीर नगर में 51%, सिद्धार्थनगर में 49% वोट पड़े.
पिछले चुनाव से कम वोट पड़ने का ट्रेंड छठे फेज में टूटा
उत्तर प्रदेश चुनाव के पांचों फेज को देखें तो दिखता है कि हर फेज में पिछली बार हुए चुनाव से कम वोट पड़े हैं. लेकिन छठे फेज में ये ट्रेंड टूटा है, हालांकि वोटिंग अन्य फेज के चरणों की तुलना में कम हुई है. पहले फेज में 62.43%, दूसरे फेज में 64.66%, तीसरे में 62.28% चौथे फेज में 62.76% और पांचवें फेज में 54% वोट पड़े. जबकि छठे फेज में 54% से ज्यादा वोट पड़े हैं.
छठे फेज में जिन 57 सीटों पर मतदान हुआ है, उसपर अबकी बार पिछले दो बार के चुनावों में ज्यादा वोट पड़े हैं. यानी अबकी बार के चुनाव को लेकर पूर्वांचल के लोगों में पहले की तुलना में ज्यादा उत्साह दिखा.
जहां अनुसूचित जाति का वोटर ज्यादा, वहां बंपर मतदान
यूपी चुनाव के छठे चरण में जिन 10 जिलों में वोट पड़े, उनमें से अंबेडकर नगर, गोरखपुर, संत कबीर नगर और बस्ती ऐसे जिले हैं जहां अनुसूचित जाति का वोटर 20% से ज्यादा है. इसमें से अंबेडकर नगर में सबसे ज्यादा 59% वोट पड़ा. यानी कुल 10 जिलों में जितने वोट पड़े उससे करीब 5% ज्यादा.
अंबेडकरनगर में विधानसभा की 5 सीट है. कटेहरी, टांडा, अल्लापुर, जलालपुर और अकबरपुर. 2017 में मोदी लहर के बाद भी इस सीट से बीएसपी ने 3 सीट जीत ली थी. बीजेपी टांडा और अल्लापुर की 2 सीट ही निकाल पाई थी. वोटों का मार्जिन भी एक में 0.8% और दूसरी पर 6.4% था. यानी बहुत ज्यादा नहीं.
साल 2012 में जब अखिलेश यादव की सरकार बनी थी तब अंबेडकर नगर की सभी 5 सीट जीत ली थी. हालांकि सभी 5 सीटों पर दूसरे नंबर पर बीएसपी थी. वहीं साल 2017 में जिन 2 सीटों पर बीजेपी जीती थी, वहां दूसरे नंबर पर एसपी थी.
छठे फेज में माया इज बैक, एसपी-बीजेपी को टक्कर
ऊपर के आंकड़ों को देखकर लगता है कि अंबेडकर नगर में मुख्य मुकाबला एसपी और बीएसपी के बीच रहा है, लेकिन 2017 के बाद बीजेपी भी फाइट में रही है. ऐसे में जहां पिछले फेज के चुनावों में बीएसपी फाइट में कम दिख रही थी, छठे फेज में वह एकदम से फाइट में आ गई है. मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. ये हालत सिर्फ अंबेडकर नगर की नहीं है बल्कि उन सभी सीटों की है, जहां अनुसूचित जाति का वोटर ज्यादा है. वह वोटर एक्टिव दिख रहा है.
मुस्लिम बाहुल्य इलाके में ज्यादा वोट का ट्रेंड टूट गया
10 जिलों में से बलरामपुर में 37%, सिद्धार्थनगर में 30% और संत कबीर नगर में 24% मुस्लिम आबादी है. लेकिन वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो बलरामपुर में सबसे कम 48% वोट पड़े. सिद्धार्थनगर में भी 49% और संत कबीर नगर में 51% वोट पड़े. ये तीनों जिले ऐसे हैं जहां पर सबसे कम मतदान हुआ, जबकि पहले के पांच फेज के मतदान में दिखा था कि जहां पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है, वहां पर वोट प्रतिशत औसत से ज्यादा रहा है.
बलरामपुर को अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मस्थली माना जाता है. वाजपेयी 1957 में पहली बार इसी जगह से जीतकर संसद भवन पहुंचे थे. एक वक्त में ये जनसंघ का गढ़ माना जाता था, हालांकि बाद में यहां का समीकरण बनता बिगड़ता रहा.
बलरामपुर में तुलसीपुर, गैसड़ी, उतरौला और बलरामपुर सदर 4 सीट है. 2017 में सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा था. 2 सीट पर कांग्रेस और एक-एक पर बीएसपी और एसपी दूसरे नंबर पर थी. जबकि 2012 में सभी 4 सीटें एसपी के पास थीं. दो सीटों पर बीएसपी दूसरे नंबर पर थी.
बीजेपी से टूटकर एसपी में गए नेताओं ने फायदा पहुंचाया?
छठे चरण में बीजेपी से टूटकर एसपी में गए बड़े चेहरों की परीक्षा थी. बड़ा नाम स्वामी प्रसाद मौर्य का है. वो कुशीनगर की फाजिलनगर से उम्मीदवार थे. उनकी सीट पर 56% वोट पड़े. साल 2017 में 55.3% और 2012 में 55% मतदान हुआ. यानी अबकी बार पिछले दो चुनावों की तुलना में ज्यादा वोट पड़े. शायद इसकी एक बड़ी वजह स्वामी प्रसाद मौर्य का यहां से चुनाव लड़ना रहा हो. क्योंकि अगर क्षेत्र से कोई बड़ा नेता लड़ता है तो वोटर में उत्साह ज्यादा होता है, जो इस बार वोट पैटर्न में दिखा.
लेकिन क्या स्वामी प्रसाद ने कुशीनगर की बाकी सीटों पर प्रभाव दिखाया. इसे वोटिंग प्रतिशत से समझने की कोशिश करें तो कुशीनगर में कुल 10 जिलों में हुए मतदान से ज्यादा वोट पड़े हैं. हालांकि कुशीनगर की पडरौना और कुशीनगर सदर में फाजिलनगर सीट से ज्यादा मतदान हुआ. इसकी एक बड़ी वजह आरपीएन सिंह हो सकते हैं, जो कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हैं.
फाजिलनगर सीट पर एसपी मजबूत रही है. कुशवाहा वोटर के साथ मुस्लिम आबादी ज्यादा है. ऐसे में ये सीट निकालने में आसानी हो सकती है, लेकिन बाकी की सीटों पर स्वामी प्रसाद मौर्य का वैसा असर नहीं दिखा, जिसकी उम्मीद तब की गई थी, जब वे बीजेपी से एसपी में शामिल हुए.
योगी आदित्यनाथ की सीट पर 10 साल में सबसे ज्यादा वोट
छठे चरण में सुर्खियों में रही योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सदर सीट पर 52% वोट पड़े हैं. ये साल 2012 (46.2%) और 2017 (50.8%) की तुलना में ज्यादा है. इसे योगी इफेक्ट कह सकते हैं कि उनके प्रत्याशी बनने पर वोट प्रतिशत बढ़ गया हो.
लेकिन एक चौंकाने वाला आंकड़ा ये भी है कि गोरखपुर की सभी 9 सीटों में से बांसगांव, चिल्लूपार, और गोरखपुर सदर ऐसी सीट पर हैं, जहां पर 9 सीटों की तुलना में सबसे कम वोट पड़े. चिल्लूपार सीट से बाहुबली नेता और योगी से वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी लड़ रहे थे. लेकिन यहां भी वोट प्रतिशत 10 सालों में ज्यादा रहा, लेकिन अन्य सीटों की तुलना में कम.
गोरखपुर सीट से मोदी लहर में भी जीता था बीएसपी उम्मीदवार
आबादी की बात करें तो गोरखपुर में 52% शहरी और 48% ग्रामीण आबादी है. 90% हिंदू आबादी के अलावा 9% मुस्लिम हैं. छठे चरण में जिन 10 सीटों पर चुनाव हुए, उनमें से गोरखपुर दूसरे नंबर पर है जहां अनुसूचित जाति का वोट ज्यादा है. यहां 22% एससी आबादी है. साल 2017 में 9 में से 8 सीट बीजेपी के पास थी. इकलौती चिल्लूपार की सीट ऐसी थी जहां से बीएसपी जीती थी.
अजय लल्लू और नेता प्रतिपक्ष की सीट का नहीं बदला वोट पैटर्न
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कुशीनगर की तमकुहीराज से उम्मीदवार थे. यहां 56% वोट पड़े हैं. ये वोटिंग प्रतिशत पिछले दो चुनावों के बराबर ही है. वहीं बलिया की बांसडीह से नेता प्रतिपक्ष रहे रामगोविंद चौधरी की सीट पर 54% वोट पड़े. इस सीट पर 2012 में 53% और 2017 मे 54% वोट पड़े थे.
यूपी के पांच चरणों के चुनाव में कुछ सीटों को छोड़कर मुख्य मुकाबला एसपी और बीजेपी के बीच माना जा रहा था, लेकिन छठे फेज में वोटिंग पैटर्न को देखकर लगता है कि मायावती फिर से फाइट में लौट आई हैं. कई सीटों पर सबसे आगे भी नजर आ रही हैं. ऐसे में मुकाबला और भी ज्यादा दिलचस्प हो जाता है.
ऐसे में मुश्किल एसपी के लिए बढ़ सकती है. क्योंकि कहा जा रहा था कि छठा और सातवां फेज अखिलेश यादव के लिए फायदे वाला होगा, लेकिन वोटिंग पैटर्न देखकर लगता है कि पूर्वांचल में SC वोटर काफी एक्टिव है. वहीं बीजेपी फायदे में जा सकती है क्योंकि उसे 2017 और 2019 के चुनावों में गैर जाटव का वोट मिलता रहा है.
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