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क्या अलीगढ़ एनकाउंटर फर्जी था? मृतक साधु का परिवार उठा रहा है सवाल

क्या है अलीगढ़ पुलिस एनकाउंटर का सच?

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राजू (राजवीर सिंह) और दलबीर सिंह ने पुलिस से कहा था कि ये केस मुझे 5 दिनों में खुला हुआ चाहिए. 5 दिन पूरे होने वाले थे तब तक पुलिस के हाथ असली मुजरिम नहीं आया. उन्होंने उल्टा-सीधा किसी का केस किसी पर लगा दिया और गिरफ्तार कर लिया.
गिरिराज सिंह, मृतक साधु का भाई

उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ जिले में पिछले महीने हुई हत्याओं ने सनसनी फैला दी. जिन छह लोगों की हत्याएं अलग-अलग मौकों पर हुईं उनमें से दो साधु थे जबकि एक दंपति यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के मौजूदा राज्यपाल कल्याण सिंह के दूर के रिश्तेदार थे.

अलीगढ़ का अतरौली क्षेत्र और आस-पास के इलाके में बीजेपी के दिग्गज नेता कल्याण सिंह का प्रभाव माना जाता है. उनके बेटे राजवीर सिंह एटा लोकसभा से सांसद हैं और पोते संदीप सिंह कल्याण सिंह के पूर्व चुनाव क्षेत्र अतरौली से विधायक और योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री हैं.

मारे गए 2 में से एक साधु रुप सिंह के परिवार वालों का कहना है कि पुलिस ने राजवीर सिंह के दबाव में आकर गिरफ्तारी की थी. उन्होंने असली मुजरिम को नहीं पकड़ा था.

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अलीगढ़ पुलिस के प्रेस नोट के मुताबिक अतरौली के जिन 2 लड़कों नौशाद और मुस्तकीम का एनकाउंटर किया गया वो हत्या के आरोपी थे.

हरदुआगंज के रहने वाले साधु रुप सिंह और दंपति की हत्या एक ही रात हुई थी.

मुठभेड़ से पहले, पुलिस ने 18 सितंबर को पांच अन्य लोगों - सबीर, नदीम, मुस्तकीम के भाई सलमान और अतरौली के दो निवासियों, डॉ यासीन और इरफान को गिरफ्तार किया था- जो अब पुलिस हिरासत में हैं. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में, पुलिस ने दावा किया कि तीन अन्य- नौशाद, मुस्तकीम और अफसार फरार थे. नौशाद और मुस्तकीम को यूपी पुलिस ने 20 सितंबर के एनकाउंटर में मार गिराया.

नौशाद और मुस्तकीम के परिवार वालों का कहना है कि दोनों लड़कें बेकसूर थे. उनका मानना है कि पुलिस ने हत्या का आरोप लगाकर उनका फर्जी एनकाउंटर किया है.

उन्होंने कुछ नहीं किया. वो(पुलिस) आकर नौशाद, मुस्तकीम, सलमान और नफीज को पकड़ कर ले गए. नफीज को थाने में बिठा कर रखा गया, सलमान का चालान कर दिया और मुस्तकीम और नौशाद को मार दिया गया.
शबनम, नौशाद की मां
अगर हमारे बच्चे बदमाश होते तो यहां बैठे मिलते? वो तो भाग जाते. बिना नमाज के उनको दफना दिया. पोस्टमार्टम के कागज भी नहीं हैं हमारे पास.
शबाना, मुस्तकीम की मां
चूंकि पुलिस दावा करती है कि नौशाद और मुस्तकीम के पहले भी आपराधिक रिकॉर्ड रह चुके थे तो क्विंट ने चर्रा जाने का फैसला किया. अतरौली में बसने से पहले तक इनका परिवार 3 सालों तक यहां रहा था.
उनके रहते तक पुलिस यहां कभी नहीं आई. लेकिन एनकाउंटर के बाद पुलिस यहां आई. पहले पुलिस कभी नहीं आई, न ही उनके बारे में हमें किसी ने ऐसी बात बताई जिससे हमें उनपर कोई शक होता.
चर्रा निवासी

क्या हुआ था एनकाउंटर वाले दिन?

20 सितंबर 2018 की सुबह कुछ पत्रकारों को कवरेज के लिए बुलाया गया था. बताए गए जगह पर पहुंचने के बाद उन्होंने देखा कि एनकाउंटर चल रहा है और पुलिस अपनी पोजिशन लिए सतर्कता के साथ खड़ी है. कुछ ही मिनट में वहां से दो पुलिस वैन निकली. गाड़ियों को पुलिस अफसरों ने घेर रखा था जिस वजह से ये देखना नामुमकिन था कि उन गाड़ियों में क्या ले जाया जा रहा है.

यूपी पुलिस ने घोषणा की कि उन्होंने मुस्तकीम और नौशाद को एनकाउंटर में ढेर कर दिया. लेकिन मीडिया को उनकी लाश की एक झलक देखने का मौका नहीं दिया. एनकाउंटर साइट पर ‘कवरेज’ के लिए बुलाए गए दो पत्रकारों ने क्विंट को बताया कि वो मुस्तकीम और नौशाद को जिंदा या मुर्दा, किसी भी हालत में नहीं देख पाए.

क्विंट के ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान हमने घटना से जुड़े कई लोगों की बातें सुनीं लेकिन कुछ सवाल अब भी रह गए हैं, जिनके जवाब नहीं मिलें.

  1. क्या मुस्तकीम और नौशाद पुलिस कस्टडी से सच में भागे?
  2. पुलिस ने आॅटप्सी के बाद परिवार को शव या रिपोर्ट क्यों नहीं सौंपी?
  3. हमने पुलिस को सवाल भेजे लेकिन कोई रिस्पाॅन्स नहीं मिला. पुलिस क्या छिपाना चाह रही है?

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