ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिहार में राजनीतिक यात्राओं की बहार, BJP-महागठबंधन अभी से कर रहे 2024 की तैयारी?

Amit Shah, महागठबंधन की रैलियों के अलावा उपेंद्र कुशवाहा और पीके भी यात्रा कर रहे हैं

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा

बिहार (Bihar) में सियासत का 'सुपर सैटरडे". एक तरफ बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पश्चिमी चंपारण जिले के लौरिया में एक जनसभा को संबोधित किया तो दूसरी तरफ सीमांचल के पूर्णिया में महागठबंधन की रैली हुई. दोनों ही रैली में जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगे. अमित शाह के निशाने पर नीतीश कुमार और लालू यादव रहे तो महागठबंधन की रैली में मोदी-शाह को लेकर हमले हुए. दोनों ही रैली को देखें तो समझ आता है कि बिहार में 2024 चुनाव को लेकर समर की शुरुआत हो गई है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक तरफ बीजेपी जहां बिहार में लगातार रैली और कार्यक्रम कर रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस (भारत जोड़ो यात्रा), नीतीश कुमार (समाधान यात्रा), प्रशांत किशोर (जन सुराज अभियान), उपेंद्र कुशावाह (विरासत बचाओ नमन यात्रा), जीतनराम मांझी (गरीब संपर्क यात्रा), आरसीपी सिंह, चिराग पासवान और मुकेश सहनी भी यात्रा कर रहे हैं.

यहां गौर करने वाली बात यह है कि अभी लोकसभा चुनाव 2024 में 13 महीने का वक्त बाकी है लेकिन ये सभी राजनीतिक दल चुनावी मोड में आ गये हैं. इन यात्राओं के क्या मायने हैं और क्यों अभी से बिहार की जमीन सबको उर्वरक क्यों दिख रही है.

बिहार में राजनीतिक यात्रा के क्या मायने?

क्विंट हिंदी से बात करते हुए राजनीतिक विशलेषक संजय कुमार कहते हैं, "चुनाव में अभी समय है लेकिन संदेश जाना शुरू हो जाता है. 2024 चुनावी साल होगा ऐसे में सभी राजनीतिक दल जनता को संदेश देना और संवाद करना चाहते हैं इसलिए कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय दल प्रदेश में यात्रा निकाल रहे हैं."

वरिष्ठ पत्रकार कुमार पंकज कहते हैं

बिहार में कुछ समय से जो राजनीतिक उथल-पुथल मची है उसका सभी राजनीतिक दल लाभ लेना चाहते हैं. बीजेपी हमेशा से आक्रामक रहती है और चौबिसों घंटे चुनावी मोड में काम करती है. बीजेपी ने सीखा दिया है कि हमेशा चुनावी मोड में रहें और जनता के बीच में रहें. बिहार में रैली उसी रणनीति का हिस्सा है.
0

बिहार पर क्यों टिकी निगाह?

संजय कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार से अलग होने के बाद बीजेपी यहां दो उपचुनाव (गोपालगंज और कुढ़नी) जीत गई है और मोकामा में भी बीजेपी ने पहली बार बाहुबली अनंत सिंह को कड़ी टक्कर देते हुए 60 से 65 हजार वोट हासिल किए. अमित शाह बार-बार बिहार आकर विपक्षी दलों को संदेश देना चाह रहे हैं कि यहां के लोग बीजेपी के साथ हैं तो वहीं महागठबंधन के नेता ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जब बिहार में गठबंधन हो सकता है तो अन्य राज्यों में क्यों नहीं?

Amit Shah, महागठबंधन की रैलियों के अलावा उपेंद्र कुशवाहा और पीके भी यात्रा कर रहे हैं

अमित शाह ने वाल्मिकी नगर में जनसभा की.

(फोटो-अमित शाह/ट्विटर)

वरिष्ठ पत्रकार अरूण पांडेय कहते हैं कि बीजेपी कई सालों बिहार में अकेले चुनाव लड़ रही है. पहले नीतीश के चेहरे पर लालू के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाती थी. लेकिन अब स्थिति अलग है. बीजेपी चिराग पासवान, मुकेश सहनी और आरसीपी सिंह को भी साथ लाने की कोशिश में है. कुशवाहा का अलग होना भी बीजेपी को लाभ देगा. मांझी ने भी नीतीश की यात्रा खत्म होने के पहले अपनी यात्रा शुरू कर दी और कहा कि उन्हें जो फीडबैक मिल रहा उसमें सरकार की कई विफलता है और मुख्यमंत्री को आईना दिखाया. ऐसे में क्या मांझी नीतीश के साथ आगे रहेंगे ये बड़ा सवाल है.

सीमांचल क्यों महत्वपूर्ण?

25 फरवरी को महागठबंधन की रैली सीमांचल के पूर्णिया में हुई. दरअसल, सीमांचल में मुसलमानों की बड़ी आबादी है.

24 विधानसभा सीटों पर मुस्लिमों का सीधा प्रभाव है और 12 सीटों पर 50 फीसदी आबादी मुसलमानों की है. यहां लोकसभा की तीन सीटें महागठबंधन के पास है और दो (बेतिया और मोतिहारी) के पास है.
Amit Shah, महागठबंधन की रैलियों के अलावा उपेंद्र कुशवाहा और पीके भी यात्रा कर रहे हैं

पूर्णिया में महागठबंधन की रैली हुई.

(फोटो-तेजस्वी यादव/ट्विटर)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इससे पहले सीमांचल में पिछले साल अमित शाह ने भी एक बड़ी जनसभा की थी यानी बीजेपी और महागठबंधन दोनों की निगाह सीमांचल पर टिकी है.

राजनीतिक विशलेषक संजय कुमार कहते हैं,"सीमांचल को बीजेपी और महागठबंधन दोनों साधना चाहते हैं. इसलिए अमित शाह ने पिछले साल पूर्णिया के रंगभूमि मैदान से लोकसभा चुनाव अभियान का आगाज किया था. वो चाहते हैं कि वैसे क्षेत्रों से चुनावी शंखनाद करें जहां बीजेपी का प्रभाव में कम है. सीमांचल वो इलाका था जिससे बंगाल और नार्थ दोनों जगहों पर असर पड़ेगा. महागठबंधन भी उसी अंदाज में शाह को जवाब देना चाहती थी, इसलिए उसी मैदान में जनसभा की गई."

2020 में AIMIM ने जीती थी पांच सीट

वरिष्ठ पत्रकार अरूण पांडेय कहते है,"सीमांचल का इलाका मुस्लिम बाहुल्य है. 2020 विधानसभा चुनाव में AIMIM ने यहां पांच सीट जाती थी लेकिन बाद में उसके चार विधायक RJD में शामिल हो गए थे. इस इलाके में MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण है और आरजेडी यहां अभी कमजोर है. इसलिए उसने इस इलाके में पैठ बनाने की कोशिश की है."

बिहार में क्यों अहम हैं छोटे दल?

राजनीतिक जानकारों की मानें तो,छोटे दल भी यात्रा के जरिए अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराना चाहते हैं. इसके अलावा बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स भी हावी है. मुकेश सहनी मल्लाह समाज से आते हैं और प्रदेश में निषादों की आबादी तकरीबन 3-4 फीसदी है.बिहार के 5 लोकसभा सीटों पर निषाद समाज का सीधा प्रभाव है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

उपेंद्र कुशवाहा का 13 से 14 जिलों में प्रभाव है और वोट के हिसाब से प्रदेश में कुशवाहा की करीब 7 से 8 फीसदी प्रदेश में आबादी है. पासवान समाज दलित में आता है और प्रदेश में उसकी करीब 4.2 फीसदी हिस्सेदारी है जबकि मांझी महादलित में आते हैं और वो बिहार में 10 प्रतिशत हैं.

बीजेपी जहां छोटे दलों को अपनी तरफ आकर्षित कर रही तो वहीं महागठबंधन में सात दलों के होने से वहां भी जातीय समीकरण फिट बैठता दिख रहा है. राज्य में लोकसभा की 40 सीट हैं और 2019 के चुनाव में एनडीए के खाते हैं 39 सीट आई थी, जिसमें बीजेपी को 16 जेडीयू को 17 और LJP को 6 सीट मिली थी. किशनगंज की सीट कांग्रेस के खाते में गई थी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें