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कश्मीर की अरवा बनीं 250 से ज्यादा दिव्यांग खिलाड़ियों की आवाज

अरवा को साइन लैंग्वेज सीखने की प्रेरणा अपनी मां को देखकर मिली

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कैमरापर्सन: मसरत जेहरा
वीडियो एडिटर: अशीश मैक्यून

कश्मीर की 16 साल की एक लड़की आज 250 दिव्यांग खिलाड़ियों की मदद कर रही है. वो दिव्यागों को अपनी आवाज दे रही है जो बोल सुन नहीं पाते. उसको ये प्रेरणा अपने घर से ही मिली. अरवा उन दिनों को याद करते हुए बताती है, जब वो अपनी मां को देखती थी कि वो बोल सुन नहीं पाती. इसकी वजह से उन्हें कितनी दिक्कत आती है. अरवा को उसके मामा ने साइन लैंग्वेज सिखाई.

मेरी मां जो कहती थी, वो हम समझ नहीं पाते थे, न ही वो हमें समझ पाती थी. पापा और नानी ठीक से उनसे बात भी नहीं करते थे. ये सब देखकर मैंने साइन लैंग्वेज सीखने का फैसला किया ताकि उनको समझ संकू और उनकी मदद कर सकूं.
अरवा इम्तियाज, ट्रांसलेटर
अरवा को साइन लैंग्वेज सीखने की प्रेरणा अपनी मां को देखकर मिली
अरवा के माता पिता
(फोटो: Masrat Zahra)

आरवा, तमाम खिलाड़ियों के साथ साथ अपनी मां की भी ट्रांसलेटर हैं. वो स्कूल के बाद ट्रांसलेटर का काम करती है.

इन लोगों में काफी टैलेंट है, जिसे दिखाने की जरूरत है. कोई उनको नहीं समझता इसलिए मैंने उनकी आवाज बनने की ठानी.
अरवा इम्तियाज

अरवा अभी सिर्फ 10वीं क्लास में है और उसने इतनी बड़ी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली है. कोच जो भी बताते हैं, वो अरवा खिलाड़ियों को ट्रांसलेट करके बताती है. अरवा के लिए ये सब आसान नहीं है. कई बार जब खिलाड़ी नेशनल खेलने जाते हैं तो उसे अपना स्कूल छोड़ना पड़ता है. अपने इस काम के लिए अरवा पैसे भी नहीं लेती.

अरवा को साइन लैंग्वेज सीखने की प्रेरणा अपनी मां को देखकर मिली
अरवा 250 खिलाड़ियों की मदद करती है
(फोटो: Masrat Zahra)

अरवा के पिता ऑटो रिक्शा चलाते हैं. वो कहते हैं कि उनकी बेटी जो भी कर रही है, उस पर उन्हें गर्व है.

मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं, लेकिन मेरे पिता के पास ट्यूशन फीस नहीं हो पाती. अब अल्लाह पर निर्भर है, देखते हैं क्या होता है. क्या पता खिलाड़ियों की मदद करते करते मैं भी डॉक्टर बन जाउं.
अरवा इम्तियाज

अरवा को उम्मीद है कि उसके इस काम में सरकार मदद करेगी.

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