मुंबई में आरबीआई मुख्यालय में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बोर्ड की मीटिंग करीब 9 घंटे चली. इस मीटिंग में उन मुद्दों के निपटारे की उम्मीद थी, जिन्होंने आरबीआई और सरकार के बीच तनातनी पैदा की.
मीटिंग के बाद एक बयान आया, जिसे पढ़कर लगा कि सरकार और RBI के बीच में शायद युद्ध-विराम हो गया है, एक बड़ा टकराव टल गया है. लोगों ने राहत की सांस ली. लेकिन शायद ये राहत की बात नहीं थी. शेयर बाजार का संकेत था कि कुछ राहत की बात है, लेकिन कुछ चिंता की भी बात है, क्योंकि RBI की ओर से जो ऐलान आए हैं, उसमें ये था कि:
- लिक्विडिटी बढ़ाने के तौर-तरीकों पर विचार करेंगे
- MSME के लिए जो 25 करोड़ का कर्ज दिया गया है, उसे रीस्ट्रक्चर करेंगे
- रिजर्व बैंक का बड़ा कैपिटल सरकार को कब और कैसे ट्रांसफर हो, इस पर कमेटी बनाई जाएगी.
RBI बोर्ड के बारे में पहले हम कम बात सुनते थे. अब क्योंकि कानून कहता है कि बोर्ड सलाह दे सकता है, तो वो सलाह दे रहा है. अभी तक प्रबंधन RBI के गवर्नर और डिप्टी गवर्नर के पास था. लेकिन अब इस बोर्ड के मेंबर कौन हैं, ये देखना जरूरी है.
बहुत ही अजीब सी बात है कि फिलहाल जो बोर्ड है, उसमें कोई बैंकर नहीं है. माॅनेटरी पाॅलिसी एक्सपर्ट नहीं है. बोर्ड में कुछ सरकारी लोग हैं, कुछ व्यापारी लोग हैं.
2 नए नाम सामने आए हैं- एस गुरुमूर्ति, सतीश मराठे, जिनका राजनीति से जुड़ाव है. ये टेक्नोक्रेट नहीं हैं. ये माॅनेटरी पाॅलिसी नहीं चलाते. इसलिए इस बोर्ड की बनावट भी अपने आप में एक चिंता का विषय है.
ये बोर्ड RBI को सलाह के नाम पर दिशा-निर्देश देगा, तो इस बात को लेकर देश ही नहीं, दुनियाभर में चिंता होगी, क्योंकि हिंदुस्तान एक बढ़ती हुई इकनॉमी है. ये वो देश है, जहां लीमैन संकट के बाद कहा गया था कि हिंदुस्तान के सेंट्रल बैंकर ने बहुत अच्छा काम किया.
RBI की स्वायत्तता पर अब सरकार की नकेल है. लेकिन ये नकेल क्यों लगानी है? सरकार को क्या चाहिए था?
दरअसल, कोई भी सरकार कैश हंग्री होती है. उसका काम होता है खर्च करना. RBI का काम होता है आर्थिक संतुलन और स्थिरता बनाकर रखना. सरकार RBI से पैसे चाहती थी, ताकि उसकी फिस्कल डेफिसिट की परेशानी संभल पाए.
70% कारोबार भारत में बैंकिंग के जरिए सरकारी बैंक करते हैं. उनके पास लिक्विडिटी नहीं है. करीब 10 लाख करोड़ रुपये कर्ज NPA में गए हैं. देश में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि बैंकों का NPA 15.5% हो. ऐसा भी हो सकता है कि मार्च 2019 तक बढ़कर ये NPA 16.5% हो जाए. ऐसे में सरकार चाहती थी कि RBI कुछ ऐसा कर दे कि लिक्विडिटी आ जाए बाजार में और सरकारी बैंक और कर्ज दे सकें. खासकर MSME क्योंकि वो बीजेपी का एक बहुत बड़ा वोट वाला जनाधार है. वहां से बहुत शिकायतें आ रही थीं, क्योंकि वो GST और नोटबंदी से परेशान थे.
चुनाव से ठीक पहले अब सरकार चाहे तो ये कह सकती है कि देखिए हमने RBI के ऊपर नकेल लगाई. उन्हें कहा कि पैसा निकालिए और ये पैसा MSME को दिया जाएगा जहां क्रेडिट आॅफ टेक अब तक के निचले स्तर पर है.
घटनाओं से साफ है कि सरकार दो मुख्य काम कराना चाहती थी- RBI से रिजर्व कैपिटल लेना. दूसरा, बैंकिंग सेक्टर में लिक्विडिटी लाना.
लेकिन मीटिंग के बाद अभी ये बातें ग्रे एरिया पर खत्म हुई हैं. इसका पूरा अंजाम नहीं निकला है. RBI की आॅटोनोमी पर खतरा टला नहीं है सिर्फ एक युद्ध-विराम हुआ है. आने वाले दिनों में जो कमेटी बनेगी, उसमें सरकार कैसे लोगों को शामिल करती है, इससे काफी कुछ पता चलेगा. अगली बैठक 14 दिसंबर को होगी, देखना ये होगा कि ये रिपोर्ट मांगी कब जाएगी, क्योंकि मार्च 2019 में चुनाव होने वाले हैं.
भारत में तमाम संस्थाओं में लोकतंत्र के संतुलन को लेकर चल रही बहस गर्म हो गई थी. अगर इसमें कोई एक्शन तेजी से हो जाता, तो वो इस वक्त की सरकार को राजनीतिक रूप से काफी महंगा पड़ता. विवाद आगे न बढ़े, इसलिए इसे टाला गया है. ये बात अभी खत्म नहीं हुई है. ये युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है!
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