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RBI Vs Govt: क्‍या ये आगे की ‘लड़ाई’ से पहले की शांति है?

RBI और Govt विवादित मुद्दों पर क्या फैसला हुआ और उनका क्या मतलब निकलता है.

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कुछ दिनों से रिजर्व बैंक की चर्चा ब्याज दर और बैंकों को रेगुलेट करने के अलावा दूसरी सारी बातों के लिए हो रही थी. सारा मामला कंट्रोल को लेकर का था, रिजर्व बैंक सरकार के इशारों पर काम क्यों न करे?

सरकार की तरफ से बयान आ रहे थे कि रिजर्व बैंक वो सब नहीं कर रहा है, जो उसे करना चाहिए. लेकिन रिजर्व बैंक की तरफ से जवाब आ रहा था कि बैंकिंग रेगुलेशन टेक्निकल काम है और इसमें दखलंदाजी होती है, तो उसके भयावह परिणाम होंगे. याद कीजिए रिजर्व बैंक के सम्मानित डिप्टी गवर्नर का रेथ ऑफ द मार्केट वाला बयान.

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मतलब कि बैंकिंग रेगुलेटर के साथ छेड़छाड़ हुई, तो बाजार में बवाल होगा. इसलिए निगाहें सोमवार के रिजर्व बैंक के बोर्ड मीटिंग पर टिकी थी. क्या मीटिंग के बाद हम तसल्ली से कह सकते हैं कि कंट्रोल के मामले पर आखिरी फैसला आ गया है?

फिलहाल हम कह सकते हैं कि युद्ध-विराम हुआ है. आगे की लड़ाई से पहले की सीजफायर.

अब जानते हैं कि विवादित मुद्दों पर क्या फैसला हुआ और उनका क्या मतलब निकलता है.

RBI अपना अतिरिक्त रिजर्व सरकार को ट्रांसफर करे

RBI और Govt विवादित मुद्दों पर क्या फैसला हुआ और उनका क्या मतलब निकलता है.
रिजर्व बैंक की अगली बोर्ड बैठक 14 दिसंबर को होनी है
(फोटो: PTI)

इस अजीबोगरीब मांग पर काफी बहस हो चुकी है. यह मानना होगा कि रिजर्व बैंक एक सरकारी कंपनी नहीं है, जिस पर अपना मुनाफा सरकार के साथ साझा करने की बाध्यता हो. रिजर्व बैंक जितना स्वस्थ रहेगा, हमारा बैंकिंग सिस्टम उतना ही स्वस्थ रहेगा और अर्थव्यवस्था पर बाहरी खतरे उतने ही कम होंगे. इसलिए रिजर्व बैंक कितना रिजर्व जमा करे और उसका कितना बड़ा हिस्सा सरकार के साथ साझा करे, इस पर एक झटके में फैसला नहीं हो सकता है. मसले पर सरकार ने अपनी जिद छोड़ी, यह अच्छी बात है.

बोर्ड मीटिंग में एक कमेटी बनाने की बात तय हुई. लेकिन पेच यह है कि इस कमेटी में सरकारी नॉमिनी भी होंगे. क्या इस कमेटी में कौन-कौन हों, इसका फैसला पूरी तरह रिजर्व बैंक पर छोड़ना सही नहीं होता?

छोटे कारोबारियों यानी MSME सेक्टर को मिलने वाले लोन में छूट

बोर्ड में सलाह दी गई है कि रिजर्व बैंक इसे लागू करे. फिलहाल कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि रिजर्व बैंक की अगली बोर्ड बैठक, जो 14 दिसंबर को होनी है, उसमें इस पर फैसला हो सकता है. इस फैसले से छोटे कारोबारियों को आसान शर्त पर लोन मिल सकते हैं, जो अच्छी बात है. लेकिन बैंकों की सेहत अगर बिगड़ती है तो?

बोर्ड में इस मसले पर चर्चा हुई और रेगुलेटर को ‘सलाह’ दी गई, जिससे शायद मानना ही होगा- क्या इसे आरबीआई की स्वायत्तता में दखलंदाजी मानी जाए? निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले थोड़ा इंतजार करना ही ठीक होगा.

प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन

इसका सीधा मतलब होता है कि बैंकों की हालत अगर एक तय लिमिट से ज्यादा खराब हो जाती है, तो रेगुलेटर उसके लोन बांटने के अधिकार पर लगाम लगा देता है. इस मामले पर बोर्ड में चर्चा हुई, लेकिन तय हुआ कि मामले पर तत्काल कोई बदलाव नहीं होगा. हां, विचार करने के लिए मामला बोर्ड फॉर फाइनेंशियल सुपरविजन को सौंप दिया गया है.

राहत की बात है कि बैंकों की हालत में सुधार लाने के लिए रिजर्व बैंक के इस फैसले में कोई बदलाव नहीं होने वाला है.

बैंकों को पूंजी जुटाने में छूट

RBI और Govt विवादित मुद्दों पर क्या फैसला हुआ और उनका क्या मतलब निकलता है.
सरकार रिजर्व बैंक के रवैया में छूट चाहती है
(फोटो: PTI)

सरकार का मानना है कि इस मामले में भी रिजर्व बैंक का रवैया काफी सख्त है, जिसमें छूट की जरूरत है. इस मसले में भी बोर्ड ने रिजर्व बैंक के ही स्टैंड को सही माना. बैंको को नए सिस्टम को अपनाने के लिए एक साल की राहत दी गई. पहले जो सिस्टम 2019 में लागू होना था, वो अब 2020 में लागू होगा.

बोर्ड की बैठक के बाद एक बात तो तय है कि रिजर्व बैंक पर कंट्रोल की लड़ाई अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है. फिलहाल 'युद्ध-विराम' अच्छी खबर है. लेकिन सरकार के आक्रामक रुख से लग रहा है कि रिजर्व बैंक से बात मनवाने की कोशिश आगे भी जारी रहेगी. बोर्ड को ज्यादा अधिकार देना इसका पहला कदम हो सकता है.

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