ADVERTISEMENTREMOVE AD

RBI का रेट कटौती ‘मरहम’, नहीं भर पाएगा मंदी का जख्म

आरबीआई अभी यह अंदाजा नहीं लगा पा रहा है कि किस लेवल पर जाकर डिमांड में बढ़ोतरी होगी

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की ओर से शुक्रवार को एक और रेट कटौती हुई. केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वॉइंट की कटौती की और उसी हिसाब से रिवर्स रेपो रेट में कटौती हो गई. अभी तक RBI की ओर से बैंक रेट में 110 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई है. लेकिन बैंकों ने ब्याज दरों में 35 बेसिस प्वाइंट की ही कटौती की है. इसलिए यह कहना मुश्किल है कि इस रेट कटौती का फायदा लोन लेने वालों को मिलेगा या नहीं.

EMI में बहुत ज्यादा राहत मिलने की उम्मीद नहीं

इस रेट कटौती से तो पुराने लोन पर बहुत मामूली असर पड़ेगा, वो भी तब जब बैंक अपने ग्राहकों को इसका फायदा देना चाहें. नए लोन जो रेपो रेट से लिंक है, उन्हें भी थोड़ा फायदा हो सकता है. रिजर्व बैंक ने यह संकेत दिया है कि वो आगे जरूरत पड़ने पर रेपो रेट में और कटौती कर सकता है. ऐसे में होता यह है कि कस्टमर लोन लेने का अपना फैसला रोक देते हैं. इसलिए लगातार रेट कटौती के बावजूद और सरकार की तमाम कोशिश के बाद भी लैंडिंग नहीं बढ़ रही है. कर्ज नहीं उठ रहा है. कंज्यूमर और कंपनियां लोन नहीं ले रही हैं.

0

सरकार ने यह भी ऐलान किया था कि यह लोन मेला लगाएगी. लेकिन अब पता चला है कि यह तो ‘जागरण’ किस्म का लोन मेला होगा जहां कस्टमर से लोन रिकवेस्ट तो ले ली जाएगी. लोन नहीं मिलेगा.इस बीच लोग अगली कटौती का इंतजार करेंगे. इसलिए सरकार की यह कोशिश नाकाम होती या कम सफल होती नजर आ रही है कि लोन के जरिये डिमांड बढ़ाई जाए. डिमांड में इजाफे से इकनॉमी को रफ्तार देने का इरादा था. लेकिन यह कोशिश सफल होती नहीं दिख रही.

आरबीआई अभी यह अंदाजा नहीं लगा पा रहा है कि किस लेवल पर जाकर डिमांड में बढ़ोतरी होगी. इसलिए वह रेट में किसी बड़ी कटौती का कदम नहीं उठा पा रहा है. डिपोजिटरों की भी मुश्किल शुरू होगी क्योंकि अब उन्हें लो इंटरेस्ट रेट के रिजिम से जूझना होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

RBI के सामने राजकोषीय मोर्चे पर अनिश्चितता

सरकार की तरफ से कॉरपोरेट टैक्स में कटौती से जिस डिमांड में बढ़ोतरी की उम्मीद थी, वह होती नहीं दिख रही है. आरबीआई शायद इसलिए बड़ा रेट कट नहीं कर रहा क्योंकि राजकोषीय मोर्चे पर उसे अनिश्चिचतता का अंदाजा नहीं है. आखिर राजकोषीय मोर्चे पर सरकार की बड़ी भूमिका होती है. आरबीआई बड़ी रेट कटौती इसलिए भी नहीं कर पा रहा क्योंकि इससे बैंकों के मार्जिन पर दबाव बढ़ जाएगा. वैसे भी बैंक एनपीए की समस्या से जूझ रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मंदी की रफ्तार रोकने में नाकाम रहेगा यह फैसला

को-ऑपरेटिव बैंकों के संकट ने भी बैंकिंग सिस्टम को दबाव में डाल दिया है. हालांकि आरबीआई ने कहा कि बैंकिंग सिस्टम मजबूत है लेकिन उसने इन बैंकों के प्रबंधन, परिचालन और नियमन से जुड़े सवाल जरूर उठाए. आरबीआई से यह भी उम्मीद थी कि वह एनबीएफसी से जुड़े संकट को सुलझाने के बारे में भी कोई ठोस संकेत देगा लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ.

बहरहाल, आरबीआई के इस फैसले से मंदी की रफ्तार को बदलने में कोई मदद मिलती नहीं दिख रही है. आरबीआई ने ग्रोथ का अनुमान वैसे भी 6.9 फीसदी से घटा कर 6.1 फीसदी कर दिया है. तो लगता है कि ग्रोथ को रफ्तार देने के लिए मॉनेटरी और राजकोषीय यानी दोनों मोर्चे पर जो जुगलबंदी दिखनी चाहिए वह नहीं दिख रही है. अब यही उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार को इस संकट का सही-सही अंदाजा है और वह जल्दी कदम उठाएगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×