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जेट की दाल में कुछ तो काला है! सच में घोटाला है?

एयरलाइंस स्लॉट आवंटन नीति को तोड़ने-मरोड़ने से किसे फायदा हो  रहा है? यहां समझें 

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी

कैमरा: सुमित बडोला

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जेट एयरवेज के बंद होने और उसके बाद जो हो रहा है, इस पर चुनाव के हो-हल्ले में लोगों की नजर कम पड़ी थी. लेकिन इस बीच, दो बड़ी बातें हो गईं, जिनका निचोड़ ये है क्या कहीं क्रोनी कैपिटलिज्म का खेल तो नहीं चल रहा है. सीनियर बीजेपी लीडर सुब्रह्मण्‍यम स्वामी ने सिविल एविएशन मंत्री सुरेश प्रभु को चिट्ठी लिखी और बाद में ट्वीट कर नरेंद्र मोदी से कहा कि आपके दो मंत्री स्पाइसजेट को जेट एयरवेज का कारोबार सौंप देना चाहते हैं .यह गलत हो सकता है. इसके पीछे कुछ गड़बड़ हो सकती है. आप इसे रोकिए. इसका बीजेपी को चुनाव में नुकसान हो सकता है.

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जेट संकट में एसबीआई ने वक्त पर एक्शन नहीं लिया

एक बड़ी बात और हुई. इंडिगो और टाटा विस्तारा ने सरकार को एक चिट्ठी लिखी. इसमें कहा गया है कि जेट के बंद होने के बाद जो स्लॉट खाली हुए हैं उसको जिस तरह से अलॉट किया जा रहा है, उसमें उसमें लेवल प्लेइिंग फील्ड नहीं है. इस बारे में जो 2003 का नियम उसका भी उल्लंघन भी हो रहा है.

जब हम बात करते हैं कि देश में कारोबार और पॉलिसी नियमों पर तो इसका क्या हाल हुआ है ये देख लीजिए. इस कहानी में जो प्लेयर हैं उसमें किसने क्या किया ये देखते हैं. नरेश गोयल की कहानी तो खत्म हो गई. तर्क दिया गया कि एयरलाइन का धंधा महंगा हो गया था. फ्यूल के खर्चे काफी बढ़ गए थे, कर्जा बहुत ले लिया था और महंगा ऑपरेशन चला रहे थे. अब समझ में आया कि वो इसे बचाने की कोशिश नहीं कर रहे थे, खुद बच कर निकलना चाह रहे थे.

दूसरे किरदार की बात करें. जेट में पचास फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी हमारे और आपके यानी एसबीआई और एक सरकारी संस्था एनआईआईएफ के पास है. अब यहां कर्ज देने वालों को क्या करना चाहिए था? उसे पहले से ही पता था कि पता था कि एयरलाइन डूब रही है. ऐसी स्थिति में या तो आप नरेश गोयल से शेयर बिकवाते. उससे पैसे लाते. उनको निकाल बाहर करते और एयरलाइन को बचाते. लेकिन एसबीआई ने वक्त पर एक्शन नहीं लिया.

जब संकट बढ़ गया, तो एसबीआई ने कहा, हम नए बिडर लाएंगे. इनवेस्टर लाएंगे और जरूरत पड़ी तो 1000-1500 करोड़ डाल भी देंगे, लेकिन एयरलाइंस सिक्योटी देगी तभी. लेकिन डूब गई एयरलाइंस के पास सिक्योरिटी कहां से आता. एसबीआई ने सोचा पैसा दे देंगे, तो हमारे ऊपर जांच हो जाएगी. हमारे खिलाफ सीबीआई ने पड़ जाए. लेकिन एसबीआई को ये समझ में नहीं आया कि उसके कारण ही एयरलाइन डूबी. उसका भी पैसा तो डूबेगा. नया इमरजेंसी फंड नहीं डाला.

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सरकार ने उससे ये लिख कर नहीं कहा कि आप इस कंपनी को बचाइए. इसकी कीमत न गिर जाए और 20 हजार कर्मचारी और उनके परिवार के सदस्य यानी लगभग एक लाख लोग संकट में न फंस जाएं, इसका कुछ उपाय कीजिए. लिहाजा एसबीआई ने कुछ नहीं किया. उसने अपनी भूमिका नहीं निभाई. जेट एयरवेज बंद हो गई और दर्दनाक तरीके से बंद हुई.

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इस तरह नियमों की धज्जियां उड़ीं

जेट संकट के बाद एयर ट्रैवल सुचारू रूप से चले. उड़ानें जारी रहें, किराये न बढ़ें इसके लिए डीजीसीए ने कहा कि एयलाइंस कंपनियों को जेट के स्लॉट बांटेंगे. कैबिनेट से मंजूर जो नियम है उसके मुताबिक पहले पुरानी एयरलाइंस को स्लॉट देंगे. फिर नई एयरलाइंस को देंगे. एयर एशिया और विस्तारा नई एयरलाइंस हैं. स्पाइसजेट पुरानी है. एयर एशिया एयरबस उड़ाती हैं. स्पाइसजेट के पास बोइंग हैं. जेट के पास भी बोइंग था. तो स्पाइसजेट को कुछ स्लॉट मुंबई और दिल्ली के प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटर ने दे दिए. और पॉलिसी में ये चेंज कर दिया कि अब स्लॉट उन्हें ही मिलेंगे जिनके पास नए विमान होंगे.

नए विमान लाने में नई एयरलाइंस को समय लगता है. लेकिन इस बीच स्पाइसजेट ने जेट के ग्राउंडेड विमान में से कुछ ले लिए. कुछ विमान और आने थे. ऐलान किया कि अगले दस दिनों में हम अपनी कैपिसिटी बढ़ा लेंगे. बिजनेस क्लास भी शुरू कर देंगे.

स्पाइसजेट के पास अब जेट के बंद हुए स्लॉट का बड़ा हिस्सा और कारोबार जा रहा है. इस पर इंडिगो और विस्तारा ने कड़ी आपत्ति जताई है. यह खबर मीडिया में छपी. हालांकि नाम नहीं लिया गया. लेकिन स्पाइसजेट पर ही हमला था. सब जगह चर्चा हो गई. सुब्रह्मण्‍यम स्वामी ने तो नाम ही ले लिया.

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स्पाइसजेट के मालिक का बीजेपी कनेक्शन

अब स्पाइस जेट के मालिक अजय सिंह पर आते हैं. वो कौन हैं. वह सक्सेसफुल बिजनेसमैन हैं. आईआईटी आईआईएम का बैक ग्राउंड है लेकिन बीजेपी के पुराने समय से जुड़े हैं. ये प्रमोद महाजन के साथ काम करते थे. मारन ने जब स्पाइसजेट को खरीदा और यह डूब गया तो अजय सिंह ने इसे खरीदा और इसे नई जिंदगी दी. पिछली बार यानी 2014 में 'अबकी बार मोदी सरकार' का नारा भी अजय सिंह का ही गढ़ा हुआ था. वो लगातार बीजेपी के साथ काम करते रहे. स्वामी का कहने का मतलब यह है कि पक्षपात हो रहा है. रूल बेस्ड काम नहीं हो रहा है. स्पाइसजेट की प्रतिस्‍पर्धी एयरलाइंस भी यही कर रही हैं.

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सरकार के कदम से पक्षपात की बू

हमें यह कहना है कि अभी चुनाव के हो-हल्ले में यात्रियों को तकलीफ न हो. किराया न बढ़े . ये तर्क देकर सरकार की ओर से कहा गया कि हम जेट के स्लॉट दूसरी एयरलाइंस को दे देंगे. इससे एयर ट्रैवल का फौरी संकट सुलझ जाएगा. सरकार ने कहा कि यह व्यवस्था तीन महीने की ही है. हम बाद में इसे रिव्यू करेंगे. लेकिन एक बार स्लॉट पर कब्जा हो जाने पर आप एयरलाइंस को अचानक इससे हटा नहीं सकते हैं. नई एयरलाइंस को स्लॉट देने में अड़चनें दिखाई गईं. कहा गया कि उन्हें विमान लीज पर नहीं मिलेगा. लांग टर्म डील सामने नहीं है. पक्के डील सामने नहीं आए हैं. छोटे पीरियड के लिए विमान उन्हें मिले या नहीं न मिले. ऐसे तर्क दिए गए. .

ऐसी अनियमितताओं की वजह से टेलीकॉम की तरह, पावर सेक्टर की तरह सिविल एविएशन सेक्टर लगातार संकट से ग्रस्त रहा. उस संकट को और बढ़ाया गया. स्लॉट देने में सरकार ने जो कदम उठाया उससे पक्षपात की बू आ रही है. ये बात हम नहीं कह रहे हैं सारे स्टेक होल्डर कह रहे हैं.

सरकार को लगा कि शायद लगा कि चुनाव के हो- हल्ले में इस पर ज्यादा चर्चा नहीं होगी. इसके पहले आईएलएफएस में भी ऐसा ही हुआ था. आईएलएफएस अर्ध सरकारी कंपनी थी. इसमें लगा नब्बे हजार करोड़ रुपये डूब गए तो ये सरकार के गले पड़े यानी हमारे और आपके यानी पब्लिक के गले पड़े. और अब तक आईएलएफएस संकट का कोई हल नहीं निकला है.

अभी तक एयर इंडिया का प्राइवेटाइजेशन नहीं हुआ. इसका पैसा हम और आप टैक्स प्लेयर दे रहे हैं. जब तक इस देश में रूल बेस्ड तरीके से मार्केट इकनॉमी को नहीं चलाएंगे. इनसाइडर फेवर देंगे. पॉलिटिकल लीडरशिप अपने सनक पर फैसली करेंगे जिसे ब्यूरोक्रेट अपनी मर्जी से लागू करेंगे तो यही हश्र होगा.

सरकार का आखिरी तर्क था कि किराये न बढ़े. यात्रियों की दिक्कतें न बढ़ न जाएं. तो यह भी पर्दा डालने वाली बात थी. डीजीसीए के मुताबिक ही पांच महीने में जेट के अगर 75 विमान ग्राउंड हुए तो 58 जुड़े भी. स्पाइसजेट और इंडिगो ने भी नए विमान जोड़े हैं. जेट के बंद होने की क्राइसिस खड़ा करके इमरजेंसी में एक एयरलाइंस को फेवर करना. ये बात आम लोगों में या आम मीडिया में उतनी चर्चा न पाए जितनी जरूरत है. लेकिन बिजनेस की दुनिया के लोगों को खासी निराशा हुई है. जब आप कहते हैं कि हम रूल बेस्ड इकनॉमी बनाएंगे, मार्केट इकनॉमी को नियमों के हिसाब से चलाएंगे. नया भारत बनाएंगे और जमीन पर इसे लागू नहीं करते तो आपकी सारी बातों का दम निकल जाता है.

सत्ता के करीबी होने का फायदा

आखिर ऐसे कदमों से किसका फायदा हो रहा है. जिस कंपनी को फायदा हो रहा है तो वह कह सकती है कि हम इत्तेफाक से वहां थे और हमारा फायदा हो रहा है तो हमारी गलती कहां है. यह तर्क स्पाइसजेट दे सकता है. जेट के डूबने से किसे फायदा हुआ. माहौल को देखिये. प्लेयर्स के बिहेवियिर देखिए. सारा फायदा किसी एक कंपनी को कैसे मिल रहा है. सारा फायदा अगर जगह पर जा रहा है तो सवाल उठता है कि क्या ऐसी परिस्थितियां बना दी गई जिससे एक कंपनी को फायदा हुआ. एक एयरलाइंस डूबी है और एक सत्ता का करीबी होने का फायदा मिला है. यह साफ दिख रहा है.

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