वीडियो प्रोड्यूसर: अभय कुमार सिंह
वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम
RBI की ये ताजा मॉनेटरी पॉलिसी काफी खास है, क्योंकि नए गवर्नर शक्तिकांत दास की ये पहली पॉलिसी है. ऐसे में इस बार का बजट अगर अंतरिम था, तो रिजर्व बैंक के ऐलान अपने आप में पूरे हैं, ये बताने के लिए कि इकनॉमी की हालत कैसी है.
इस मॉनेटरी पॉलिसी की पहली खास बात ये है कि रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की है. रेपो रेट में 0.25% यानी 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई है. इसके साथ ही रेपो रेट 6.50% से घटकर 6.25% पर आ गया है. इस कटौती के लिए तर्क दिया गया है कि इंफ्लेशन अब कंट्रोल में है और ग्रोथ को बढ़ावा देने की जरूरत है.
दूसरी बात ये है कि बाजार में लिक्विडिटी के संकट को दूर कर करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. लेकिन इनमें सबसे बड़ा ऐलान ये है कि अभी तक किसान को बिना किसी गांरटी के 1 लाख रुपये का लोन मिल सकता था. अब इसे बढ़ाकर 1 लाख 60 हजार रुपये कर दिया गया है. इस ऐलान को सरकार के उस ऐलान के साथ मिलाकर देखे जाने की जरूरत है, जिसमें किसानों को डायरेक्टर कैश ट्रांसफर करने की बात की जा रही है.
इकनॉमिक ग्रोथ के लिए क्या-क्या हैं रिस्क?
रिजर्व बैंक आपको ग्रोथ के लिए क्या-क्या रिस्क बता रहा है, वो समझते हैं:
- निवेश की मांग कम है
- खेती के आंकड़े कमजोर
- फूड और फ्यूल इंफ्लेशन का रिस्क बरकरार
- ट्रेड डेफिसिटी भी चिंता का विषय है
- इंपोर्ट ग्रोथ में कमी आई है
- सर्विस सेक्टर में कम हुई है ग्रोथ रेट
इसके अलावा वैश्विक माहौल के बारे में भी कहा जा रहा है कि स्लो-डाउन हो सकता है, ब्रेग्जिट का खतरा हो सकता है, अमेरिका-चीन के बीच चल रहे ट्रेड-वॉर पर नजर रखनी होगी. अगर इन सारे फैक्टर को मिलाकर देखा जाए, तो ये कहा जा सकता है कि ग्रोथ को बढ़ाना जरूरी है.
संकट जैसी स्थिति है, जिसके लिए 'छोटी कटौती' की गई है. लेकिन बाजार में लिक्विडिटी का असर तब पड़ता है या लोग कर्ज तब लेते हैं, जब अहम ढंग से रेट में बदलाव हो. ऐसा कहा जा रहा है कि 25% की कटौती का बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा.
कैश सरप्लस की तलवार का क्या होगा?
आखिर में जो सबसे बड़ी तलवार आरबीआई पर लटकी है, जो कैश सरप्लस आरबीआई के पास है, उसमें से वो सरकार को कितने पैसे देती है. इस साल का हिसाब करीब 25 हजार के आसपास बनता है, लेकिन अंतरिम वित्तमंत्री पीयूष गोयल एक इंटरव्यू में कह चुके हैं कि आरबीआई के पास जो पुराना बकाया है, वो भी सरकार मांगेगी. लेकिन बाजार के विशेषज्ञों की चिंता ये है कि अगर वो 1 लाख करोड़ रुपये मांगे गए, तो संस्था की ऑटोनोमी पर सवाल खड़े हो जाएंगे.
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