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ब्रेकिंग VIEWS | BSP उपाध्‍यक्ष को हटा मायावती ने बड़ा सिग्नल दिया

क्‍या विपक्ष की ओर से पीएम उम्‍मीदवार बन सकती हैं मायावती?

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कैमरा: अतहर राथर

वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर विवादित बयान देने के मामले में बीएसपी ने अपने नेशनल को-ऑर्डिनेटर के खिलाफ कार्रवाई की है. बीएसपी चीफ मायावती ने इस मामले में सख्‍त तेवर दिखाते हुए जय प्रकाश सिंह को पद से हटा दिया है.

मायावती ने कहा है, ''मुझे पता चला कि बीएसपी के नेशनल को-ऑर्डिनेटर जय प्रकाश सिंह ने पार्टी की विचारधारा के खिलाफ बात कही है. दूसरे दलों के नेताओं के बारे में दिया गया बयान उनकी निजी राय है. पार्टी विचारधारा से अलग बयान देने की वजह से उन्हें तत्काल प्रभाव से उनके पद से हटा दिया गया है.''

मायावती ने ऐसा कर के एक बड़ा सिग्नल दिया है. 2019 के चुनाव की तैयारी है और विपक्ष में किस तरह की सहमति बनेगी, इस पर बहुत ज्यादा बहस होती रहती है.

मायावती ने सुबह-सुबह प्रेस काॅन्फ्रेंस बुलाई और बिना वक्त गंवाए पार्टी उपाध्यक्ष को पद से हटा दिया और इसकी कड़ी आलोचना की. साथ ही एक और बात कही कि जब तक सभी विपक्षी पार्टियों में गठबंधन न हो जाए, तब तक जो पार्टी के शीर्षस्थ नेता हैं, उनके अलावा बाकी लोग बयानबाजी कर माहौल में गलतफहमी पैदा न करें.

मायावती ने जिस तेजी के साथ ये कार्रवाई की, वो बताती है कि विपक्षी नेताओं में जाहिर है कि प्रधानमंत्री कौन बने. दरअसल सबकी अपनी चाहत है. और ये सवाल तब तक बना रहेगा, जब तक चुनाव हो नहीं जाते और इनको मौका न मिल जाए कि कोई विपक्ष का व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सके.

लेकिन इन लोगों में एक तरह का समझौता दिखता है, वो ये कि बीजेपी तो चाहेगी कि ‘सामने कौन?’ का सवाल खड़ा किया जाए. ये सवाल बार-बार खड़ा करके ये दिखाया जाए कि विपक्ष के पास कोई सहमति वाला नेता नहीं है, ये लोग लीड नहीं कर सकते. इसको बेमानी कैसे बनाया जाए.

मायावती ने बिना कोई देर किए कार्रवाई की और अपने नेता को पद से हटा दिया. एक दूसरा मसला भी है इसके साथ. वो ये कि लोकसभा से पहले, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के जो चुनाव हैं, बीएसपी को लगता है कि वहां हर जगह उसकी एक मौजूदगी है. मध्य प्रदेश में तो करीबन 6-7% वोट लेकर वो आती हैं. ग्वालियर, गुना, भिंड, मुरैना वाले इलाके में उनके वोटर्स हैं.

लेकिन बीएसपी चाहती है कि कांग्रेस उसको विधानसभा चुनाव और प्री-पोल अलायंस में अच्छी सीटें दे. पहले बीएसपी प्री-पोल अलायंस के लिए जानी नहीं जाती थी. अभी कर्नाटक में एक छोटा सा अलायंस उसने जेडीएस के साथ किया और 1996 में कांग्रेस के साथ किया था. उसके बाद प्री-पोल अलायंस की राजनीति बीएसपी ने बंद कर दी थी.

लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपना दायरा बढ़ाने के लिए मायावती की कोशिश ये है कि कांग्रेस उसको जगह दे.

लेकिन मायावती को ये भी पता है कि कांग्रेस को जगह कितनी मांगनी है और कांग्रेस कितना जगह देगी, क्योंकि SP और BSP जब UP में अलायंस करेंगे, तो कांग्रेस वहां पिछलग्गू पार्टी है. बहुत कम वोट प्रतिशत उसके पास है. लेकिन तब भी वो वहां एक फैक्टर है. एसपी और बीएसपी चाहेगी कि कांग्रेस उनके साथ रहे, वो उनके लिए ज्यादा दिक्कत पैदा न करे. ये बराबर का लेन-देन है.

आखिरी मुद्दा जिस पर ध्यान देने की जरूरत है कि 2019 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कौन होगा?

सभी विपक्षी नेताओं में ये एक प्रकार की चेतना नजर आती है कि इस ट्रैप में नहीं पड़ना है कि नेता कौन बनेगा? ये सवाल अगर अभी हम उठा देंगे, तो इसका फायदा सिर्फ बीजेपी को मिलने वाला है.

इसलिए आप अगर गौर करेंगे, तो देखेंगे राहुल गांधी खुद इस खेल को कैसे खेल रहे हैं. जहां पर वो नेताओं को स्पेस दे रहे हैं, उनकी प्राइमेसी दिखाना चाहते हैं, जो दूसरी पार्टी के हैं. दूसरे नेता भी ऐसा ही कर रहे हैं.

एक और नाम है जिस पर गौर करना चाहिए, वो है शरद पवार का. शरद पवार इस पूरे विपक्षी गठबंधन के सबसे बड़े, सबसे ज्यादा अनुभवी और वेटरन नेता हैं.

शरद पवार भी कांग्रेस के साथ एक जुगलबंदी के साथ चलना चाहते हैं, क्योंकि महराष्ट्र में इनका अलायंस होगा, वो ये कह चुके हैं.

राहुल गांधी का पीएम बनना तो तब तय होगा, जब कांग्रेस 150 सीटों के आस-पास हो, लेकिन अगर वैसी परिस्थिति नहीं बनती है, तो ‘सामने कौन’ के जवाब में दो नाम होंगे- एक तरफ शरद पवार और दूसरी तरफ मायावती.

और ऐसे बहुत सारे नाम हो सकते हैं. बीजेपी को ये कमजोरी और ये विरोधाभास पता है, इसलिए वो ये सवाल बार-बार लाएगी कि सामने कौन?
लेकिन मुझे लगता है कि ये सवाल एक प्रकार का ट्रैप है, बहुत प्रासंगिक नहीं है. बीजेपी को सूट करता है कि वो इसे प्रासंगिक बनाएं और विपक्षी नेताओं को पता है कि ये चूंकि ट्रैप है, तो इसको पुराने अनुभवों को देखते हुए कैसे नजरअंदाज किया जाए. कैसे ये स्पेस बना के रखी जाए कि कोई भी, जिसके पास नंबर का तर्क होगा, जनादेश का तर्क होगा वो प्रधानमंत्री बन सकता है.

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इसलिए मायावती ने जिस तेजी के साथ, जिस ग्रेस के साथ, जिस गरिमा के साथ राहुल गांधी के बारे में एक पॉजिटिव सिग्नल दिया है, उसको बहुत ध्यान से देखने की जरूरत है. अगर मायावती थोड़ा कम काम भी करतीं और एक बयान दे देतीं कि इस नेता का ये व्यक्तिगत बयान है, हमने उसको डांट दिया है, फटकार दिया है, तो भी काम चल जाता. लेकिन वो इतने पर नहीं रुकीं. 17 जुलाई को सुबह-सुबह प्रेस-कॉन्फ्रेंस बुलाई और जय प्रकाश सिंह को हटा दिया. इससे पता लगता है कि मायावती जेस्चर क्या दे रही हैं और  आने वाले दिनों में विपक्ष का नेता कौन होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने दावेदारी किसकी होगी?  इससे निपटा कैसे जाए, इसको अप्रासंगिक कैसे बनाया जाए, इसके और सिग्नल हमें देखने को मिलने वाले हैं.

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