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द ऑनरेबल जज साहब,
"सर मैं वकील तो नहीं हूं, न ही कानून का ABCD पढ़ा है, लेकिन फिल्मों में देखा है कि कानून सबकी सुनता है. एक कहावत सुनी है कि एक बेगुनाह को बचाने के लिए चाहे 10 गुनहगार बच जाएं लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए. मैं बेगुनाह हूं, लेकिन कई महीनों से जेल में हूं."
सफेद पन्ने पर नीले रंग की रौशनाई से एक स्केच पेंटिंग बनी हुई थी, स्केच के जरिए किसी का धुंधला चेहरा दिख रहा था. जैसे कोई अनजान चेहरा हो. बहुत साफ नहीं था कि किसका स्केच है, कौन है. लेकिन पन्ने के ऊपरी हिस्से में अंग्रेजी में लिखा था 'Delhi Riots 2020' यानी 'दिल्ली दंगा 2020'. पन्ने की निचले हिस्से पर लिखा था 'Big Turn of My Life'. अगले पन्ने पर जज साहब के नाम चिट्ठी थी, जिसका जिक्र ऊपर किया गया है.
दिल्ली दंगे के आरोप में दो साल से जेल में बंद मोहम्मद सलीम खान कभी जज को चिट्ठी लिखते हैं तो कभी अपने परिवार को. जेल में रहते हुए उन्होंने सैकड़ों पन्नों पर अपनी जिंदगी का दर्द उकेर दिया है. सलीम खान की पत्नी शबीना खान इन्हीं पन्नों को समेटते हुए कहती हैं- मेरे शौहर सलीम खान बेगुनाह हैं.
साल 2020 के फरवरी महीने में दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली में हिंसा भड़क उठी थी. इसी हिंसा के आरोप में सलीम खान 13 मार्च 2020 से जेल में बंद हैं.सलीम खान पर 2020 के दिल्ली दंगों का साजिश रचने के लिए UAPA के तहत आरोपी बनाया गया है.
सलीम खान पर कांस्टेबल रतन लाल की हत्या का आरोप
सलीम के तीन बच्चे हैं. 23 साल की साएमा सबसे बड़ी हैं और डेंटल सर्जरी में ग्रैजुएशन कर रही हैं. साएमा बताती हैं,
"मेरे पिता का एक्सपोर्ट का व्यापार था, उनका ऑफिस मुस्तफाबाद के चांद बाग पॉकेट में गली नंबर 3 में था. वो करीब 28 साल से वहीं पर अपना व्यापार कर रहे थे. और हमेशा की तरह 24 फरवरी 2020 को भी चांद बाग में अपने ऑफिस पर थे, तब ही दंगा भड़का. जब भागदौड़ मची तब उन्होंने मेरी मां को फोन कर के कहा कि यहां पर हंगामा हो रहा है. हम लोगों ने भी उनसे कहा कि आप घर न आएॉ क्योंकि घर आने के लिए एक ही रास्ता है और आप रास्ते में फंस सकते हैं. वो वहीं रुक गए. इस हिंसा में 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे. लेकिन हिंसा के बाद हमें पता चला कि दुर्भाग्य से कांस्टेबल रतन लाल जी की मौत हो गई है. मेरे पिता का इसमें कोई हाथ नहीं था.
CAA के विरोध में हुए प्रदर्शनों के बाद फरवरी 2020 में नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में दंगे हुए. आरोप लगा कि कई बेगुनाहों को पुलिस ने जेल में डाल रखा है. इनमें से कई तो सुर्खियों में आए लेकिन कई अनजान चेहरे हैं जो कालकोठरियों में गुम हो गए हैं. क्विंट इन्हीं ऐसे ही चार अनजान चेहरों पर एक डॉक्यूमेंट्री ला रहा है 22 जून को. यहां आप इनमें से एक सलीम खान की कहानी पढ़ रहे हैं. अगर आपको ये कहानी अच्छी लगी और आप चाहते हैं कि ऐसी और कहानियां हम आपतक पहुंचाएं तो Q-इनसाइड बनिए. यहां क्लिक कीजिए.
3 FIR में सलीम खान का नाम
बता दें कि हिंसा के बाद 25 फरवरी, 5 मार्च और 6 मार्च को दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज की गई तीन एफआईआर में सलीम खान को एक आरोपी के रूप में नामित किया गया था. इनमें से दो प्राथमिकी में आपराधिक साजिश, गैर इरादतन हत्या, और स्वेच्छा से चोट पहुंचाने सहित दंडात्मक आरोप हैं, साथ ही आर्मस एक्ट के तहत भी आरोप हैं. सलीम खान के खिलाफ एफआईआर में UAPA की धारा 13, 16, 17, 18, आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 और सार्वजनिक नुकसान की रोकथाम संपत्ति अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4 सहित कड़े आरोप शामिल हैं.
साएमा कहती हैं कि हिंसा के बाद मेरे पापा के पास जांच अधिकारी गुरमीत जी का कॉल आता है. उन्होंने पापा को दो-तीन बार थाने बुलाया और पापा ने जांच में सहयोग किया. साएमा कहती हैं, "ऐसा नहीं था कि पापा ने टाल दिया हो या डर गए हों. पापा का कहना था कि मैंने कुछ किया ही नहीं है और अच्छी बात है कि मैं किसी वैध काम में मदद कर रहा हूं. लेकिन 11 मार्च को पुलिस की तरफ से एक चिट्ठी आई उसके बाद पापा को गिरफ्तार कर लिया गया."
"जब तीन महीने बाद पापा को देखा तो पहचान नहीं पाई"
सलीम खान की पत्नी शबीना खान कहती हैं कि गिरफ्तारी के तीन महीने तक कोई जानकारी नहीं थी कि वो कहां हैं, पुलिस ने उन्हें कहां रखा है. ये कहते हुए शबीना रोने लगती हैं. फिर साएमा बताती हैं कि तीन महीने के बाद पापा का एक बार कॉल आया और जिंदगी में पहली बार वो हमारे सामने रोने लगे. फिर लोधी कॉलोनी पुलिस स्टेशन में हमें अपने पापा से मिलने का मौका मिला.
"सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि जब पापा को गिरफ्तार किया गया था तब वो एकदम फिट थे. लेकिन तीन महीने बाद जब मैं पहली बार उनसे मिली तो मैं उन्हें पहचान भी नहीं सकी. वो इतने दुबले हो चुके थे, बाल-दाढ़ी सफेद हो चुकी थी. मैंने कभी सोच भी नहीं था कि मेरे पापा ऐसे दिख सकते हैं."
पुलिस पर आरोप- बिना सबूत चार्जशीट के पन्नों को बढ़ाकर वक्त कर रहे बर्बाद
सलीम खान के वकील मुजीबुर्रहमान कहते हैं कि जिस FIR 59 में सलीम खान का नाम है, पुलिस ने उसकी चार्जशीट को इतने ज्यादा पन्नों में लिखा है कि वकीलों की टीम को उन्हें पढ़ने में वक्त लगेगा. हमें हर पन्ने को पढ़ना होता है, पता नहीं कहां पर हमारे काम की चीज निकलकर आ जाए. बहुत ज्यादा वक्त लगने वाला उसे बनाया गया है. और यही तो है कि ज्यादा से ज्यादा वक्त जेल में रखना है. आज जेल में रखना अपने आप में सजा है, भले ही आप कल बरी हो जाओ लेकिन आपको सजा मिल गई चाहे आपने वो गुनाह किया हो या नहीं.
बता दें कि मोहम्मद सलीम खान की जमानत याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में 23 मई को सुनवाई हुई थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और पुलिस को नोटिस जारी किया है. अब दिल्ली हाई कोर्ट 20 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई करेगा.
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