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झीरम घाटी हमला: जिसने खत्म कर दी थी पूरी छत्तीसगढ़ कांग्रेस 

नक्सली धमकियों के बावजूद यहां के लोग वोट डालना तो चाहते हैं, लेकिन किसे- ये पता नहीं..

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2013 का झीरम घाटी हमला न छत्तीसगढ़ की जनता भूल सकती है, न ही नेता. 25 मई 2013 को अंजाम दिए गए इस नक्सली नरसंहार के बाद झीरम देश दुनिया में चर्चित हो गया. कांग्रेस पार्टी की पूरी की पूरी लीडरशिप ही उस हमले में खत्म हो गई थी.

चुनाव से ठीक पहले क्विंट पहुंचा झीरम घाटी के उसी नक्सल प्रभावित इलाके में और वहां के लोगों से पूछा कि वो चुनाव के बारे में क्या सोचते हैं? यहां रहने वाले लोगों की जिंदगी में अबतक उस हमले और नक्सलियों का डर हावी है.

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लाल हो गई थी झीरम घाटी

25 मई, 2013 का दिन था. चुनाव की तैयारियों में लगी कांग्रेस पार्टी का पूरा ध्यान बस्तर पर था और इसके लिए एक परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की गई थी. शुरुआत हुई थी नक्सल प्रभावित और बेहद ही संवेदनशील सुकमा जिले से.

सुकमा में पहली सभा को संबोधित करने के बाद कांग्रेस नेता वहां से निकले. पूरी कांग्रेस लीडरशिप लंबे अरसे बाद  एक साथ थी. काफिले में करीब 40 गाड़ियां थीं. जैसे ही काफिले ने दरभा घाटी पार करना शुरू किया, उसी वक्त पहला विस्फोट हुआ. घात लगाकर नक्सली वहां बैठे हुए थे. उन्होंने आईइडी बलास्ट किया और लगातार कई गोलियां बरसाईं.

सबसे पहले नक्सल विरोधी आंदोलन चलाने वाले कांग्रेस के बड़े नेता महेंद्र कर्मा को ढ़ूंढना शुरू किया. महेंद्र कर्मा बस्तर में कांग्रेस पार्टी का चेहरा थे और उस हमले के दौरान नक्सलियों के निशाने पर थे.

हमले में महेंद्र कर्मा, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उदय मुदलियार समेत कांग्रेस के कई नेताओं समेत 27 की मौत स्पाॅट पर ही हो गई. पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल की इलाज के दौरान मौत हुई थी.

स्नैपशॉट

उस हमले का मंजर याद करते हुए लोकल पत्रकार बताते हैं:

हम कई लोगों के साथ वहां 2 घंटे बाद पहुंचे. कई मीडियाकर्मी और आसपास के ग्रामीण मदद के लिए आए हुए थे. लेकिन चारों तरफ लाशें बिखरी पड़ी थीं. लोगों में डर था कि दोबारा विस्फोट न हो जाए. पुल विस्फोट में उड़ गया था. लाशें पेड़ों पर लटकी हुई थीं. नंद कुमार पटेल और उनके लड़के को अपने साथ वो (नक्सली) जंगल की ओर ले गए थे. शाम को खबर मिली कि उन्हें भी मार दिया गया है.
सुरेश सिंह, स्थानीय पत्रकार
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नक्सली धमकियों के बावजूद यहां के लोग वोट डालना तो चाहते हैं, लेकिन किसे, ये पता नहीं. बामन कोवासी कहते हैं कि इस बार वोट डालेंगे, लेकिन जहां मुखिया बोलेगा वहां.

इससे पहले वोट नहीं डाला, सर. नक्सली हाथ-पैर काटने की धमकी देते हैं. 
मंगल, झीरम निवासी
रोड नहीं है, बिजली नहीं है, पानी नहीं है. शौचालय बना लेकिन पानी नहीं है. कोई नहीं आया वोट मांगने.
दुलाराम सोढ़ी, झीरम निवासी

नक्सलियों की धमकी और पाॅलिटिकल क्लास की बेरुखी में फंसे इन आदिवासियों की जिंदगी में चुनाव आते तो हैं, लेकिन कुछ लाते नहीं.

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