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ऑक्सीजन की कमी से हो रही मौतों को रोका जा सकता था, अगर ये सब करते

IndiaSpend का एनालिसिस दिखाता है कि COVID-रेडी अस्पताल और हेल्थ सेंटर जोड़ने का काम सितंबर 2020 के बाद धीमा हो गया.

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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

कोविड से बेहाल हो चुके भारत में ऑक्सीजन की कमी से गई जानों को बचाया जा सकता था, अगर हमारी सरकार कुछ इन तरीकों से सक्रिय रहती तो... .

1. सेंट्रल वॉर रूम कहां है?

मार्च 2020 में, मोदी सरकार ने डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट लागू किया, जो पूरी पावर केंद्र को देता है. लेकिन एक साल बाद, जब कोविड की दूसरी लहर देश में सभी रिकॉर्ड तोड़ रही है... तो नेशनल लेवल की एक को-ऑर्डिनेटेड टास्क-फोर्स या कंट्रोल रूम गायब हैं. ये सब भले कागजों पर मौजूद है, लेकिन देश की आम जनता को इसकी कोई जानकारी नहीं है, कि किससे संपर्क करें या वो क्या कर रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि ऑक्सीजन के मूवमेंट और डिस्ट्रिब्यूशन के लिए एक सेंट्रल ग्रुप राज्यों से को-ऑर्डिनेट कर रहा है, लेकिन अस्पतालों से आती SOS कॉल दूसरी ही कहानी बयां कर रही हैं.

2. आरोग्य सेतु और CoWIN के बारे में क्या?

आरोग्य सेतु और CoWIN जैसे राष्ट्रीय स्तर के पोर्टल को सरकार क्यों मोडिफाई नहीं कर रही है, जिसके पास पहले से ही करोड़ों नागरिकों का डेटा है. वो अस्पतालों में अवेलेबल बेड्स, ऑक्सीजन सिलेंडर, ICU बेड्स, क्रिटिकल मेडिसिन की जानकारी क्यों नहीं दे सकते?

जिससे अगर कोई शख्स इमरजेंसी में है, तो वो हजार फोन कॉल और SOS ट्वीट्स करने की बजाय सीधा एक अपडेटेड पोर्टल पर जानकारी हासिल कर ले. सप्लायर्स और अस्पताल भी इसी पोर्टल पर अपना स्टेटस अपडेट कर सकते हैं. मैं समझती हूं कि इसमें वक्त लग सकता है. लेकिन, फैक्ट ये है कि हमारे पास वक्त था... एक पूरा साल. अब भी हमें आरोग्य सेतु या CoWIN का इस संकट में कोई सही इस्तेमाल होता नहीं दिख रहा है.
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3. कभी-कभार बैठक करने वाली सेंट्रल टास्क फोर्स

केंद्र सरकार की अध्यक्षता वाली टास्क फोर्स कितनी सक्रिय है, ये इस बात से पता चलता है कि फरवरी और मार्च 2021 में इसकी एक भी बैठक नहीं हुई. इस टास्कफोर्स में देश के वैज्ञानिक शामिल हैं और इनका काम केंद्र सरकार को महामारी के खिलाफ लड़ाई में सलाह देने का है. कारवां की एक रिपोर्ट के मुताबिक, टास्कफोर्स की बैठक जनवरी में हुई थी और फिर 15 और 21 अप्रैल को बैठकें हुईं. तब तक देश में दूसरी वेव खतरनाक हो चुकी थी.

4 . 'मेड इन इंडिया' वेंटीलेटर का क्या हुआ?

जुलाई 2020 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि COVID अस्पतालों को पीएम केयर्स फंड के जरिए 50,000 'मेड इन इंडिया' वेंटीलेटर मिलेंगे. लेकिन उसके बाद इस योजना के तहत कितने वेंटीलेटर दिए गए और कितने काम कर रहे हैं, इस मामले में कोई पारदर्शिता या सफाई नहीं दी गई.

5. हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर जोड़ने में हम धीमे हो गए

सरकार ने पहली वेव के दौरान कोविड-संबंधी सुविधाओं को बढ़ाया, लेकिन IndiaSpend का डेटा एनालिसिस दिखाता है कि COVID-रेडी अस्पताल और हेल्थ सेंटर जोड़ने का काम सितंबर 2020 के बाद धीमा हो गया. कुछ फैसिलिटीज बंद कर दी गई. और कुछ जो खुली रहीं, उनमें ज्यादातर नॉन-ऑक्सीजन बेड ही थे. लेकिन फिर जब केस दोबारा बढ़ने शुरू हुए तो सुविधाएं बढ़ाने में देरी क्यों हुई? अब केंद्र आर्मी-नियंत्रित हेल्थ फैसिलिटीज खोल रहा है और राज्य ऑक्सीजन बेड की संख्या बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

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