'हिरासत में हत्या' सीरीज की इस आखिरी कहानी को पढ़कर आप समझ पाएंगे कि पुलिस हिरासत के दौरान सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक हत्या भी होती है. हिरासत के दौरान पुलिस टॉर्चर के नाम पर कई अमानवीय कृत्य करती है, जिसका दिलो-दिमाग पर लम्बे समय तक असर रहता है. कुछ लोग इसे बुरे सपने की तरह भूल कर जिंदगी में आगे बढ़ जाते हैं, तो कुछ के लिए ये जख्म जिंदगी भर का गम देकर जाता है.
ये कहानी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले की है, जहां बीजेपी के 60 साल के कार्यकर्ता कन्हैया बिंद के साथ जिगना थाने में न सिर्फ मारपीट और गाली-गलौज की गई, बल्कि उनसे शौचालय और बरामदा तक साफ करवाने का आरोप है. ये आरोप खुद बीजेपी कार्यकर्ता ने मरने से पहले लगाए, क्योंकि दावा है कि इस घटना के बाद कन्हैया बिंद की सदमे की वजह से पहले तबियत खराब हुई और फिर उनकी मौत हो गई. 29 जुलाई, 2020 को हुई मौत से कुछ दिन पहले बनाया गया उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.
मैंने दर्ख्वास्त दी थी, शिवानंद साहब जांच करने के लिए गए थे. जांच के बाद वो दोनों पक्ष को उठा ले आए और कहा कि पेपर लेकर थाने चलो. गाड़ी में पकड़कर थाने ले आए और गालियां दीं. इसके बाद लॉकअप में बंद कर दिया और मेरा मोबाइल ले लिया. हमसे टॉयलेट और बरामदा साफ कराया. हम बहुत दुखी हैं, अगर सरकार की ऐसी मंशा है तो हम आत्महत्या कर लें.कन्हैया लाल बिंद (मृतक बीजेपी कार्यकर्ता का आखिरी बयान)
पुलिस प्रताड़ना की वजह से सदमे में हुई मौत- परिजन
दरअसल, रन्नोपट्टी के रहने वाले कन्हैया लाल बिंद बीजेपी के बूथ प्रभारी थे. बगल की जमीन को लेकर उनका पड़ोसी से काफी दिनों से विवाद चल रहा था. परिजनों के मुताबिक, उसी मामले को लेकर कन्हैया बिंद लगातार थाने के चक्कर काट रहे थे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी. उस दिन पुलिस वाले दोनों पक्ष को थाने ले गए, जहां उनका मोबाइल छीनकर गाली दी गई और उनको मारपीट कर लॉकअप में बंद कर दिया. इतना ही नहीं, पुलिस ने उनसे बरामदा और टॉयलेट भी साफ करवाया. परिजनों ने बताया कि बीजेपी के नेताओं ने उनको थाने से छुड़ाया. घर आने के बाद बुजुर्ग कन्हैया खूब रोए और खाना-पीना तक छोड़ दिया.
मेरे बाबू जी इतने अच्छे आदमी थे कि पूरे गांव के लोग उनके लिए मरते थे. वो सबको खिलाते-पिलाते थे, सबको मानते थे. वो इतने अच्छे भक्त आदमी थे, कभी ये सब काम नहीं किया था, जो उनसे करवाया गया. इसलिए बाबू जी बहुत दुखी हो गए कि उनके साथ ऐसा हुआ. वापस आने के बाद उन्होंने घूमना-फिरना सब बंद कर दिया, वो बीमार हो गए थे. चिंता की वजह से वह बिस्तर पर पड़े रह गए, हम इधर-उधर दवाई के लिए जाते थे लेकिन कोई दवाई काम नहीं कर रही थी. फिर उन्हें इलाहाबाद ले गए, वहां अस्पताल में एक दिन रहे लेकिन कोई आराम नहीं मिला. फिर उन्हें दूसरे अस्पताल में ले गए. वहां वो एक दिन रहे औऱ उसी रात 29 जुलाई को उनकी मौत हो गई. डॉक्टर उनकी कोई बीमारी ही नहीं ढूंढ पाए. कई सारी जांच हुई लेकिन सब नॉर्मल आता था. कोई बीमारी नहीं दिख रही थी, उनको सिर्फ चिंता थी.ऊषा देवी (मृतक कन्हैया बिंद की बहू)
एनडीए के नेताओं ने मुख्यमंत्री को लिखी चिट्ठी लेकिन नहीं हुई कार्रवाई
कन्हैया बिंद की मौत के मामले में उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग को लेकर सांसद अनुप्रिया पटेल और रमेश चंद बिंद समेत एनडीए के तमाम नेताओं ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखी. स्थानीय स्तर पर बीजेपी नेता लगातार डीएम और एसपी से आरोपी पुलिसवालों पर कार्रवाई की मांग करते रहे. लेकिन इस मामले में आज तक कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई. कार्रवाई के नाम पर तत्कालीन थानाध्यक्ष और एक दूसरे दारोगा को यहां से ट्रांसफर जरूर कर दिया गया. जबकि, पुलिस ने अपनी जांच में परिवार और पार्टी नेताओं के दावों को खारिज करते हुए सदमें में मौत होने से इंकार कर दिया और मौत के पीछे पुरानी बीमारियों को वजह बताया.
जब हम इलाहाबाद से वापस आए तो पुलिस हमारे घर आई और कहा कि उनकी मौत कोरोना की वजह से हुई है, लेकिन जांच में सब ठीक था, कुछ नहीं निकला था. वो कमाते थे, पेंशन पाते थे. अब घर का खर्च पेंशन से चल रहा है. हमे इंसाफ नहीं मिला. हम अब यहां से घर छोड़ कर कहां जाएं, हमारे रहने की जगह नहीं है. हम कहां रहें? हम हमेशा से यहां रह रहे हैं और अब हमको खदेड़ा जा रहा है. कहां जाएं हम? हम यहीं रहेंगे.कलावती देवी (मृतक कन्हैया बिंद की पत्नी)
सरकार अपने कार्यकर्ताओं को भी सुरक्षित नहीं रख पा रही- बीजेपी नेता
मृतक कन्हैया बिंद को इंसाफ दिलाने के लिए स्थानीय बीजेपी नेताओं ने बहुत प्रयत्न किए लेकिन आरोपी पुलिसवालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. आरोप है कि मामले को शांत करने के लिए उनका ट्रांसफर भर कर दिया गया. छानवे के बीजेपी मंडल अध्यक्ष सुजीत मोदनवाल ने कहा कि थाने से प्रताड़ित होकर आने के बाद कन्हैया बिंद ने उन्हें सारी जानकारी दी. उसका समाधान कराने वो जिलाध्यक्ष के पास गए और जिलाध्यक्ष एसपी के यहां गए. पिछड़ा वर्ग आयोग को भी चिट्ठी लिखी गई, लेकिन उसमें भी कुछ नहीं हुआ. उन्हें ये नहीं मालूम था कि कन्हैया की मौत हो जाएगी, नहीं तो उनका इलाज कराने के लिए और आगे तक ले जाते. प्रताड़ना के 10-15 दिन बाद सदमे से उनकी मौत हुई.
हम कार्रवाई से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं लेकिन अब क्या बताएं कि हम लोग कितना झेलेंगे? हम लोग कितनी लड़ाई लड़ेंगे जब कोई सुनने वाला है नहीं. ऐसा लगता है कि अपने शासन में ही हम लोग परेशान हैं. ऐसा लगता है कि सरकार अपने कार्यकर्ताओं को भी सुरक्षित नहीं रख पा रही, लेकिन अब क्या बताएं. पार्टी का दिशा-निर्देश है, वो करना पड़ता है. देश परम वैभव की तरफ आगे बढ़े, प्रदेश आगे बढ़े, विकास हो, इसमें हम लोग लगे रहते हैं लेकिन यही है कि कार्यकर्ता की थोड़ी अवहेलना होती है, इसलिए मैं उससे दुखी और परेशान रहता हूं. ऐसा जघन्य काम करने वाले को सजा मिलनी चाहिए, सजा मिलने से लोगों में एक संदेश जाएगा कि कार्रवाई हुई. लोग जानेंगे कि ऐसा करने पर शासन-प्रशासन चाहे जो हो लेकिन पार्टी का कार्यकर्ता है, उनका कार्रवाई हुआ है.सुजीत मोदनवाल (बीजेपी मंडल अध्यक्ष, छानवे, मिर्जापुर)
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