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दिल्ली हिंसा:ट्रंप दौरे की तारीख से उठ रहा पुलिस जांच पर बड़ा सवाल

इस पूरी साजिश की थ्योरी के केंद्र में वह कथित बैठक है जो शाहीन बाग में 8 जनवरी को हुई.

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'उत्तर पूर्व दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा 'सोची समझी' साजिश का नतीजा थी.' दिल्ली पुलिस की जांच में यह दावा सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है. और, इस साजिश की थ्योरी के केंद्र में वह कथित बैठक है जो शाहीन बाग में 8 जनवरी को हुई.

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क्विंट ने दिल्ली पुलिस की ओर से दायर किए गये दोनों चार्जशीट को परखा. दोनों चार्जशीट चांद बाग इलाके में हिंसा से जुड़े हैं. इन चार्जशीटों में पुलिस ने दावा किया है कि आम आदमी पार्टी के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन, पूर्व जेएनयू छात्र उमर खालिद और युनाइटेड अगेंस्ट हेट के संस्थापक खालिद सैफी ने इस बैठक में डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान फरवरी 2020 में ‘बड़ा विस्फोट’ करने का षड़यंत्र रचा था.

क्विंट ने पता लगाया कि ट्रंप की संभावित भारत यात्रा का पहला संदर्भ 13 जनवरी से पहले नहीं मिलता, जिसके 5 दिन बाद यह कथित बैठक हुई. हमने इन चार्जशीट्स के साथ-साथ मीडिया रिपोर्ट्स, सरकार की ओर से जारी तमाम प्रेस रिलीज को भी परखा और क्रिमिनल लॉयर से इस पूरे टाइमलाइन को समझने का प्रयास किया. यह जानने की भी कोशिश की कि ताहिर, खालिद और उमर को 8 जनवरी को ही ट्रंप की यात्रा के बारे में कैसे पता चल गया.

क्या कहते हैं चार्जशीट?

ये दोनों चार्जशीट चांद बाग इलाके में हुई घटनाओं की जांच से जुड़े हैं. दयालपुर थाना में दर्ज एफआईआर 65/2020 इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) अफसर अंकित शर्मा की हत्या की जांच से जुड़ी हैं जबकि दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में दर्ज एफआईआर 101/2020 चांद बाग में हुई हिंसा से संबंधित है. ताहिर हुसैन दोनों मामलों में अभियुक्त है.

दोनों मामलों में ताहिर हुसैन को आरोपी मुख्य रूप से इस कथित बैठक के कारण बनाया गया है, जो 8 जनवरी को हुई.

8 जनवरी को बैठक में कथित साजिश रचे जाने से जुड़े बाकी विस्तृत ब्योरे दोनों चार्जशीट में हैं. क्राइम ब्रांच की चार्जशीट में दंगे को कथित वित्तीय मदद पहुंचाने की अतिरिक्त जानकारी भी जोड़ी गयी है जबकि एफआईआर 65/2020 (दयालपुर पुलिस स्टेशन) में साजिश का मकसद, खासकर ट्रंप के दौरे का एंगल, बताया गया है.

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चार्जशीट में जो कुछ कहा गया है वो है :

“जांच के दौरान, इस बात का भी खुलासा हुआ है कि अभियुक्त ताहिर हुसैन खालिद सैफी के संपर्क में था जो युनाइड अगेंस्ट हेट ग्रुप से जुड़ा हुआ है. खालिद सैफी के माध्यम से ताहिर हुसैन उमर खालिद से भी जुड़ा हुआ था. खालिद सैफी ने 8 जनवरी 2020 को शाहीन बाग में ताहिर की उमर खालिद से मीटिंग करायी.’’

उस बैठक में बड़ा विस्फोट करने का फैसला हुआ ताकि केंद्र सरकार सीएए/एनआरसी के मुद्दे पर हिल जाए और दुनिया में देश की बदनामी हो. इस बैठक में उमर खालिद ने यह कहते हुए फंड की चिंता नहीं करने का भरोसा दिलाया कि पीएफआई संगठन भी इन दंगों के लिए फंड और सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए तैयार है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान या उससे पहले फरवरी 2020 में इन दंगों की योजना बनायी गयी.

इसके लिए इन दंगों से पूर्व सारे संसाधन जुटाए गये और मैनपावर की व्यवस्था की गयी. दिल्ली में बड़े पैमाने पर दंगे कराने के मकसद से बड़ी तादाद में इन दंगों के लिए लोगों को बुलाया गया. बहरहाल, स्पेशल सेल की ओर से इन दंगों में साजिश के लिए अलग से एक केस 6 मार्च 2020 को एफआईआर नंबर 59/2020 दर्ज किया गया है और इसकी जांच की जा रही है.”

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ट्रंप के दौरे के गिर्द सवाल

इस चार्जशीट में सबसे अहम है पुलिस का दावा कि “बैठक में यह तय किया गया कि बड़ा ब्लास्ट करना है”, “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को बदनाम करना” और “फरवरी महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान या इससे पहले इन दंगों को अंजाम देने की योजना बनायी गयी”.

यहां उत्सुकता की बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फरवरी में भारत दौरे की संभावना की पहली सूचना 13 जनवरी को आयी. द हिन्दू में एक रिपोर्ट छपी जिसका शीर्षक था, “फरवरी के अंत तक ट्रंप भारत आ सकते हैं- सूत्र”. इस रिपोर्ट के कुछ प्रासंगिक हिस्से हैं :

“वाशिंगटन से सिक्योरिटी और लॉजिस्टिक टीमों के इस हफ्ते दिल्ली आने की उम्मीद है ताकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संभावित दौरे की तैयारी हो. कई सूत्रों ने द हिन्दू से इसकी पुष्टि की है. गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रण ठुकरा देने के एक साल बाद अमेरिकी राष्ट्रपति का यह भारत दौरा होगा, जो अब तक घोषित नहीं हुआ है. अमेरिकी सीनेट में महाभियोग की प्रक्रिया के कारण की तारीख में बदलाव न हो, तो फरवरी के अंत में यह दौरा संभव है.”

“सूत्रों का कहना है कि भारत दौरे का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण के बाद लिया गया है जिस बारे में 7 जनवरी को दोनों नेताओँ के बीच टेलीफोन पर बातचीत हुई थी. सूत्रों के अनुसार, नवंबर में चुनाव सेपहले ट्रंप साल की शुरुआत में आने को ‘उत्सुक’ हैं और दोनों पक्ष फरवरी के अंतिम हफ्ते में यात्रा को लेकर काम कर रहे हैं.”

“ट्रंप की यात्रा दोनों नेताओं के लिए कूटनीतिक तौर पर मनोबल बढ़ाने वाली होगी और ऐसा लगता है कि यह यात्रा अमेरिकी कांग्रेस के महाभियोग प्रक्रिया के समय होगी और यात्रा की तारीख, जो वर्तमान में 24 फरवरी के आसपास निश्चित होती दिखती है, उसे बदलना होगा ताकि महाभियोग प्रस्ताव पर सीनेट वोट कर सके.”

यह पहली रिपोर्ट थी. इसके बाद कई रिपोर्ट्स आईं, जिनमें हिन्दुस्तान टाइम्स की वह रिपोर्ट थी जिसका शीर्षक था- डोनाल्ड ट्रंप की राजकीय यात्रा की तारीख को अंतिम रूप देने के लिए भारत-अमेरिका में बातचीत.

इस तरह यहां तक कि पहली मीडिया रिपोर्ट भी सूत्रों के हवाले से थी और उसमें तारीख निश्चित नहीं थी, तो ऐसे में ऐसा कैसे हो सकता है कि उमर खालिद, ताहिर हुसैन और खालिद सैफी 8 जनवरी को मिलें और कथित रूप से ट्रंप की यात्रा के दौरान कुछ योजना बनाएं?

यह दोहराना जरूरी है कि जब यात्रा की पहली मीडिया रिपोर्ट आयी, उसके पांच दिन पहले और प्रधानमंत्री ने जब राष्ट्रपति ट्रंप से बात की, उसके ठीक एक दिन बाद यह कथित बैठक हुई.

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सरकार के प्रेस बयान में ट्रंप की यात्रा का कोई जिक्र नहीं

ऊपर जिक्र किए गये मीडिया रिपोर्ट्स से पहले प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच फोन पर बातचीत की पहली रिपोर्ट विदेश मंत्रालय के प्रेस बयान से आयी. यह 7 जनवरी को प्रकाशित हुई जिसमें शीर्षक था- प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से बात की, उन्हें नये साल की शुभकामनाएं दीं.

बयान में कहा गया कि पीएम मोदी ने “दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत होने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति” को रेखांकित किया. लेकिन, राजकीय यात्रा की चर्चा इसमें शामिल नहीं थी.

पूरे दिसंबर से लेकर 8 जनवरी 2020 तक, जिस तारीख को साजिश वाली महत्वपूर्ण बैठक हुई- के दौरान विदेश मंत्रालय और (वेबसाइट पर मौजूद) प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो के दूसरे बयानों की भी क्विंट ने पड़ताल की. और, ट्रप के भारत दौरे का कोई जिक्र नहीं मिला.

तो इससे हमें सिर्फ दो संभावनाएं दिखती हैं- या तो दिल्ली पुलिस की ओर से दी गयी चार्जशीट में कोई विसंगति या त्रुटि है या फिर ट्रंप की यात्रा की बाबत मीडिया में रिपोर्ट आने से 5 दिन पहले और पीएम मोदी व अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच बातचीत से एक दिन बाद किसी तरीके से ताहिर हुसैन, उमर खालिद और खालिद सैफी को इस बारे में जानकारी थी.

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दिल्ली पुलिस का जवाब

उत्तर पूर्व दिल्ली हिंसा की जांच में शामिल कई दिल्ली पुलिस अधिकारियों से क्विंट ने संपर्क किया. एफआईआर नंबर 65 के प्रभारी जांच अधिकारी और चार्जशीट के मुख्य हस्ताक्षरी इंस्पेक्टर अमलेश्वर राय ने बताया कि साजिश का हिस्सा स्पेशल सेल देख रहा है.

बहरहाल जब इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा गया कि फरवरी 2020 में दंगे करने का फैसला 8 जनवरी को लिया गया था या नहीं, तो राय ने कहा, “संभव है कि 8 जनवरी या उससे पहले ही इस बारे में फैसला ले लिया गया हो. मगर, स्पेशल सेल ही इस बारे में आपको बेहतर बता सकता है.”

कॉल और मैसेज के जरिए क्विंट ने स्पेशल सेल के डीसीपी प्रमोद कुशवाहा, स्पेशल कमिश्नर ऑफ पुलिस (क्राइम) प्रबीर रंजन के साथ-साथ दिल्ली पुलिस के पीआरओ मनदीप सिंह रंधावा से प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया. बहरहाल, पूछताछ के 18 घंटे बाद भी उनसे कोई जवाब नहीं मिला. उनकी प्रतिक्रिया जब कभी भी आएगी, इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

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दिल्ली पुलिस की साजिश वाली थ्योरी पर वकीलों की राय

खालिद, उमर और हुसैन की मीटिंग के बारे में बोलते हुए दिल्ली में क्रिमिनल लॉ प्रैक्टिस में स्थापित और जाने माने वकील सतीश टमटा ने क्विंट को बताया कि चार्जशीट के शब्द बहुत स्पष्ट हैं और इससे साफ होता है कि पुलिस यह आरोप लगा रही है कि 8 जनवरी को योजना बनायी गयी.

“यह साफ है कि पुलिस कह रही है कि सारी योजना 8 जनवरी की मीटिंग में ही बनी”

यह कहते हुए कि साक्ष्य को लेकर कई गंभीर सवाल हैं या फिर यह कहना ज्यादा उपयुक्त होता है कि इन आरोपों को आधार देने के लिए चार्जशीट में साक्ष्य की कमी है, उन्होंने आगे कहा,

“बहरहाल, जो बात मुश्किल में डालने वाली है वह यह कि पुलिस जब दावा कर रही हो तो चार्जशीट में उसे इसका जिक्र भी करना होता है कि किसने ये खुलासे किए और क्या सबूत है. यहां ऐसा लगता है कि कोई साक्ष्य नहीं है. यह उनकी अपनी सोच है.”
सतीश टमटा, मशहूर क्रिमिनल वकील

चार्जशीट में साक्ष्य नहीं होने की अहमियत के बारे में विस्तार से बताते हुए वे कहते हैं, “एक कहानी बतायी जा रही है और कोशिश की जा रही है कि अंतिम रूप देते समय चार्जशीट दिलचस्प हो- जबकि इस दावे के पक्ष में अब तक कोई साक्ष्य नहीं है. इस पर भरोसा तभी किया जा सकता है जब किसी चीज (वस्तु/दस्तावेज) की रिकवरी की गयी हो. अन्यथा यह बयान साक्ष्य के तौर पर स्वीकार करने योग्य नहीं है.”

जब हमने पूछा कि क्या अदालत में जरूरत के हिसाब से पुलिस इस टाइमलाइन को बदल सकती है, क्योंकि किसी आरोपी पर मुकदमा चलाने का आधार चार्जशीट ही होता ह, तो टमटा ने कहा, “मैंने कभी नहीं देखा है कि पुलिस ने एक बार अदालत में कुछ कह दिया हो तो बाद में कभी पीछे मुड़कर अपनी टाइमलाइन को उसने बदला हो. यहां तक कि जब वे सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर करते हैं, तो वे पहले लिए गये रुख में बदलाव नहीं करते.”

उमर खालिद के वकील त्रिदीप पायस प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध नहीं हो पाए. बहरहाल जनवरी में हुई बैठक के बारे में बोलते हुए उमर ने क्विंट को बताया कि, “इसमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है.” दिल्ली में खालिद सैफी के वकील हर्ष बोरा ने कहा, “जो आरोप लगाए गये हैं उसके कोई सबूत नहीं हैं.”

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