इलेक्टोरल बॉन्ड पर छिपे हुए नंबर का सिर्फ एक मकसद हो सकता है और वो है डोनर और राजनीतिक पार्टी के बीच की कड़ी को पूरा करना...ये कहना है रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के एक पूर्व डायरेक्टर का जिन्होंने क्विंट से इस मुद्दे पर खुलकर बात की.
12 अप्रैल को क्विंट ने एक बड़ा खुलासा किया. हमने बताया कि किस तरह इलेक्टोरल बॉन्ड पर एक अल्फा-न्यूमेरिक नंबर छपा होता है. इन बॉन्ड्स को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की कुछ शाखाओं के जरिए बेचा जा रहा है. आगे बढ़ने से पहले आपको बता दें कि आखिर इलेक्टोरल बॉन्ड होता क्या है. आप अगर किसी राजनीतिक पार्टी को चंदा देना चाहते हैं तो आप बैंक की शाखा से उतनी कीमत के बॉन्ड खरीद सकते हैं. सरकार का दावा था कि इसमें पूरी गोपनीयता बरती जाएगी. डोनर के सिवा किसी को पता नहीं होगा कि चंदा किस पार्टी को दिया गया.
लेकिन क्विंट के खुलासे ने साफ कर दिया कि दाल में कुछ काला जरूर है. आरबीआई में निदेशक रह चुके विपिन मलिक ने भी हमारे दावे पर मुहर लगाई. वो इस खबर से चौंक गए. उनके मुताबिक:
मैंने ऐसा छिपा नंबर कभी नहीं देखा क्योंकि कोई ऐसे नंबर को भला क्यों छिपाएगा?विपिन मलिक, पूर्व निदेशक, आरबीआई
बॉन्ड पर जो लैब टेस्ट किए गए वो दिखाते हैं कि अल्ट्रा वायलेट रोशनी में बॉन्ड के ऊपरी हिस्से में दाहिनी ओर एक अल्फा न्यूमेरिक नंबर लिखा नजर आता है.
‘करंसी तक पर छिपे नंबर नहीं होते’
इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह से पैसों की तरह है जो 15 दिन के लिए मान्य है. अगर जारी होने के 15 दिन के भीतर ये किसी पार्टी को नहीं जाता तो ये बेकार हो जाता है. मलिक के मुताबिक, करंसी नोट पर भी सुरक्षा फीचर होते हैं लेकिन ऐसा कोई छिपा नंबर नहीं.
मुझे नहीं मालूम कि इस नंबर को छिपाने का मकसद क्या है. करंसी नोट तक पर नंबर दिखाई देता है. मैं आपको दिखा सकता हूं कि करंसी नोट पर दो जगहों पर नंबर धुंधला ही सही पर नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है.विपिन मलिक, पूर्व निदेशक, आरबीआई
‘छिपे नंबर सिक्योरिटी फीचर नहीं हो सकते’
आरबीआई के पूर्व निदेशक मलिक के मुताबिक छिपा हुआ नंबर किसी किस्म की सुरक्षा चिंता को दूर नहीं करता. इसका एकमात्र मकसद डोनर को ट्रैक करना है क्योंकि बाकी सभी दस्तावेज तो बैंक आपके बॉन्ड खरीदते वक्त मांग ही लेती है.
SBI की चुनिंदा ब्रांच के जरिए इलेक्टोरल बॉन्ड को हर तिमाही कुछ दिनों के लिए बेचा जाता है. क्विंट ने एक-एक हजार के दो बॉन्ड 5 और 9 अप्रैल को खरीदे. खरीद के लिए सभी KYC दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड और पासपोर्ट की फोटोकॉपी जमा कराई गई.
अगर उन्हें इस नंबर को सिक्योरिटी फीचर के नाम पर रखना ही था तो इसे दिखाई देने वाला भी बना सकते थे. आपसे एक फॉर्म भरवाया गया जिसमें आपने सारी जानकारी दीं और एक नंबर जारी कर दिया गया. एक राजनीतिक दल इस बॉन्ड को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अपने खाते में डालकर रकम लेगा. इस केस में एसबीआई को पता चल जाएगा कि ये बॉन्ड पूनम अग्रवाल के नाम जारी किया गया है.विपिन मलिक, पूर्व निदेशक, आरबीआई
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