देशभर में 3 कृषि बिलों को लेकर विवाद चल रहा है. देश के कई हिस्सों में किसानों से लेकर विपक्ष तक सड़कों पर है. सरकार पर आरोप लग रहा है कि सरकार ने बिना किसी से बातचीत करते हुए जल्दबाजी में ये बिल पास कर दिए. लेकिन इन बिलों को लेकर असल विवाद क्या है. सरकार इन बिल के जरिए कृषि क्षेत्र में जो सुधार लाने की बात कर रही है क्या वो सही है? क्या इससे किसानों को मिलने वाला MSP खत्म हो जाएगा, क्या मंडिया तबाह हो जाएंगी?
इस मुद्दे का पक्ष-विपक्ष समझने के लिए हमने दो एक्सपर्ट्स से बात की. फूड एंड एग्रीकल्चर पॉलिसी एक्सपर्ट देविंदर शर्मा से जो कि मानते हैं कि इन बिलों से किसानों का नुकसान होगा. इसके अलावा हमने फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मैनेजिंग एडिटर सुनील जैन से बात की, उनका मानना है कि ये बिल कृषि क्षेत्र में सुधार हैं.
ये तीन बिल क्यों किसान विरोधी हैं?
पक्ष
किसानों का डर है कि इन बिलों से धीरे-धीरे APMC मंडियां खत्म होंगी और MSP पर संकट आ सकता है. किसान जानते हैं कि किसानी का निगमीकरण होगा. इससे किसानों को भारी नुकसान होगा, उनको खेती छोड़कर बाहर निकलना पड़ेगा. किसानों के मन में ये सब भय है. हमने देखा कि है कि इन मुद्दों को लेकर पंजाब और हरियाणा में किस स्तर पर प्रदर्शन हो रहे हैं.देविंदर शर्मा, फूड एंड एग्रीकल्चर पॉलिसी एक्सपर्ट
विपक्ष
पक्ष में दलील देने वाले ये मान रहे हैं कि MSP सिर्फ 5-6% किसानों पर लागू होता है. जैसा कि कहा जा रहा है कि ये विरोध प्रदर्शन कुछ हरियाणा,पंजाब जैसे राज्यों तक सीमित है. ज्यादातर राज्यों में नहीं है. ऐसा इसलिए है क्यों कि MSP का फायदा 1-2 राज्य के बड़े किसानों को ज्यादा मिलता है. MSP सिर्फ 2-3 फसलों में ही ज्यादातर मिलता है. हरियाणा, पंजाब राज्यों को इन बिलों से इसलिए फर्क पड़ता है क्यों कि पंजाब की सरकार को मंडी से 3-4 हजार करोड़ रुपये टैक्स मिलता है.सुनील जैन, मैनेजिंग एडिटर, फाइनेंशियल एक्सप्रेस
'ओपन मार्केट Vs भारी सब्सिडी' दिक्कत कहां है?
ओपन मार्केट में दिक्कत
ओपन मार्केट की नीतियां अमेरिकी एग्रीकल्चर में कारगर साबित नहीं हो पाईं. अमेरिका में 7 दशकों से ओपन मार्केट चल रहे हैं. वहां पर कोई MSP, APMC नहीं है. वहां पर वॉलमार्ट जैसी बड़ी कंपनियां हैं, वहां पर कमोडिटी ट्रेडिंग भी है. US डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के चीफ इकनॉमिस्ट कहते हैं 1960 से लेकर अब तक अमेरिका में किसानों की आय लगातार गिर रही है. अमेरिका में किसानों के ऊपर बैंकरप्सी का टोटल अमाउंट 425 बिलियन डॉलर है. अमेरिका में रेट ऑफ सुसाइड शहरी के मुकाबले ग्रामीण इलाके में 45% ज्यादा है. तो साफ है अमेरिका जैसे विकसित देश में किसानों की ये हालत है तो जब यही सिस्टम भारत में आएगा तो क्या हश्र होगा, हम सोच भी नहीं सकते हैं.देविंदर शर्मा, फूड एंड एग्रीकल्चर पॉलिसी एक्सपर्ट
भारी सब्सिडी में दिक्कत
आज की तारीख में FCI 2.5-3 लाख करोड़ रुपये MSP ऑपरेशन में खर्च करता है. हमने देखा कि इसमें सिर्फ 5% फार्म आउटपुट कवर होता है. असल में देविंदर शर्मा ने भी जो कहा कि अगर पूरे भारत को MSP के दायरे में लाया जाए तो 50 लाख करोड़ रुपये लगेंगे लेकिन सरकार के पास इतना पैसा नहीं है. हम आदर्शवाद में रह सकते हैं कि हमें 1.5-2 गुना MSP मिलना चाहिए. तथ्य ये है कि देश ये करने के लिए सक्षम नहीं है.सुनील जैन, मैनेजिंग एडिटर, फाइनेंशियल एक्सप्रेस
'एक देश, एक मार्केट' या ये दो मार्केट हो गया?
अगर कोई मानता है कि इन बिल के आ जाने से सारा कारोबार मंडियों के बाहर होने लगेगा तो ये मानना सही नहीं है ये सब बदलने में दसियों साल लग जाते हैं. सरकार को ये करना चाहिए कि वो वैकल्पिक मंडी बनाने पर काम करें. फल और सब्जी की को सरकार ने आजादपुर और वाशी की मंडी से डीलिस्ट कर दिया था लेकिन अभी भी फल और सब्जी वहीं बिकता है. ये इसलिए होता है क्यों कि सरकार ने मंडी बनाने पर काम नहीं किया. अभी ये शुरुआती कदम हैं, इनसे देश आगे जरूर बढ़ सकता है.सुनील जैन, मैनेजिंग एडिटर, फाइनेंशियल एक्सप्रेस
हमने इन बिलों के जरिए एक एक देश दो बाजार बना दिए हैं. पंजाब में APMC की मंडियों में 6% टैक्स लगता है. अगर कोई व्यापारी बाहर खरीदता है तो कोई टैक्स नहीं लगता है. बासमती चावल, कपास व्यापारियों ने कहा है कि हमारा टैक्स राइट ऑफ कीजिए नहीं तो हम बाहर से खरीदेंगे. तो इस तरह से धीरे-धीरे सब बाहर निकलते जाएंगे, इसके बाद मंडी में कौन रह जाएगा. लाइसेंस व्यापारी भी जानता है कि उनको 6% टैक्स क्यों देना चाहिए जबकि बाहर बिना टैक्स के खरीदा जा सकता है. तो ये मंडिया अब धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी. अर्थशास्त्रियों का एक तबका कहता रहा है कि असल कीमत तलाशन में MSP एक रोड़ा है. जब तक APMC को नहीं हटाया जा सकता, तब तक कृषि का विकास नहीं हो सकता.देविंदर शर्मा, फूड एंड एग्रीकल्चर पॉलिसी एक्सपर्ट
किसानों के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी या आसान होंगी?
'हमें सब्सिडी नहीं निवेश पर काम करना होगा'
अब तक भारत की पॉलिसी किसान विरोधी रही हैं ये बात पूरी तरह से सही है. हमारी सरकार ने निवेश कम दिया है और सब्सिडी ज्यादा दी है. नेशनल फूड सिक्योरिटी कानून में दो तिहाई लोगों को सब्सिडी मिलती है. 30 रुपये किलो का चावल 3 रुपये किलो में मिलता है. सरकार को इन सब्सिडी को निवेश में बदलना होगा. इन नीतियों को हमें बदलना होगा.सुनील जैन, मैनेजिंग एडिटर, फाइनेंशियल एक्सप्रेस
अब आगे क्या रास्ता हो?
अह हमें एक बिल चाहिए जो अनिवार्य कर दे कि देश में आगे से जो भी ट्रेडिंग है वो MSP से नीचे न हो. ये कानूनी रूप से बाध्य होना चाहिए. पूरे देश में MSP के नीचे ट्रेडिंग न हो सरकार ये सुनिश्चित करे. ये सही मायने में किसानों की असली आजादी होगी.देविंदर शर्मा, फूड एंड एग्रीकल्चर पॉलिसी एक्सपर्ट
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