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इस बाल दिवस पर मिलिए उनसे,जिन्होंने नेहरू की जान बचाई थी

ये हरीश का साहस का ही नतीजा है जिसने राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार की शुरुआत कराई

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प्रोड्यूसर: दीप्ति रामदास

कैमरामैन: सुमित बड़ोला

हरीश मेहरा की उम्र 74 साल है लेकिन उनका दिल आज भी बच्चा है. दिल्ली के चांदनी चौक में रहने वाले इस शख्स ने बचाई थी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जान.

2 अक्टूबर 1957, रामलीला मैदान, नई दिल्ली

स्वतंत्रता सेनानी के बेटे 14 साल के हरीश की ड्यूटी VIP शामियाने में थी जहां से नेहरू रामलीला देख रहे थे. अचानक ही शामियाने में आग लग गई. लेकिन हरीश ने अपनी जान की परवाह किए बिना नेहरू का हाथ पकड़ लिया और तुरंत उन्हें जलते हुए शामियाने से बाहर निकाल ले गए.

वो फिर से उस जलते शामियाने के तरफ दौड़े और 20 फीट के खंबे पर चढ़ कर अपने स्काउट डैगर (खंजर) से जलते हुए हिस्से को काट कर अलग किया. इस काम में उनके हाथ बुरी तरह जल गए थे.

हरीश के इस साहस से कोई भी बेखबर नहीं था. राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार की घोषणा हुई और इंदिरा गांधी ने हरीश के स्कूल जा कर उन्हें ये खुश खबरी दी कि प्रधानमंत्री नेहरू उन्हें उनके साहस के लिए वीरता पुरस्कार देना चाहते हैं.

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ये हरीश का साहस का ही नतीजा है जिससे राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार की शुरुआत हुई.

3 फरवरी 1958, तीन मूर्ति भवन, नई दिल्ली

इंदिरा गांधी जी ने मेरी प्रशंसा की और उसके बाद नेहरू खड़े हुए. उन्होंने कहा- ‘इस बच्चे को परिचय की जरूरत नहीं, मैंने खुद इसकी बहादुरी देखी है’
पहले राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार जितने वाले हरीश मेहरा

हरीश आज भी दिल्ली के चांदनी चौक में रहते हैं, वहां के लोग उन्हें 'नेहरू की जान बचाने वाला बच्चा' के नाम से ही जानते हैं.

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