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डिजिटल होते देश में कैसे छा सकती हैं हमारी भाषाएं?

क्विंट हिंदी और गूगल के साथ मनाइए इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का जश्न

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इंटरनेट पर कुछ ढूंढना हो, पढ़ना हो तो अंग्रेजी आना जरूरी है क्या? इस सवाल का जवाब लोग कई तरह से देते हैं. बहुत से लोगों को लगता है कि हां बिना अंग्रेजी के कुछ भी नहीं हो सकता है. लेकिन कुछ लोग हैं इस मिथ को तोड़ रहे हैं. इन लोगों ने भारतीय भाषाओं की ताकत और उसकी अहमियत को समझा और नए रास्ते भी बनाए. ठीक उसी तरह जिस तरह क्विंट भारतीय भाषाओं को इंटरनेट पर उनकी सही पहचान दिलाने की कोशिश कर रहा है.

इसी कोशिश के बीच क्विंट पहुंचा उर्दू की दुनिया से लोगों को जोड़ने वाली वेबसाइट रेख्ता के संस्थापक संजीव सराफ और भारतीय भाषाओं में पढ़ने और लिखने का ऑनलाइन मंच प्रतिलिपि की को फाउंडर शैली के पास.

संजीव बताते हैं कि भारतीय भाषाओं में उर्दू भी एक भाषा है.

ऐसे तो उर्दू हमारी जिंदगी में किसी न किसी रूप में मौजूद है, लेकिन अंग्रेजी के सामने दूसरी भाषा पीछे हो गई हैं. क्योंकि दुनिया भर में जो कम्युनिकेशन की भाषा अंग्रेजी हो ही गई है. लेकिन जो हमारी क्षेत्रीय भाषा हैं, हिंदुस्तानी भाषा हैं वो भी प्यारी हैं, बस उन्हें ठीक से पेश करने की जरूरत है.

बता दें कि संजीव सराफ ने उर्दू से लोगों को जोड़ने के लिए 2013 में 'रेख्ता' की शुरुआत की थी. फिलहाल रेख्ता की वेबसाइट पर करीब 1200 उर्दू शायरों की 12000 गजलें और नज्में मौजूद हैं. 160 देशों में रेख्ता का दबदबा है. साथ ही रेख्ता का मशहूर जश्न-ए-रेख्ता कार्यक्रम भी लोगों के दिलों में जगह बना चुका है.

डिजिटल होते देश में, कैसे छा सकती हैं हमारी जुबानें?

वहीं इस डिजिटल दौर में हमारी भारतीय भाषा कैसे आगे बढ़ सकती हैं इस बारे में प्रतिलिपि की शैली बताती हैं कि भारत में अभी डिजिटल क्रांति का समय चल रहा है.

सिर्फ प्रतिलिपि ही नहीं ऐसे कई लोग हैं हमारे आसपास जो छोटे गांव और शहरों में बसे लोगों के लिए टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के माध्यमों के जरिए कई नई सुविधा लेकर आ रहे हैं. ऐसे में सभी स्टेकहोल्डर जिसमें सरकार, पब्लिशर और जो भी लोग इसमें हैं उन सबकी जिम्मेदारी है कि वो नए स्टार्टअप को बढ़ावा दें. इन सबको टेक्नोलॉजिकल और फाइनेंशियल सपोर्ट मिले, ताकि भारतीय भाषा भी आगे बढ़ सके.

2014 में शुरू हुआ प्रतिलिपि भारतीय भाषाओं में पढ़ने और लिखने वालों का ऑनलाइन मंच है. फिलहाल करीब 50 हजार से ज्यादा लेखक प्रतिलिपि पर लिख रहे हैं. साथ ही प्रतिलिपि पर 8 भाषाओं में 15 करोड़ से ज्यादा बार हजारों कहानियां पढ़ी गई हैं.

संजीव सराफ कहते हैं, भाषा के लिए सरकार बहुत काम कर रही है, लेकिन जब तक नई पीढ़ी और युवा नहीं जुड़ेंगे तब तक इसका भविष्य उभरेगा नहीं. नई पीढ़ी को जोड़ने की जरूरत है इन्हें जोड़ने का सबसे बड़ा रास्ता टेक्नोलॉजी, इंटरनेट और सोशल मीडिया है.

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