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लेखक अमीश त्रिपाठी के मुताबिक दो भाषाएं होती हैं. एक जो हम पेट से बोलते हैं और दूसरी दिल की भाषा. उन्होंने कहा कि पेट की भाषा (जैसे अंग्रेजी) आपके लिए जरूरी होती है. लेकिन दिल की भाषा जैसे मातृभाषा (हिंदी) के बिना आपका और हमारा जीवन अधूरा है. इसीलिए अपनी मातृभाषा को अपने अंदर जिंदा रखना जरूरी है.
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टॉपिक: हिंदी मातृभाषा अमीश त्रिपाठी
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