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Gopalganj By Election Result: RJD को बीजेपी ने नहीं, ओवैसी और BSP ने हराया?

Gopalganj By Election Result: जिस सीट पर सबसे ज्यादा मुसलमान हैं वहां भी न हो पाई मुसलमानों के मन की बात?

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घर का भेदी लंका ढाए. मुसलमानों के कथित नेता असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) के कारण मुसलमानों के मन की बात ना हो पाई. बिहार (Bihar) के गोपालगंज (Gopalganj) सीट पर सबसे ज्यादा मुसलमान वोट हैं, मगर यहां भी MY समीकरण पर दांव लगाने वाली आरजेडी (RJD) हार गई. मान लें कि मुसलमान और यादव आरजेडी के साथ गए होंगे, तब भी ये दोनों मिलकर भी बीजेपी को नहीं हरा पाए.

बिहार में गोपालगंज सीट पर उपचुनाव के नतीजों का कुल जमा मतलब यही समझ में आ रहा है. इस सीट पर किसको कितने वोट मिले, उसे देखेंगे तो आप भी यही कहेंगे.

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गोपालगंज में मुख्य मुकाबला था आरजेडी उम्मीदवार मोहन प्रसाद गुप्ता और बीजेपी की कुसुम देवी के बीच.

आरजेडी उम्मीदवार को वोट मिले 68259 और बीजेपी उम्मीदवार को वोट मिले 70053.

यानी करीब 1800 मतों का अंतर. अब अगर मान कर चलें कि मुसमलानों ने ज्यादातर वोट आरजेडी को दिए और यादवों ने भी उसी का साथ दिया तो इस लिहाज से आरजेडी को बड़ी जीत मिलनी चाहिए ती. लेकिन ओवैसी के उम्मीदवार अब्दुल सलाम और लालू प्रसाद के साले साधु यादव की पत्नी इंदिरा यादव को मिले वोटों पर नजर डालें तो कहेंगे कि गोपालगंज की सीट पर आरजेडी को बीजेपी ने नहीं, ओवैसी और साधु यादव की पत्नी ने हराया है.

ओवैसी की पार्टी AIMIM को 12212 वोट मिले हैं और बीएसपी से खड़ी हुईं इंदिरा यादव को 8853 वोट मिले हैं. इन दोनों के वोटों को जोड़ दें तो करीब 21 हजार वोट होते हैं.

मुस्लिम-यादव तो वोट मिल ही जाएंगे, ये सोचकर इस बार आरजेडी ने यहां वैश्य समाज से उम्मीदवार खड़ा किया था. लेकिन लगता है ये जुगत काम न आई. वैश्य को टिकट देने के पीछे का समीकरण ये था कि इस सीट पर 38000 वैश्य वोटर हैं. जाहिर है, वैश्य उम्मीदवार होने के बावजूद वैश्यों ने बीजेपी का ही साथ दिया. क्योंकि अगर आधे वैश्यों ने भी आरजेडी को वोट किया होता तो शायद नतीजे कुछ और होते.

इस सीट पर राजपूत वोट 49000, ब्राह्मण वोट 35000 हजार हैं, कुर्मी-कोइरी वोट भी 16000 हैं और भूमिहार वोट 11000 हैं. तो लग रहा है कि सर्वण जातियों का वोट यानी कि राजपूतों, ब्राह्मणों, वैश्यों के वोट एकमुश्त बीजेपी को पड़ा है. और इस तरह से जिस पर सबसे ज्यादा मुसलमान हैं वहां आरजेडी नहीं जीत पाई. और ये बात इसलिए भी अहम है क्योंकि इस सीट पर संख्या के हिसाब से तीसरी सबसे बड़ी जाति यादव हैं. यानी कि 47 हजार.

चूंकि हार जीत का अंतर महज 2 हजार वोट है तो कुर्मी-कोइरी के कारण नीतीश की साथी पार्टी आरजेडी हारी, ये कह नहीं सकते.

अगर आपको लग रहा है कि ये महज संयोग हो सकता है, तो जरा 2020 के नतीजों पर गौर फरमाइए. पिछली बार भी यहां बीजेपी को मिले थे 77791 वोट, महागठबंधन यानी कांग्रेस उम्मीदवार को वोट मिले थे 36000 और साधु यादव को मिले थे 41,000 वोट. उससे पहले 2005 में बीजेपी को मिले थे 78000 वोट और आरजेडी को मिले थे. 73000 वोट. याद रखिए कि 2020 में तेजस्वी नीतीश अलग थे. और 2015 में साथ.

कुल मिलाकर ये आरजेडी और बिहार के महागठबंधन के लिहाज से 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों के लिए अच्छा संदेश नहीं है. बारीकियां चाहें जो हों, भले ही आरजेडी बीजेपी से न हारा हो, भले ही वो बीजेपी-बीएसपी और ओवैसी के चक्रव्यूह में फंस गया हो, लेकिन बीजेपी यही कहेगी कि देखो लालू अपने ही गढ़ गोपालगंज में हार गए. देखो नीतीश तेजस्वी के साथ गए तो भी कुछ कर न पाई. जबकि आंकड़े ये बताता है कि जब भी नीतीश-तेजस्वी साथ आए वो ताकतवर हो जाते हैं.

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