अगस्त में मैंने डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार अमेरिका के दोनों किनारों की यात्रा की. न्यूयॉर्क से लॉस एंजेलिस और वहां से वापसी. ये यात्रा हमेशा ही आंखें खोलने वाली होती है, क्योंकि मीडिया, बिजनेस और राजनीति के मामले में भारत हमेशा अमेरिका के रास्ते पर चलता रहा है, भले ही उससे एक या दो दशक पीछे.
इस बार मैंने देखा कि भारत और अमेरिका में राजनीतिक माहौल एक जैसा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में, दोनों के व्यक्तित्व बाहरी बर्ताव में बिलकुल अलग हैं.
एक ऐसे शख्स हैं जो भद्दे ट्वीट लिखते रहते हैं और दूसरे ऐसे हैं जो सोची-समझी रणनीति के तहत खामोश रहते हैं.लेकिन दस हजार मील की दूरी के बावजूद भी दोनों ने दो बड़े लोकतांत्रिक देशों में एक जैसा ध्रुवीकरण पैदा कर दिया है .
उनके जो कट्टरपंथी समर्थक है, जो लगातार जहर उगलने के साथ साथ धमकाने का काम भी करते हैं. बेहद विनम्र आलोचकों को भी गद्दार घोषित कर दिया जाता है. अगर आप उनके गुलाम नहीं हैं तो आप उनके दुश्मन हैं. दूसरे देशों से आए लोगों और अल्पसंख्यकों को डराकर रखा जाता है. दोनों ही नेता अपना सीना ठोककर बड़े-बड़े दावे करते हैं और कहते हैं कि हमने इकनॉमी को कितना मजबूत कर दिया है. स्टॉक मार्केट कितनी बढ़ गई है. पिछली सरकार की गलतियों को हमने सही कर दिया है.
स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार संस्थानों के बारे में उनका क्या मानना है? वहां तो सीधा-सादा हिसाब है कि ये लोग झूठ बोलते हैं, गलत और फेक न्यूज छापते हैं. इन्हें बैन कर दिया जाना चाहिए.
मैं देख रहा हूं कि हमारे देश में पत्रकारों ने सरेंडर कर दिया है. लेकिन अमेरिका में मुझे साहस दिख रहा है. वहां के न्यूज चैनल पलटवार कर रहे हैं राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ फॉक्स न्यूज पर एक शो आता है "जस्टिस विद जज जीनीन". मैंने उसका एक शो देखा, जो रॉबर्ट म्यूलर के खिलाफ एकतरफा शो था.
रॉबर्ट काफी जोर-शोर से बिना किसी तरह के दबाव में आए राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ जांच कर रहे हैं. अपने इस शो में पिरो ने रॉबर्ट को 'माफिया मैन' बताते हुए कहा कि 'म्यूलर बौखला गए हैं' क्योंकि उनके पास ट्रंप के खिलाफ "कुछ नहीं" है. इतनी बड़ी बात कहने के बावजूद कोई तथ्य नहीं दिए गए सिर्फ एक बड़ा और निराधार दावा कि 'म्यूलर बौखला गए हैं' और फिर इस दावे को अनगिनत बार दोहराया गया ताकि उसे किसी भी तरह सच मान लिया जाए.
अगली सुबह, मैंने सीएनएन चैनल देखा. ब्रायन का शो "रिलायबल सोर्सेस" चल रहा था. ब्रायन शेल्टर ने जीनीन पिरो की वो क्लिप दिखाई जिसमें म्यूलर पर "बौखलाने" का आरोप लगाया गया था. इसके बाद उन्होंने पिरो की काफी आलोचना की कि उन्होंने किस तरह से ये शो बनाया और शो में कोई तथ्य नहीं दिखाया. ये एक सीधी आमने-सामने वाली टक्कर थी उन्होंने कहा कि पिरो ने बिना सबूत के न्यूज बनाने की कोशिश की है. इसी शो में स्टेल्टर ने NBC के कार्यक्रम "मीट द प्रेस" से रुडी जुलियानी की क्लिप भी दिखाई. जिसमें उन्होंने हैरान करने वाला बयान दिया. उन्होंने कहा कि "सच्चाई, सच्चाई नहीं होती"
बड़े आराम से वो ये बोल गए शो में इस बात की भी आलोचना की गई. मुझे ये हमारी खबरों की दुनिया में कुछ नया लगा. कभी ये प्रोफेशनल मर्यादा होती थी कि हम कभी भी अपनी प्रतिस्पर्धा की खबर पर टिप्पणी नहीं करेंगे. लगता है कि अमेरिका में ये प्रोफेशनल मर्यादा छोड़ दी गई है और शायद उसमें एक सीख हमारे देश के न्यूज एडिटर्स के लिए भी है जो संख्या में काफी कम हैं.
लेकिन उनके लिए ये एक सीख है कि शायद हम लोगों को भी पुरानी नैतिकता छोड़ देनी चाहिए क्योंकि जब हमारे देश में देसी 'जीनीन पिरो' न्यूज को मैन्यूफैक्चर करते हैं. मैं आपको उदाहारण देता हूं. राहुल गांधी अभी लंदन में थे तो उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में लोगों को दरकिनार कर देना बेहद खतरनाक है. उन्होंने साफ कहा कि अगर नौकरियां नहीं होंगी तो गरीबी और राजनीतिक तौर पर लोगों को अलग-थलग किए जाने से अतिवाद और हिंसा को अपनी जड़ें जमाने का मौका मिल जाता है.
एक और संदर्भ में राहुल ने कहा कि भारतीय मर्दों की सोच पुरुष-प्रधान है और वो महिलाओं के साथ बराबरी का बर्ताव नहीं करते. अब जो बातें राहुल गांधी ने कही उन्हें कैसे नकारा जा सकता है. ये तो सच्चाई है, ये तो होता है. लेकिन हमारे देसी जीनीन पिरो टेलीविजन एंकर्स हैं. वो टूट पड़े. उन्होंने राहुल को कहा कि वो भारतीय मुसलमानों और भारतीय संस्कृति का अपमान कर रहे हैं. और आखिर में उन्होंने "पाकिस्तान-परस्त" होने का तंज भी कसा जैसे कि जीनीन पिरो के शो में मैंने देखा कि एक बहुत बड़ी बात कही गई और फिर उसे बार-बार बोला गया कि किसी तरह से इसे सच्चाई बना दी जाए. लेकिन जैसे मैंने अमेरिका में देखा क्या यहां पर कोई एंकर या एडिटर है जिसने बोला कि ये जो लोग बोल रहे हैं, वो गलत है.
मुझे लगता है कि अब शायद वो वक्त आ चुका है जब भारत में खबरों की दुनिया के बचे-खुचे दिग्गजों को नई दिल्ली के इस युद्ध के लिए कृष्ण के साथ एक नया संवाद करना चाहिए:
भारत के संपादक अर्जुन: हे मधुसूदन, मेरे चारों ओर ऐसे बुरे और बेईमान प्रोफेशनल भरे हैं, जो लगातार झूठ और फर्जी खबरें फैलाते रहते हैं. लेकिन मैं उनका मुकाबला कैसे करूं? धनुष उठाते समय मेरे हाथ कांपने लगते हैं...आखिरकार, पत्रकारिता के ये कौरव मेरे प्रोफेशनल भाई-बंधु हैं ?
कृष्ण: हे अर्जुन, अपनी अंतरात्मा में सोये पांडव को जगाओ. ये सच्चाई के लिए लड़ा जाने वाला एक पवित्र युद्ध है, और इसमें सच के लिए लड़ने वाले हर पत्रकार-सैनिक को संपादकीय स्वर्ग की सीढ़ी मिलेगी. उठो और अपनी अंतरात्मा में कोई दुविधा रखे बिना लड़ो.
चलते-चलते : प्रिय पाठक, कृपया इस लेख को कोट-ट्वीट करते हुए भारत के भक्त टीवी एंकर्स (#India’sBhaktTVAnchors) को टैग करें. शायद इससे मरी हुई अंतरात्मा फिर से जाग उठे.
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