ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत-चीन की इस रेस में आखिर कौन बनेगा समंदर का सिकंदर? 

मुकाबला बराबरी का है, मैदान कोई भी मार सकता है.

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर- कुनाल मेहरा

कैमरापर्सन- शिव कुमार मौर्या

हिंद-प्रशांत क्षेत्र एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय हलचल के कारण गरमा रहा है. अपने नए एयरक्राफ्ट कैरियर के साथ चीन, भारत को इस रीजन में टक्कर देने के लिए तैयार दिख रहा है. ऐसा लग रहा है कि भारत के असर वाले इस इलाके में चीन अपनी ताकत का अहसास कराना चाहता है. दरअसल, दक्षिण चीन सागर में एयरक्राफ्ट कैरियर उतारने का चीन का मकसद भारत से ज्यादा अमेरिका को निशाना बनाना है, लेकिन इससे इंडियन नेवी पर भी दबाव बढ़ गया है.

क्या है भारत की दिक्कत?

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का सिर्फ एक ऑपरेशनल एयरक्राफ्ट कैरियर है 'INS विक्रमादित्य'. दूसरा एयरक्राफ्ट कैरियर 'INS विक्रांत' अभी कोच्चि में बन ही रहा है, जिसके 2020 में समुद्र में तैनात होने की उम्मीद है.

एक और एयरक्राफ्ट कैरियर INS विशाल के निर्माण की तो अभी बात ही चल रही है, किसी भी सूरत में ये 2030 से पहले तैयार नहीं हो सकेगा.

वहीं, चीन 2020 तक अपना दूसरा एयरक्राफ्ट कैरियर ट्रायल के लिए यहां उतार देगा. यहां तक कि चीन का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर भी बनना शुरू हो गया है. चीन का मकसद ये है कि भारत के 3 एयरक्राफ्ट कैरियर के बदले उसके 6 एयरक्राफ्ट कैरियर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उतर जाएं.

भारत के असर को खत्म करना चाहता है चीन

भारत के प्रभाव को इस क्षेत्र से बिलकुल खत्म करने के लिए चीन तेजी से एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण में जुटा है. आपको पता होगा कि इस क्षेत्र में भारत अपनी नेवी की बदौलत ही मजबूत स्थिति में है.

देशी अपनी रणनीति के जरिए चीन को टक्कर देने का माद्दा रखता है. लेकिन चीन के पास विशाल आर्थिक ताकत और जबरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति है. ऐसे में चीन 'मोतियों की माला' की रणनीति पर काम कर रहा है.

यानी भारत के चारों तरफ आर्थिक और रणनीतिक घेराबंदी की तैयारी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये 'मोतियों की माला' क्या है?

दरअसल, चीन भारत को घेरने के लिए उसके पड़ोसी देशों में अपना मिलिट्री बेस बना रहा है, इसे ही 'मोतियों की माला' या 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' के नाम से जानते हैं. ये देश और उनके मिलिट्री बेस हैं:

  • पाकिस्तान: ग्वादर

पाकिस्तान के ग्वादर में बन रहा चीन का ये बेस 'चीन पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर' का हिस्सा है. ग्वादर बेस पर चीन का नेवी बेस होगा जहां से वो भारत पर आसानी से निशाना साध सकता है.

  • श्रीलंका: हंबनटोटा पोर्ट

हंबनटोटा पोर्ट को चीन ने 99 साल के लिए अपने कब्जे में कर लिया है. चीन का कर्ज श्रीलंका चुका नहीं सका था, ऐसे में चीन ने इस पोर्ट को 99 साल के लिए लीज पर ले लिया. चीन के लिहाज से भारत को घेरने के लिए ये पोर्ट काफी अहम साबित हो सकता है.

  • अफ्रीका: जिबूती नेवल बेस

जिबूती में अमेरिका और चीन दोनों का नेवल बेस है. वहीं फ्रांस के बेस के जरिए भारत की भी यहां पहुंच है. लेकिन यहां का एक बेस चीन को पूरी तरह से सौंप दिया गया है.

  • म्यांमार: Kyaukpyu

चीन ने बंगाल की खाड़ी में मौजूद Kyaukpyu में डीप सी पोर्ट बनाने का टेंडर हासिल कर लिया है. यहां एक और डर है कि म्यांमार के लिए चीन के भारीभरकम 7.5 अरब डॉलर कर्ज को चुकाना मुश्किल होगा. और लगता है कि इसका भी हश्र हंबनटोटा पोर्ट की तरह ही होगा. इस तरह से चीन को हिंद महासागर में पैर जमाने का एक और बेस मिल जाएगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत भी कुछ ज्यादा पीछे नहीं है


अगर चीन की इस रणनीति से भारत की तुलना करें तो भारत के हालात इतने भी बुरे नहीं हैं.

2018 की ही शुरुआत में भारत और इंडोनेशिया ने मिलकर ‘सबंग’ में स्ट्रैटेजिक नेवल पोर्ट बनाने का फैसला किया है. ये रणनीतिक तौर पर बेहद अहम ‘मलक्का जलडमरूमध्य’ के बिलकुल मुहाने पर है.

हॉरमुज में ओमानी पोर्ट तक भारत के नेवी की पहुंच आसान हो गई है. इस रास्ते से दुनिया के कुल तेल के 30 फीसदी की ढुलाई होती है.

इसके अलावा 2017 के आखिर में, भारत ने सिंगापुर के चांगी पोर्ट तक अपनी पहुंच बनाने का इंतजाम कर लिया था. ये सबंग पोर्ट के बिलकुल दूसरी तरफ है.


भारत-चीन के बीच बराबरी का मुकाबला


इन सारे गुणा भाग के बाद चीन और भारत की ये रेस कुछ ऐसे दिखती है.

आर्थिक तौर पर चीन का मुकाबला भारत नहीं कर सकता है. चीन के पास अकूत आर्थिक ताकत है लेकिन भारत सिर्फ अपना हित न देखकर पड़ोसी देशों को फायदा पहुंचाने वाले समझौतों से चीन की रणनीति को टक्कर दे सकता है. सहयोगी देशों को कर्ज के जाल में फंसाने की चीन की रणनीति के उलट भारत रणनीतिक सहयोगियों को फायदा पहुंचाकर बाजी पलट सकता है.

अभी भी मुकाबला बराबरी का है. मैदान कोई भी मार सकता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×