6 दिसंबर 2023, जगह- लोकसभा. माइक पर देश के गृह मंत्री अमित शाह बोल रहे थे- "इसी सदन में रहकर, सारी मर्यादा तोड़कर कहते थे कि अगर धारा 370 खत्म हुआ तो खून की नदियां बह जाएंगी. खून की नदियां छोड़ो कंकड़ चलाने की हिम्मत नहीं है किसी की.."
अब आप ये हेडलाइन देखिए...
जम्मू कश्मीर के गांदरबल में आतंकवादी हमला, बिहार के 3 मजदूरों सहित 7 लोगों की मौत
आतंकी हमले में MP के इंजीनियर की भी मौत
Doctor among 7 killed in Ganderbal's terrorist attack in Jammu and Kashmir
सवाल यही है कि जहां कंकड़ चलाने की हिम्मत नहीं होने का दावा किया जा रहा था वहां आए दिन कभी बाहरी, कभी कश्मीरी, कभी सेक्योरिटी फोर्स के जवानों की जान कैसे और क्यों जा रही है... क्या कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद लोगों की मौत की संख्या कम हुई है? साल 2014 से लेकर 2024 तक कितने आम लोग और जवान शहीद हुए? सरकारी दावों पर उठते ये सवाल पूछते हैं जनाब ऐसे कैसे?
इस आर्टिकल को आगे पढ़ने से पहले आपसे एक अपील है. हमारे लिए हर एक की जिंदगी मायने रखती है.. चाहे वो कश्मीरी हो या बिहारी.. इसलिए आपका क्विंट, सेना के जवान से लेकर आम इंसान तक की सुरक्षा के लिए सवाल भी उठाता है..इसके लिए आपके साथ की जरूरत है. ..क्विंट का मेंबर बने. मेंबर बनने के लिए लिंक पर क्लिक करें.
अब बात 20 अक्टूबर 2024 की. जगह- जम्मू-कश्मीर का गांदरबल जिला. सोनमर्ग इलाके के गुंड में एक निर्माणाधीन सुरंग के पास आतंकी हमला हुआ, जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई. मरने वालों में एक स्थानीय डॉक्टर और टनल में काम करने वाले 6 कर्मचारी शामिल हैं. मरने वालों में पांच लोग गैर-स्थानीय यानी बाहरी थे.
जिन सात लोगों की मौत हुई है, उनमें बिहार के फहीम नासिर (सेफ्टी मैनेजर), मोहम्मद हनीफ और कलीम, मध्य प्रदेश के इंजीनियर अनिल शुक्ला, जम्मू के शशि अबरोल, पंजाब के गुरमीत सिंह और कश्मीर के डॉक्टर शाहनवाज शामिल हैं.
इस अटैक में 5 लोग घायल भी हुए हैं.
दशहरा और दीवाली जैसे त्योहारों में इन घरों में महीने का खर्च या घर के लिए सामान नहीं बल्कि उन कमाने वालों के शव पहुंच रहे हैं.
बिहार के हनीफ कश्मीर में पेंटर का काम करते थे. उनकी पत्नी, मां और दो बेटियां हैं. बेटियों की शादी करनी थी. बिहार सरकार ने 2-2 लाख रुपये के मुआवजे की बात कही है.
इस हमले में मध्यप्रदेश के सीधी जिले के रहने वाले इंजीनियर अनिल शुक्ला (45) की भी मौत हुई है.. उनका एक बेटा और एक बेटी है. मध्य प्रदेश सरकार 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता राशि देने की बात कह रही है.
शायद आप सरकारी मुआवजे की राशि देखकर हैरान हो रहे होंगे. होना भी चाहिए.
20 अक्तूबर के हमले से ठीक दो दिन पहले 18 अक्तूबर को जम्मू कश्मीर के शोपियां जिले में बिहार के रहने वाले अशोक चौहान का शव मिला था. अशोक जम्मू कश्मीर में मजदूरी करते थे. किसने क्यों मारा?
आप पिछले कुछ वक्त में जम्मू-कश्मीर में हुए हमले और उनसे जुड़ी हेडलाइन देखिए.
-10 अंगस्त 2024
2 soldiers killed, four injured in gun battle with militants in J&K
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में चल रहे आतंकवाद विरोधी अभियान में दो सैनिक मारे गए और चार घायल हो गए.
-16 जुलाई
डोडा में आतंकियों से मुठभेड़ में 48 राष्ट्रीय राइफल के कैप्टन समेत 4 जवान शहीद हुए थे.
-8 जुलाई 2024
कठुआ में सेना के वाहन पर ग्रेनेड से आतंकी हमला: अफसर समेत 5 जवान शहीद.
-10 जून 2024
जम्मू कश्मीर के रियासी में तीर्थयात्रियों की बस पर आतंकवादी हमला. जिसमें 9 लोगों की मौत हुई. करीब 41 लोग हमले में घायल हुए.
ऐसी हेडलाइन तो बहुत हैं, लेकिन चलिए अब आपको कुछ आंकड़े दिखाते हैं.
10 साल में जम्मू-कश्मीर में कितने आम नागरिक मारे गए?
साल 2014 से लेकर 2018 तक यानी आर्टिकल 370 के हटने से पहले की कहानी.
जम्मू कश्मीर में करीब 339 सिक्योरिटी फोर्स के जवान शहीद हुए..
2019 से 2024 अक्तूबर तक करीब 271.
मतलब 2014 से 2024 के 20 अक्टूबर के बीच करीब 610 जवान शहीद हुए.
वहीं अगर सिवीलियन यानी आम लोगों की मौत की बात करें तो
साल 2014 से 2018 तक 155 लोगों की आतंकी हमले की वजह से मौत हुई.
वहीं 2019 से लेकर 20 अक्तूबर 2024 तक करीब 191 लोग आतंकी हमले में मारे गए.
मतलब 2014 से लेकर 2024 के 20 अक्तूबर तक करीब 346 लोग मारे गए.
यहां एक बात अहम है कि 2019 से 2024 के बीच आतंकी हमले में आम लोगों के मारे जाने की संख्या बढी है.
अगर 2014 से 2024 के बीच सुरक्षा बल के जवान और आम लोगों की मौत की संख्या जोड़ दें तो अबतक करीब 956 लोगों की जान गई है. ये वो आंकड़ें हैं जो सरकार देती है. जो रिकॉर्ड में दर्ज है.
10 साल में कितने मिलिटेंट मारे गए
अब इन सबके बीच सवाल होगा कि इन 10 सालों में कितने मिलिटेंट मारे गए. अगर सरकारी आंकड़े देखें तो साल 2014 से 2023 तक मिलिटेंट के मारे जाने की संख्या करीब 1655 है.
2014 से 2018 के बीच - 838
2019 से 2023 के बीच - 817 मिलिटेंट मिलिटेंट मारे गए
हां, ये सच है कि 2004 से लेकर 2014 यानी यूपीए की सरकार में और 2014 से लेकर 2024 यानी एनडीए की सरकार में आतंकी हमले, घुसपैठ में कमी आई है.. लेकिन सवाल सबसे अहम है कि क्यों मौत का सिलसिला थम नहीं रहा. मीडिया और नेताओं के लिए लोगों की मौत आंकड़े और संख्या होगी. लेकिन किसी के लिए ये जिंदगी होती है. जिसकी कमी किसी मुआवजे से या खून के बदले खून से भी पूरी नहीं की जा सकती.
कश्मीरी पंडितों के नाम पर राजनीति खूब होती है, कश्मीरी पंडितों पर 90 के दशक में जो जुल्म हुआ उसे भुलाया नहीं जा सकता लेकिन उस दर्द के साथ-साथ जो अब हत्याएं हो रही हैं, उन सबकी दर्द की दवा ढूंढ़नी होगी. बंदूक के साए में शहर नहीं बसते, डायलॉग करना होगा. कहां चूक हो रही है? क्यों इंटेलिजेंस फेल हो रही है? मीडिया मैनेजमेंट से कश्मीर में नॉर्मलसी दिखाने से सब ठीक नहीं हो जाएगा. नहीं तो फिर हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?
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