पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को केदारनाथ यात्रा की और फिर वहां की एक गुफा में ध्यान के लिए बैठ गए. ऐन चुनाव के पहले पीएम की केदारनाथ यात्रा से यह इलाका फिर चर्चा में है. केदारनाथ पर्यावरण के लिहाज से काफी संवेदनशील है. केदारनाथ की पूरी इकोलॉजी समझ रखने वाले और इस विषय पर किताब लिख चुके सीनियर जर्नलिस्ट हृदयेश जोशी का कहना है कि जिस तरह से यहां डेवलपमेंट हो रहा है वह बेहद चिंता की बात है. उनका कहना है कि डेवलपमेंट के नाम पर केदारनाथ को नेस्तनाबूद किया जा रहा है.
केदारनाथ को पॉलिटिकल प्रोजेक्ट की तरह उछालना ठीक नहीं
जोशी के मुताबिक 2013 में यहां आई भयंकर बाढ़ के बाद से जिस तरह से यहां पुनर्निर्माण का काम हो रहा है, वह केदारनाथ के पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक है. सरकार ने जिस तरह से केदारनाथ को पॉलिटिकल प्रोजेक्ट की तरह उछाला है, वह ठीक नहीं है. केदारनाथ पर्यावरण के लिहाज से बेहद संवेदनशील है लेकिन डेवलपमेंट के नाम पर इसे बरबाद किया जा रहा है. आज इसे संरक्षित करने की जरूरत है. लेकिन इलाके को प्रोटेक्ट करने के नाम पर जिस तरह की परियोजना चलाई जा रही है वह इसके मिजाज से मेल नहीं खाता. इस इलाके को संरक्षित करने करने की जरूरत है.
केदारनाथ की पर्यावरण संवेदनशीलता पर ध्यान नहीं दे रही सरकार
केदारनाथ की त्रासदी में दस हजार लोगों की मौत हो गई थी. इसके बारे में पुनर्वास और पुनर्निर्माण काम जिस तरह से हो रहा है वह डरावना है. जैसे केदारनाथ के चारों ओर तीन सड़कें बनाई जा रही हैं. इससे केदारनाथ को बचाने की बात हो रही है. लेकिन सभी जानते हैं कि केदारनाथ की तबाही चोराबरी लेक टूटने से हुई थी. तो साफ है कि यह दीवार बेकार बन रही है. यह कुछ नहीं ठेकेदारों, नौकरशाहों और सरकार का गठजोड़ का नतीजा है. यहां निर्माण बहुत संवेदनशील तरीके से होना चाहिए, जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो लेकिन इस सिलसिले में न पर्यावरणवादियों की सुनी जा रही है न वैज्ञानिकों की और न भूगर्भ शास्त्रियों की.
एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट बताती हैं कि यहां एक लाख पेड़ काट दिए गए हैं. चार धाम हाईवे बनाने के लिए. लेकिन चारों तक कंक्रीट का जंगल तैयार हो रहा है. ऐसा जंगल बड़ी मुसीबत ला सकता है.
इस मॉडल से न रोजगार मिलेगा और न पर्यावरण बचेगा
केदारनाथ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट को दो तरीके से डेवलप करना था. एक तो रोजगार पैदा करना था लेकिन जहां जिप रोड बनाई जा रही, जिससे बेहद तेज गति से केदारनाथ पहुंचा जा सके तो कोई रास्ते में क्या रुकेगा और लोगों को रोजगार क्या मिलेगा. यहां ग्लेशियर पिघल रहे हैं. लेकिन कोई विशेषज्ञों की नहीं सुन रहा है. नदियों में कंक्रीट की डंपिंग हो रही है. केदारनाथ को डेवलप करने के इरादे पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. लेकिन पर्यावरण को ही नेस्तनाबूद कर केदारनाथ का विकास नहीं हो सकता. याद रहे इस सरकार के एजेंडे में केदारनाथ के विकास का जो मॉडल वह इसे और इसके आसपास के पूरे इलाके के लिए खतरे की घंटी है.
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