वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम
अगर आप ऊखीमठ से गुप्तकाशी के रास्ते पर ड्राइव कर रहे हैं और घड़ी शाम के चार बजा रही है तो मुमकिन है कि आपकी मुलाकात रूम-रूम बॉयज से हो जाए. कुछ युवा जो आपकी गाड़ी को देखकर रूम-रूम की आवाजें लगाते हैं. भला हो इन लड़कों का, पर्यटकों को कमरे के लिए बहुत माथापच्ची नहीं करनी पड़ती.
इन लड़कों में से एक आपका सामान उठाता है, कमरे खोलता है और आप अपने कमरे में दाखिल हो जाते हैं. आपको ये लड़के स्कूली छोड़ चुके नजर आ सकते हैं. ऐसे बच्चे जो अब इसी कारोबार का हिस्सा बन चुके हैं. लेकिन ऐसा पूरी तरह सच नहीं है.
16 साल का कुशल बताता है कि वो 10वीं का छात्र है और उसकी उम्र 16 साल है. उत्तराखंड के इस हिस्से में कुशल और कई दूसरे युवा गर्मी की छुट्टियों का बेसब्री से इंतजार करते हैं. इसलिए नहीं कि पढ़ाई के प्रेशर से कुछ दिनों का ब्रेक मिल जाता है बल्कि इसलिए कि ये उनके लिए छोटी-मोटी इंटर्नशिप लेकर आती हैं. इन दो महीनों में कुशल 6 से 7 हजार के बीच कमा लेता है और इसी पैसे से अपने स्कूल की फीस भरता है.
17 साल के मोहित रावत इस काम को एक तजुर्बे के तौर पर देख रहे हैं. उन्हें लगता है कि नौकरी करना इतना आसान नहीं.
बचपन में हम जो कुछ चाहते हैं वो माता-पिता से मिल जाता है. लेकिन जब हम खुद काम करते हैं तब हमारी मांगों की कीमत और माता-पिता की मुश्किल का एहसास होता है. नौकरी आसान नहीं है. इसके लिए रात-दिन एक करना पड़ता है.मोहित रावत
लेकिन हर कोई पढ़ते हुए ही ये काम कर रहा हो, ऐसा भी नहीं. दीपक सिंह रावत एक छोटे होटल में बेलबॉय हैं और होटल के मेहमानों का सामान कमरे तक लाने-ले जाने में मदद करते हैं. उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी शुरू करनी पड़ी. लेकिन कंपनी बंद हो गई और वो बेरोजगार. आज वो शादीशुदा हैं और अपनी आमदनी के लिए इस होटल कारोबार पर ही निर्भर हैं.
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उत्तराखंड ग्रामीण विकास और प्रवासन आयोग की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में 8 लाख 90 हजार लोग बेरोजगार हैं. यही रिपोर्ट ये भी कहती है कि 25 से कम उम्र के 70 फीसदी युवा बेहतर मौकों की तलाश में राज्य छोड़कर जा चुके हैं.
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