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मेघालय: एक ऐसा गांव जहां नाम की जगह बच्चों को गाकर पुकारा जाता है

बदकिस्मती से इनकी ये परंपरा इतिहास के किसी पन्ने पर दर्ज नहीं है.

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वीडियो एडिटर- कुणाल

Eeooow, Ooeeo, ooeeeii...

ये कोई टाइपिंग की गलती नहीं है और न ही लेखक ने कोई बेकार के शब्द लिखे हैं. ये वास्तव में नाम हैं जो मेघालय के गांव कॉन्गथॉन्ग में पुकारे जाते हैं. यहां की स्थानीय भाषा में इन म्यूजिकल नामों को 'जिंग्रवाई याऊबे' कहा जाता है.

जिंग्रवाई का मतलब है- गीत
याऊबे का मतलब है- कबीले की महिला पूर्वज

खासी एक मातृप्रधान समाज है. इसलिए ये नाम उस महिला को समर्पित होते हैं जिसने कबीले की शुरुआत की हो या 'कबीले की महिला पूर्वज' हो. इस परंपरा को एक नई डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया है, जिसका नाम है- My Name is Eeooow’.

करीब 12 गांवों में ये परंपरा चलन में है. इस प्रथा को पूर्वी खासी हिल के कुछ गांवों में अपनाया जाता है, जो 'खादर शनोंग' इलाका कहलाता है. बदकिस्मती से इनकी ये परंपरा इतिहास के किसी पन्ने पर दर्ज नहीं है. वो नहीं जानते कि उनकी ये परंपरा कब शुरू हुई. लेकिन ये पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है.

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‘My Name is Eeooow’ को सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र ने प्रोड्यूस किया और नेशनल अवॉर्ड विनिंग डॉक्यूमेंट्री के फिल्ममेकर अोइनाम डोरेन ने इस डायरेक्ट किया है. चूंकि डोरेन मणिपुर से हैं तो उनके लिए मेघालय की खासी भाषा को समझना मुश्किल था. उनके साथ के क्रू सदस्यों ने उनकी मदद कि वो शिलॉन्ग में रह चुके थे. फिल्म यूनाइटिड किंगडम और इटली में अवॉर्ड जीत चुकी है.

कॉन्गथॉन्ग में स्थानीय लोगों के दो नाम हैं- एक आम नाम, दूसरा म्यूजिकल नाम. यहां तक कि म्यूजिकल नाम भी दो तरह से होते हैं- एक छोटी धुन में और एक बड़ी धुन में. छोटी धुन वाले नाम घर में पुकारे जाते हैं. बड़ी धुन के नामों को जंगल में इस्तेमाल किया जाता है. स्थानीय लोगों का मानना है कि बड़ी धुन के नाम बुरी आत्माओं को भ्रमित करते हैं और उनसे दूर रहने में मदद करते हैं.

इस इलाके में बच्चे का जन्म होने पर उसकी मां गाने वाला नाम रखती है. लेकिन धीरे-धीरे इनकी परंपरा ‘जिंग्रवाई याऊबे’ खत्म हो रही है. ऐसा दूसरे गांवों के प्रभाव की वजह से हो रहा है.
अोइनाम डोरेन, निर्देशक, ‘My Name is Eeooow’

गांवों में इंटरनेट और मोबाइल बढ़ रहे हैं. इसलिए बाहर से भी म्यूजिक आ रहा है. एक महिला ने तो अपने बच्चे का नाम बॉलीवुड गाने 'कहो न प्यार है' कि धुन पर रखा है.

समुदाय से बाहर शादी करने के कारण भी 'म्यूजिकल नाम' वाली परंपरा खत्म हो रही है. उन गांवों में शादी की जा रही हैं जहां 'जिंग्रवाई याऊबे' को अपनाया नहीं जाता. शादी के बाद बच्चों के नाम वैसे नहीं रखे जाते जैसे कॉन्गथॉन्ग में रखे जाते हैं.

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