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पटेल की मानते तो भारत, तिब्बत की ये स्थिति ना होती- लोबसांग सांगेय

‘भारत ने जितना हमारे लिए किया है किसी और देश और जनता ने नहीं किया है’

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तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति डॉ. लोबसांग सांगेय की भारत-चीन सीमा पर हुई हिंसक झड़प और लगातार चल रहे तनाव पर क्या राय है ये जानने के लिए हमने उनसे बात की. चीन के रवैए को भारत को कैसे देखना चाहिए? तिब्बत का चीन के प्रति कैसा अनुभव रहा है?और भारत को इससे क्या सबक लेना चाहिए? इन सब सवालों के इर्द गिर्द हमने डॉ लोबसांग के विचार जाने.

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द क्विंट के जसकीरत सिंह बावा की तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति डॉ. लोबसांग सांगेय के साथ बातचीत

भारत और चीन के बीच जो तनाव है तिब्बत के इसके लिए क्या मायने है वो इसे किस तरह से देख रहे हैं?

चीन के सैनिकों ने भारत की सीमा में घुसपैठ की और ये दुर्घटना हुई जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए हैं. हम उनको श्रद्धांजलि देते हैं. ये हिंसा नहीं होनी चाहिए. हम ऐसी हिंसा का विरोध करते हैं. 60 साल पहले तिब्बत भी स्वतंत्र था और चीन के नेताओं ने आकर मीठी-मीठी बातें की और कहा कि आपको फायदा होगा. हमें बहुत अच्छा सपना दिखाया. लेकिन हकीकत में हमारे देश पर कब्जा कर लिया. हमारे जितने भी खनिज हैं उनका इस्तेमाल कर रहा है. चीन जल संसाधनों जैसे कई नदियों पर नियंत्रण जमा रहा है. लद्दाख की सीमा पर घुसपैठ होने के बाद हमारी यादें ताजा हो गईं कि कैसे उन्होंने हमारे देश पर कब्जा कर लिया.

आपकी भारत सरकार और दुनियाभर के नेताओं से क्या अपील है?

भारत की सरकार और भारत की जनता से कहना चाहूंगा कि होशियार रहिए, जांच कीजिए, उसके बाद विश्वास कीजिए. भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र के मामले में भारत नेतृत्व करने वाला देश है. तो जितने भी लोकतंत्र मानने वाले देश हैं. भारत को बाकी देशों को साथ लाकर चीन को संदेश देना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय नियम कायदे हैं इसके अलावा मिलिट्री एग्रीमेंट हैं वो इनका सम्मान करे. इस साल भारत और चीन के बीच कूटनीतिक संबंध शुरू होकर 70 साल होने वाले थे. पिछले अक्टूबर में तय किया गया था इस साल को खास बनाएंगे और जश्न मनाएंगे. यहां पर हमारे भारत के जवान शहीद हो गए हैं. ये बहुत अफसोस की बात है. आप तिब्बत के बारे में जानकारी रखो इससे आपको पता चलेगा कि चीनी सरकार की सोच क्या है.

भारत की तिब्बत की नीति को आप कैसे देखते हैं?

भारत ने जितना हमारे लिए किया है किसी और देश और जनता ने नहीं किया है. इसलिए हमें आपका हार्दिक शुक्रिया अदा करना चाहिए. 1950 में चर्चा हुई थी कि भारत और तिब्बत के बीच क्या संबंध होना चाहिए. इसमें सरदार वल्लभ भाई पटेल, दीन दयाल उपाध्याय, जेबी कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया सभी ने अपने विचार इस पर रखे थे. इन नेताओं ने जो कहा था अगर वो करते तो तिब्बत और भारत दोनों की स्थिति अलग होती. हम इस देश में मेहमान हैं. हम तो रोज धन्यवाद कहते हैं. भारत में हमारे लिए प्यार ही प्यार है.

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