मराठा समाज को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण का बिल मंगलवार, 20 फरवरी को महाराष्ट्र विधानसभा से सर्वसम्मति से पास हो गया. नौकरियों और शिक्षा में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के तहत 10% मराठा आरक्षण का कानून पारित होने के साथ, महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 62 प्रतिशत हो जाएगा.
मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग के साथ आंदोलन कर रहे एक्टिविस्ट मनोज जरांगे पाटिल ने इसे मराठा समुदाय के साथ धोखा बताया है. उन्होंने कहा है कि उनका आंदोलन जारी रहेगा.
आरक्षण की सिफारिश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में सौंपी गई थी. रिपोर्ट में कहा गया कि मराठा समुदाय एक सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग है और इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 ए (3) के तहत पहचाना जाना चाहिए और संविधान के अनुच्छेद 15(4),15(5) और अनुच्छेद 16(4) के तहत उन वर्गों के लिए आरक्षण (Reservation) तय किया जाना चाहिए.
सर्वे रिपोर्ट के आधार पर दिया गया आरक्षण
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश सुनील शुक्रे ने बीते शुक्रवार यानी 16 फरवरी को मराठा समुदाय के पिछड़ेपन की जांच के लिए राज्य भर में किए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (CM Eknath Shinde) को सौंपी थी. रिपोर्ट के अनुसार ही सरकार ने मराठों को आरक्षण दिया.
महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार, 20 फरवरी को दो दिन का राज्य विधानमंडल का विशेष सत्र बुलाया. सरकार ने सत्र में मराठों को 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने के लिए एक विधेयक पेश किया जो पास हो गया है. सत्र की शुरुआत राज्यपाल रमेश बैस के अभिभाषण से हुई. राज्यपाल रमेश बैस के आगमन पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उनका स्वागत किया.
सत्र को लेकर उत्साहित मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि मराठा समाज को टिकाऊ और नियम-कानून के दायरे में रहते हुए आरक्षण का लाभ हमारी सरकार ही देगी. मराठा समाज का यह आरक्षण ओबीसी या फिर दूसरे किसी समुदाय के आरक्षण को प्रभावित किए बिना ही दिया जाएगा.
लंबी है मराठा आरक्षण की मांग
मराठा समुदाय महाराष्ट्र के आबादी का 33 प्रतिशत हिस्सा है. मराठों के लिए आरक्षण शुरू करने के राज्य सरकारों ने पहले भी कई कोशिशें की पर अदालतों ने उसे खारिज कर दिया. लेकिन विरोध की लहर और मराठों की राजनीतिक हिस्सेदारी ने इस मुद्दे को बार-बार हवा दी. अबकी बार कोटा मुद्दे पर राज्य सरकार ने अपना कदम कार्यकर्ता मनोज जारांगे पाटिल (Manoj Jarange Patil) के भूख हड़ताल पर जाने से उठाया है. मनोज जारांगे पाटिल जालना जिले के अपने गांव में मराठा समुदाय को आरक्षण दिए जाने के पक्ष में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए.
आरक्षण देने के कब-कब हुए प्रयास
2014 में, चुनाव से ठीक पहले पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मराठों के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही साफ कर दिया है कि आरक्षण कुल सीटों के 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता.
कोटा के मांग की दूसरी लहर 2016-2017 में आई, जब अहमदनगर जिले के कोपर्डी गांव में 15 वर्षीय मराठा लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई.
तब 2018 में तत्कालीन देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने मराठों के लिए 16 फीसदी आरक्षण की घोषणा की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इसे 2021 में खारिज कर दिया. कोर्ट ने अपना फैसला देते हुए कहा कि "मराठा आरक्षण 50 प्रतिशत कोटा सीमा का उल्लंघन करती है और इस सही दर्शाने के लिए कोई भी 'असाधारण परिस्थिति' नहीं है.
एकनाथ शिंदे सरकार अब मराठों के लिए आरक्षण लाने की तीसरी कोशिश कर रही है. यह कानून नौकरियों और शिक्षा में समुदाय के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव करता है. विधेयक महाराष्ट्र विधानसभा में पास हो गया है.
"यह मराठा समुदाय के साथ धोखा है": जारांगे पाटिल का विरोध खत्म नहीं
बिल पास होने के बावजूद भूख हड़ताल पर बैठे कार्यकर्ता, मनोज जरांगे पाटिल ने अपना आंदोलन खत्म नहीं किया. जरांगे ने महाराष्ट्र विधानसभा में पेश और पारित किए गए आरक्षण विधेयक का स्वागत किया, लेकिन तर्क दिया कि जो आरक्षण प्रस्तावित किया गया है वह समुदाय की मांग के अनुसार नहीं.
''सरकार का यह फैसला चुनाव और वोटों को ध्यान में रखकर लिया गया है. यह मराठा समुदाय के साथ धोखा है... मराठा समुदाय आप पर भरोसा नहीं करेगा. हमें अपनी मूल मांगों से ही फायदा होगा. यह आरक्षण नहीं चलेगा. सरकार अब झूठ बोलेगी कि आरक्षण दे दिया गया है."मनोज जरांगे पाटिल
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जारांगे पाटिल का कहना है कि मराठा समुदाय को OBC कोटे के अंदर से ही आरक्षण दिया जाए. उन्होंने कहा कि आंदोलन के अगले दौर की घोषणा कल की जाएगी.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)