एडिटर: पूर्णेंदू प्रीतम
महाराष्ट्र के जालना से भुसावल पैदल चले आ रहे 16 मजदूरों की ट्रेन दुर्घटना में दर्दनाक मौत हो गई. ये मजदूर घर लौटने की जंग रेलवे ट्रैक पर हार गए. ये सारे के सारे मजदूर मध्य प्रदेश के शहडोल और उमरिया जिले के रहने वाले थे. जबसे इनके घरों में इस दुर्घटना की खबर मिली है तो इनके घरों में मातम छाया हुआ है.
ट्रेन हादसे की खबर मिलने के बाद शहडोल जिले के अंतौली गांव के रहने वाले गजराज सिंह के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. औरंगाबाद ट्रेन हादसे में जिन 16 लोगों की मौत हुई है उनमें से इनके 2 बेटे ब्रजेश और शिवदयाल सिंह भी हैं. उनके पिता बताते हैं कि उनके घर में खेती होती है लेकिन जमीन बहुत कम है. 2.5 एकड़ की जमीन में पूरे परिवार का पेट नहीं भर पाता था. इसलिए उनके बेटे ब्रजेश और शिवदयाल दोनों हर साल मजदूरी करने जाते थे. ब्रजेश की एक दिन पहले ही अपने दादा से फोन पर बात हुई थी उन्होंने घर में इत्तला दी थी कि हम पैदल ही शहडोल चले आ रहे हैं. वहीं पिता गजराज सिंह की आंखें पथरा गईं हैं वो अब यही उम्मीद करते हैं कि उनके बेटों को आखिरी समय गांव की मिट्टी नसीब हो जाए.
काफी दिनों से बता रहे थे कि ब्रजेश और शिवदयाल कि उनका ठेकेदार पैसे नहीं दे रहा था. धीरे-धीरे पैसे की तंगी बढ़ती गई. जब उनको कोई रास्ता नहीं दिखा तो पैदल ही घर के रास्ते निकल पड़े.शुभकरण सिंह, मृतक भाइयों के दादा
ट्रेन हादसे में जान गंवाने वाले मजदूरों के नाम
शहडोल
- धनसिंग गोंड
- निरवेश सिंग गोंड
- बुद्धराज सिंग गोंड
- रबेंन्द्र सिंग गोंड
- सुरेश सिंग कौल
- राजबोहरम पारस सिंग
- धर्मेंद्र सिंग गोंड
- ब्रिजेश भेयादी
- शिवदयाल सिंग
- दिपक सिंग गोंड
- संतोष नापित
उमरिया
- अच्छेलाल सिंग
- बिगेंद्र सिंग चैनसिंग
- प्रदीप सिंग गोंड
- मुनीमसिंग शिवरतन सिंग
- नेमशाह सिंग चमदु सिंग
40 रुपये प्रति किलो खरीदना पड़ा चावल
इन्हीं मृतकों में से एक था 24 वर्षीय धर्मेंद्र. धर्मेंद्र सिर्फ दो महीने पहले ही जालना गया था. उनके परिवारवाले बताते हैं कि धर्मेंद्र ने जो भी पैसे कमाए, वो अनाज खरीदने में खर्च हो गए थे. माता पिता से धर्मेंद्र की दो दिन पहले ही बात हुई थी.
धर्मेंद्र ने अपनी मां केशमती बाई को बताया था कि उन्हें 5 किलो राशन मिला था वो खत्म हो गया. उनको 40 रुपये प्रति किलो चावल खरीद के खाना पड़ रहा था. जो पैसे कमाए थे पहले ही खत्म हो गए थे. इसलिए अब वहां रहना मुश्किल हो गया था.
धर्मेंद्र के परिवारवालों का कहना है कि तकलीफ बढ़ गई थी इसलिए वो अपने साथी मजदूरों के साथ घर लौटने के लिए पैदल ही चल पड़ा. धर्मेंद्र ने गांव के सेक्रेटरी को फोन भी लगाया था कि हमारे लिए राशन की व्यवस्था करो हम वापस आ रहे हैं.
पहले कोई मदद नहीं, अब 5-5 लाख की मदद
सरकारों ने इन मजदूरों को लौटने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की लेकिन अब इनकी मौत के बाद मध्य प्रदेश की सरकार ने मृतक के परिवारवालों को 5-5 लाख रुपये देने का ऐलान किया है. जैसे ही शहडोल के स्थानीय प्रशासन को पता लगा तो जिले के कलेक्टर और एसपी पीड़ितों के गांव पहुंचे और परिवार वालों को सरकारी मदद का आश्वासन दिया.
जिला प्रशासन ने बताया है कि औरंगाबाद रेल दुर्घटना में मारे गए मजदूरों के शव को शहडोल और उमरिया तक विशेष ट्रेन से लाया जाएगा. इसके बाद मजदूरों के गांव तक शवों को पहुंचाया जाएगा.
औरंगाबाद ग्रामीण एसपी मोकशादा पाटिल ने क्विंट को बताया कि ये लोग महाराष्ट्र के जालना से भुसावल स्टेशन की ओर जा रहे थे. चूंकि महाराष्ट्र से मध्य प्रदेश को जाने वाली ट्रेनें भुसावल में साफ-सफाई, पानी आदि के लिए रुकती हैं तो इन मजदूरों को उम्मीद थी कि शायद वो भुसावल में ट्रेन पकड़ लेंगे. इसी उम्मीद में इन मजदूरों ने जालना से भुसावल के बीच दो ढाई सौ किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करने का जोखिम उठाया.
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