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बिहार सृजन घोटाला: एक महिला के आत्मनिर्भरता की कहानी घोटाले में कैसे बदली?

CBI ने इस मामले में 26 लोगों को नामजद करते हुए 24 केस दर्ज किए हैं. मुख्य आरोपी रजनी प्रिया को हाल ही गिरफ्तार किया गया है.

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90 का दशक था, एक महिला दो सिलाई मशीन के साथ अपने करियर की शुरुआत करती है. देखते ही देखते वो 6,000 से अधिक सदस्यों के साथ एक प्रभावशाली सहकारी समिति की संस्थापक बन जाती है. इसके बाद वो एक को-ऑपरेटिव बैंक खोलती है. लेकिन, एक महिला के आत्मनिर्भर बनने और हजारों महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने की कहानी घोटाले की दास्तान बन जाता है. ऐसा-वैसा घोटाला नहीं, 1000 करोड़ का घोटाला. नाम पड़ा सृजन घोटाला.

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सृजन घोटाला है क्या?

यह घोटाला भागलपुर स्थित सृजन नाम के NGO से जुड़ा है. संस्था का पूरा नाम- सृजन महिला विकास सहयोग समिति है. जो महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने का काम करता है. इस NGO पर सरकारी बैंक खातों से अलग-अलग योजनाओं के पैसे चोरी करने का आरोप है. यह 1000 करोड़ का घोटाला है.

घोटाले के मुख्य किरदार

पहली- मनोरमा देवी, 1991 में उनके पति की मौत हो गई थी. इसके बाद उन्होंने ‘सृजन महिला विकास सहयोग समिति’ की शुरुआत की. साल 1996 में सृजन को सहकारिता विभाग से को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में मान्यता मिल गई.

इसके 9 साल बाद 2005 में उन्होंने भागलपुर के सबौर ब्लॉक में एक सहकारी बैंक की शुरुआत की, जो भागलपुर के केंद्रीय सहकारी बैंक से संबद्ध नहीं था. इसी बैंक के शुरुआत के साथ घोटालों की कहानी भी शुरू होती है. लेकिन घोटाले के खुलासे से पहले ही फरवरी 2017 में उनकी मौत हो गई थी.

दूसरी- रजनी प्रिया, मनोरमा देवी की बहू और SMVSS की तत्कालीन सचिव. जो 2017 से फरार चल रही थी. 11 अगस्त 2023 को CBI ने उन्हें गाजियाबाद से गिरफ्तार किया. फिलहाल उन्हें पटना सिविल कोर्ट ने 21 अगस्त तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.

तीसरे- अमित कुमार, मनोरमा देवी के बेटे हैं, जो कि अभी भी फरार चल रहे हैं. इन मुख्य किरदारों के अलावा, सृजन के आलाधिकारियों के साथ इस गोरखधंधे में जिला प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी के शामिल होने का आरोप है. इसके साथ ही बैंक ऑफ बड़ौदा (Bank of Baroda), इंडियन बैंक (IB) और बैंक ऑफ इंडिया (BOI) सहित कई अन्य बैंकों के अधिकारियों पर भी इस साजिश में साथ देने का आरोप है.

घोटाले का मॉडस ऑपरेंडी

मनोरमा देवी के सृजन को-ऑपरेटिव बैंक के जरिए इस पूरे घोटाले को अंजाम दिया गया. दरअसल, भागलपुर जिले में सरकारी योजनाओं के फंड्स सीधे सरकारी बैंकों में खुले विभागीय खातों में न जाकर सृजन को-ऑपरेटिव बैंक में जमा करवा दिए जाते थे. ये दो तरीकों से किया जाता था:

  1. थर्ड पार्टी के समर्थन से सरकारी फंड्स को सीधे सृजन बैंक में जमा करवाया जाता था. इसे स्वीप मेथड कहते हैं. इसको ऐसे समझ सकते हैं- जैसे सरकार ने भागलपुर प्रशासन को फंड ट्रांसफर किया. बैंक ने भागलपुर प्रशासन से मिलीभगत कर पैसा सृजन बैंक के अकाउंट में जमा करवा दिया.

  2. फर्जी चेक और हस्ताक्षर. किसी भी सरकारी खाते के लिए एक वैध चेक सीरीज जारी की जाती है. लेकिन इस मामले में एक डुप्लिकेट चेक सीरीज भी जारी की गई. जो सृजन के कर्ता-धर्ता को दी गई और वो डीएम के जाली हस्ताक्षर कर पैसे अपने अकाउंट्स में ट्रांसफर करवाता रहा.

इतना ही नहीं फर्जी सॉफ्टवेयर के जरिए पासबुक और बैंक स्टेटमेंट अपडेट किया जाता था. इसी फर्जी सॉफ्टवेयर के जरिए इस राशि का ऑडिट भी करवा लिया जाता था.

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आरोप है कि सृजन के बैंक अकाउंट में जमा पैसे को निकालकर मनोरमा देवी बाजार में निवेश करती थी. उन पैसों को भारी ब्याज पर वह सूद पर भी देती थी. इसके अलावा, यह पैसे जमीन, व्यापार और अन्य धंधों में निवेश के लिए भी इस्तेमाल किए जाते थे.

यहां गौर करने वाली बात है कि सृजन संस्था को बैंक चलाने का अधिकार नहीं था, क्योंकि उसे RBI से लाइसेंस नहीं मिला था. वहीं को-ऑपरेटिव सोसाइटी कानून के मुताबिक, अधिकतम 50,000 रुपये का लेन-देन ही किया जा सकता है.

कैसे हुआ खुलासा?

इस फर्जीवाड़े का खुलासा न हो इसके लिए सृजन का बैंकों के साथ जबरदस्त सांठ-गांठ था. जांच में पता चला कि जब भी सरकार की ओर से कोई चेक बैंकों के पास आता था, तो बैंक कर्मचारी या सरकारी कर्मचारी सृजन की संस्थापक को सूचित कर देते थे. चेक बाउंस न हो और घोटाले का खुलासा न हो इसके लिए NGO की ओर से आवश्यक राशि सरकारी खाते में जमा करवा दी जाती थी.

लेकिन 2016 के बाद NGO ने सरकारी पैसे लौटाने बंद कर दिए. इसके बाद अगस्त 2017 में इस घोटाले का खुलासा हुआ. जब भागलपुर जिलाधिकारी की ओर से जारी 270 करोड़ का चेक बाउंस हो गया. इसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी आदेश तितरमारे ने मामले की जांच करवाई तो पता चला कि सरकारी खाते में पैसा ही नहीं है.

इसके बाद मामले की जांच के लिए सीएम नीतीश कुमार ने आर्थिक अपराध इकाई की टीम को भागलपुर भेजा. विपक्ष के विरोध और दबाव के बीच राज्य सरकार ने CBI जांच की सिफारिश भी कर दी. इस मामले में CBI ने 26 लोगों को नामजद करते हुए 24 केस दर्ज किए हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2020 में अमित, प्रिया और अन्य के खिलाफ चार्जशीट भी दायर किया था. मामला ट्रायल में है और कई आरोपी जमानत पर बाहर हैं.

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कहां-कहां हुई चूक?

  • इस मामले में कई लेवल पर चूक हुई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2006 में राज्य सहकारी विभाग का एक अधिकारी निरीक्षण के लिए सृजन के दफ्तर पहुंचा था, लेकिन मनोरमा देवी ने सीनियर ऑफिसर को फोन मिलाया और मामला शांत हो गया.

  • इसके बाद 2011 में तत्कालीन भागलपुर आयकर आयुक्त प्रशांत भूषण के निर्देश पर आयकर विभाग की एक टीम ने सृजन का नियमित सर्वेक्षण किया, लेकिन कोई गड़बड़ी नहीं मिली.

  • 2013 में आर्थिक अपराध इकाई की टीम ने सृजन के दफ्तर पर छापा मारा था, लेकिन तब भी अवैध बैंकिंग का खुलासा नहीं हुआ.

  • 2013 में ही बिहार वित्त विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव रामेश्वर प्रसाद सिंह ने राज्य के 41 बैंकों की सूची जारी की थी, उस सूची में सृजन का नाम नहीं था. बावजूद इसके ये गोरखधंधा अगले 4 साल तक चलता रहा.

  • 2013-14 के बीच गोड्डा के CA संजीत कुमार ने इस घोटाले को लेकर कई बार नीतीश कुमार, राज्य सहकारिता विभाग और केंद्रीय वित्त मंत्रालय को ईमेल किया था. लेकिन किसी ने इसपर ध्यान नहीं दिया.

  • इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक ने भी 9 सितंबर, 2013 को सरकार को पत्र लिखकर संदेह जताया था और सृजन संस्था की जांच कराने को कहा था.

राजनीतिक पहुंच और रसूख

बताया जाता है कि मनोरमा देवी की मंत्रियों, नेताओं के साथ-साथ वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, व्यापारियों के साथ अच्छे संबंध थे. जिसका उन्होंने खूब फायदा उठाया. इस मामले में बीजेपी नेता विपिन शर्मा का नाम भी आया था. पुलिस ने उनके घर पर छापा भी मारा था. इसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था. वहीं जेडीयू नेता शिव मंडल और उनके पिता महेश मंडल का भी नाम आया था. महेश मंडल की जेल में संदिग्ध परिस्थितियों मे मौत हो गई थी.

तब लालू यादव ने इस मामले को लेकर सीधे-सीधे नीतीश कुमार पर आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि 2006 से चल रहे सृजन घोटाले में नीतीश ने 11 साल तक कार्रवाई क्यों नहीं की? CM और वित्त मंत्री सुशील मोदी इस मामले के सीधे दोषी हैं.

इस घोटाले में पूर्व IAS केपी रमैया का भी नाम है. जिन्हें CBI ने भगोड़ा घोषित कर रखा है. बता दें कि रमैया भी भागलपुर के जिलाधिकारी रह चुके हैं. 2014 में वॉलंटरी रिटायरमेंट लेकर वो JDU में शामिल हो गए थे. उन्होंने सासाराम से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था, लेकिन हार गए थे.

बहरहाल, घोटाले की शुरुआत से लेकर खुलासे तक, नीतीश कुमार बारी-बारी से बीजेपी और आरजेडी के साथ सत्ता में रहे हैं. इस दौरान विपक्ष में रहने वाली आरजेडी और बीजेपी दोनों ने ही नीतीश को घेरा है. जानकारों का भी मानना है कि सुशासन का दावा करने वाली सरकार में ये घोटाला किसी दाग से कम नहीं है.

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